tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post2219452444025918038..comments2023-10-29T14:47:22.589+05:30Comments on notepad: जादा तकलीफ है तो ऑटो में जाया करो ना ....यहाँ तो ऐसे ही होता हैसुजाताhttp://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-7731507985624719302008-01-30T17:58:00.000+05:302008-01-30T17:58:00.000+05:30संजय मैने क्या सोच कर लिखा इस पोच में काहे पडे हो ...संजय मैने क्या सोच कर लिखा इस पोच में काहे पडे हो , तुम क्या सोचते हो वह महत्वपूर्ण है क्योंकि सब मर्द शोहदे नही और सब मर्द उत्पीडक नही इसलिए इसमे दुख मनाने का क्या है ? कुछ ऐसी टोन झलकती है आपकी बात में ।<BR/>डॉ प्रवीन ,ओझा जी दुख तो होता ही है उससे ज़्यादा ज़लालत महसूस कराने वाली बात है ।<BR/>प्रमोद जी अनामदास जी , बात सही है ।कल से पहनने की चप्पल और मारने की और रही । पर चप्प्लों से पीटना और अलग एल-स्पेशल चलाना मदद तो करेगा पर कहाँ तक? दिन में कितनो को चप्पल मारी जाएगी और एल स्पेशल का मतलब है सीधा कॉलेज ऑफिस जाना सीधे घर आना । सीधा जाना सीधे घर वापिस आना यही हिदायत तो देती है माँ बाप पति लडकी को । इसी सोच से तो निजात चाहिये ।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-40421944984442166372008-01-30T11:01:00.000+05:302008-01-30T11:01:00.000+05:30अनामदास वाली टिप्पणी के पीछे-पीछे हूं.. मुझे तो ल...अनामदास वाली टिप्पणी के पीछे-पीछे हूं.. मुझे तो लगता है औरतें घर से दो जोड़ी चप्पल लेकर निकला करें.. एक पैर के लिए दूसरी इन हरामियों का करम करने के लिए..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-68363816924696995932008-01-30T03:25:00.000+05:302008-01-30T03:25:00.000+05:30जिसने ये सब देखा नहीं है, जाना नहीं है, झेला नहीं ...जिसने ये सब देखा नहीं है, जाना नहीं है, झेला नहीं उसे लगेगा कि ये सब कितना नाटकीय है लेकिन दिल्ली जैसा नारीविरोधी शहर कोई दूसरा नहीं है.मुंबई की लोकल ट्रेन की तरह दिल्ली में सिर्फ़ महिलाओं के लिए बस क्यों नहीं चल सकती, हालाँकि सिद्धांतत सिर्फ़ महिलाओं के लिए कुछ भी करने का खयाल अटपटा लगता है लेकिन जहाँ पुरूष पशु हो रहे हों यह उन्हें बताने जैसा कि तुम्हारा इंसानियत पर शक है इसलिए इस गाड़ी तुम नहीं चढ़ सकते, सिर्फ़ महिलाओं की ट्रेन देखकर भी लोग नहीं समझते कि उन्हें ख़तरनाक जानवर से भी बुरा समझा जाता है...दिल्ली की बसों के मामले में तो बहुत सख़्ती की ज़रूरत है, ऑटो वाले तो नंबरी हरामी हैं, इतना बुरा हाल भारत के किसी और शहर में नहीं है. बहुत अच्छा, सही और ज़रूरी लिखा है आपने.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-41894541333295775792008-01-29T19:24:00.000+05:302008-01-29T19:24:00.000+05:301. अगर यह सोच कर लिखा है कि ऐसा सिर्फ लड़कियों के ...1. अगर यह सोच कर लिखा है कि ऐसा सिर्फ लड़कियों के साथ ही होता है, तो गलत हो.<BR/>2. अगर यह सोच कर लिखा है कि सारे मर्द शोहदे ही होते हैं, तो गलत हो.<BR/>3. अगर यह सोच कर लिखा है कि सिर्फ महिलाएं ही अन्याय की शिकार होती हैं, तो भी गलत हो.<BR/><BR/>क्योंकि इस तरह बस पुरुषों को भी छोड़नी पड़ती हैं. ऑटोवाले पुरुषों से भी इसी तरह बदतमीजी करते हैं (बल्कि पुरुषों से तो मारपीट तक कर देते हैं) और अन्याय पुरुषों के साथ भी होता है..यहां तक कि यौन उत्पीड़न भी.<BR/><BR/>लेकिन आपकी मूल भावना को अच्छे से समझ पाया हूं पर कोई दिखावे भर का कमेंट नहीं कर सकता.Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-82941975854377472302008-01-29T17:52:00.000+05:302008-01-29T17:52:00.000+05:30sach kahu to khoon khaul jaata hai aisa padkar, ja...sach kahu to khoon khaul jaata hai aisa padkar, jab aap jaldi me hote hai aur saamnewala itminaan hota haiविनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-33708806372411908302008-01-29T15:51:00.000+05:302008-01-29T15:51:00.000+05:30ह्म्म, सवाल सिर्फ़ महानगरीय जीवन शैली की विडम्बना क...ह्म्म, सवाल सिर्फ़ महानगरीय जीवन शैली की विडम्बना का नही है, यह सवाल है हमारी मानसिकता का। छोटे शहरों में और कस्बाई इलाके में ये दिक्कतें, यही बातें किसी और रूप में हमारे सामने मौजूद है ही।<BR/>"हम' ऐसे क्यों बनते जा रहे हैं यह विश्लेषण करने वाली बात है।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-65540963354095211442008-01-29T15:31:00.000+05:302008-01-29T15:31:00.000+05:30ये तो अक्सर होता है। कभी भीड का हवाला तो कभी धक्के...ये तो अक्सर होता है। कभी भीड का हवाला तो कभी धक्के का । कोई और उपाय भी नहीं है। महानगरीय जीवन-शैली की विडम्बना है और नारी होने का खामियाज़ा।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-65327790427392172492008-01-29T13:22:00.000+05:302008-01-29T13:22:00.000+05:30पढ़ कर मन बहुत दुःखी हुया..अगर बड़े शहरों का यह हा...पढ़ कर मन बहुत दुःखी हुया..अगर बड़े शहरों का यह हाल है तो कसबों और गांवों का क्या हाल होगा। महिला सशक्तिकरण गुट भी कुछ देख-सुन रहे हैं क्या ..Dr Parveen Choprahttps://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-1019263579960307382008-01-29T13:07:00.000+05:302008-01-29T13:07:00.000+05:30अच्छा लेख... इस पर तो यही टिप्पणी की जा सकती है......अच्छा लेख... इस पर तो यही टिप्पणी की जा सकती है... जायें तो जायें कहाँ?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.com