tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post7490042400736943262..comments2023-10-29T14:47:22.589+05:30Comments on notepad: साहित्य अकादमी मे बे-कार जाने का अंजामसुजाताhttp://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-82831546555596870572008-09-11T03:12:00.000+05:302008-09-11T03:12:00.000+05:30अकादमियां बपौती किनकी बनी हुई है शायद यह अब कहने क...अकादमियां बपौती किनकी बनी हुई है शायद यह अब कहने की बात नही रही इस देश में।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-77303323543833003092008-08-23T13:29:00.000+05:302008-08-23T13:29:00.000+05:30साहित्य अकादमी में जाने के लिए कार जरूरी योग्यता भ...साहित्य अकादमी में जाने के लिए कार जरूरी योग्यता भले न हो। पर, वहां आने वाले बे-कार लोगों से सम्मानित होने का जरिया तो जरूर बनी हुई है। देश भर में ऐसा ही है...Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-75953324406199603832008-08-22T12:14:00.000+05:302008-08-22T12:14:00.000+05:30waakai acdemi me aam striyan nahi jaati, shaayad g...waakai acdemi me aam striyan nahi jaati, shaayad gunjaaish hi nahi ho, waise aapke nikalne ke baad aapke peeche aaya, pata hi nahi chala ki aap turant kaha chalee gayeeविनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-60102626016745726682008-08-21T09:04:00.000+05:302008-08-21T09:04:00.000+05:30Dr.Kavita Vachaknavee said... लगता है आप को कष्ट इ...Dr.Kavita Vachaknavee said... लगता है आप को कष्ट इस बात का है कि आप को उस गार्ड के ऐसा कहने से अपने स्तर की तौहीन होती दीखी कि कहाँ मैं और कहाँ यह दो टेक का आदमी! मुझे चपदसी वाली कुर्सी पर बैठने का आग्रह करने का सहस कैसे हस इसका...<BR/>कविता जी आप सही है कि मेरे लिखने के ढंग मे ही कमी है जिससे कि आप आशय समझ नही पायीं।:-)<BR/> <BR/>मुझे गुस्सा इस बात पर आया था कि मै गाड़ी वाली नही हूँ , और बार-बार गार्ड {न कि चपरासी}मुझसे पूछ रहा है - मैडम गाड़ी आ रही है न, तो बैठिये।माने बिना गाड़ी के साहित्य अकादमी आना वर्जित हो।लेकिन गुस्सा तुरंत ही शांत हो गया।<BR/>खैर ,<BR/>थोड़ी बहुत असहमति से आप शत्रु नही हो जाएंगी।कम से कम मै तो आपको शत्रु नही मानूंगी।आप अपने मन का कुछ न करें और सच कहने से न रुकें:-)note padhttps://www.blogger.com/profile/17125205742214556205noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-62913992869877456622008-08-21T03:13:00.000+05:302008-08-21T03:13:00.000+05:30पता नहीं गुस्सा किस पर है? गार्ड ने ऐसा क्या अनर्...पता नहीं गुस्सा किस पर है? गार्ड ने ऐसा क्या अनर्थ कर दिया यदि उसने बैठने को कह दिया? लगता है आप को कष्ट इस बात का है कि आप को उस गार्ड के ऐसा कहने से अपने स्तर की तौहीन होती दीखी कि कहाँ मैं और कहाँ यह दो टेक का आदमी! मुझे चपदसी वाली कुर्सी पर बैठने का आग्रह करने का सहस कैसे हस इसका! आप की पूरी बात में विरोधाभास है. एक और जहाँ आप उन गाडी वाली स्त्रियों और साहित्य अकादमी में ऐसे ही लोगों के जमघट पर क्षोभ प्रकट कर रही हैं, वहीं दूसरी और स्वयं उस मानसिकता से ग्रस्त दिखाई देती हैं. एक गार्ड बेचारा.... एक तो आपको कुर्सी पर बैठने का आग्रह कर रहा है,सेवा में प्रस्तुत हो रहा है, और स्वयं जहाँ बैठता है उसे आप के सामने झाड़ भी रहा है. आपको इसमें उसकी सदाशयता दिखाई नहीं देती, अपितु आप तो अपने अहम् से इतनी भरी दिखाई देती हैं कि उसकी इस सदाशयता का ही अनर्थ कर रही हैं. ऐसे में आप को कहाँ अधिकार है कि किसी एक वर्ग विशेष की मानसिकता से ग्रसित लोगों को धिक्कारें, क्योंकि आप स्वयं उस मानसिकता का शिकार दिखती हैं. संयोग या दुर्योग से हमें भी कई बार वहाँ जाने का अवसर मिला पर कभी ऐसा नहीं लगा कि हमें कोई हीन दिखाने की साजिश में लगा है. एक आम आदमी की इतनी निर्मल भावना का आदर न कर के साहित्य का कितनों ने कितना भला किया है यह किसी से छिपा नहीं है. क्या खा कर अब लोग प्रेमचंद की बात करते हैं .... आश्चर्य है !!!<BR/><BR/>कितना अच्छा होता कि आप इसे इस रूप में लिखतीं/देखतीं कि किसी की मानवीय संवेदना अभी शेष है उस दिल्ली जैसे महानगर में.<BR/><BR/>जानती हूँ कि अपनी इस टिप्पणी के बाद मैं आप सहित कई लोगों को अपना शत्रु बना लूँगी, पर इस मन का क्या करें कि कई बार कुछ चीजें नजरअंदाज की नहीं जातीं और सच कहने से रुका नहीं जा सकता. क्षमा करेंKavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-3349233973207096002008-08-20T23:11:00.000+05:302008-08-20T23:11:00.000+05:30बौद्द्धिक अय्याशी के क्या कहने, अभी एक चैनल पर दे...बौद्द्धिक अय्याशी के क्या कहने, अभी एक चैनल पर देखा तीन लेखकनुमा नेता पता नहीं क्या-क्या बेसिर पैर की गांजे चले जा रहे थे और लग रहा था ये किताब लिख ही इसलिये रहे हैं कि उन्हें बस बौद्धिक कहलाने का शौक चर्राया है :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-78454284053091512942008-08-20T20:10:00.000+05:302008-08-20T20:10:00.000+05:30जानकर अचंभित हूँ-ऐसा होता है क्या? मेरे मन में तो ...जानकर अचंभित हूँ-ऐसा होता है क्या? मेरे मन में तो कोई दूसरी तस्वीर थी.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-51507766954068206572008-08-20T12:45:00.000+05:302008-08-20T12:45:00.000+05:30साहित्य अकादमी सामन्य लोगों के लिये नहीं बना है, य...साहित्य अकादमी सामन्य लोगों के लिये नहीं बना है, ये तो हमारे लिये ताली बजाने की जगह मात्र है। चन्दलोगों ने इस केन्द्र को खुद को महान बनाने में उपयोग किया है। हम मानते हैं कि ये साहित्य अकादमी है। यहीं तो आप भूल कर रहीं हैं। -शम्भु चौधरीShambhu Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/03776713428128546589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-72289887552397488672008-08-20T12:44:00.000+05:302008-08-20T12:44:00.000+05:30This comment has been removed by the author.Shambhu Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/03776713428128546589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-8089500267283894482008-08-20T12:39:00.000+05:302008-08-20T12:39:00.000+05:30बिल्कुल सही, यही सब कुछ चलता रहेगा, हमारे और आपके ...बिल्कुल सही, यही सब कुछ चलता रहेगा, हमारे और आपके कुढ़ने से कुछ नही होने वाला, बस इतना है की जब किसी बात को आप जैसा हस्सास दिल महसूस करता है तो ज़रा दूसरे तरीके से, लेकिन बाकि दुनिया के सोचने का ढंग ज़रा तरक्की पसंद है सुजाता जी, क्या करेंगी,,,मिल सकें तो उन्हीं में मिल जाएँ...वरना कुढ़ती रहें...rakhshandahttps://www.blogger.com/profile/08686945812280176317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-50601505421889513642008-08-20T11:55:00.000+05:302008-08-20T11:55:00.000+05:30फिलहाल तो कुछ कहूँगा नही.. क्योंकि यहा जयपुर के जव...फिलहाल तो कुछ कहूँगा नही.. क्योंकि यहा जयपुर के जवाहर कला केंद्र में ऐसा अब तक हुआ नही.. लेकिन जो आपने लिखा उसे पढ़कर लगता है की बात तो सही है.. अब तक इस बारे में सोचा अँहि था.. धन्यवाद इस पोस्ट के लिए..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-56337724944731080862008-08-20T11:35:00.000+05:302008-08-20T11:35:00.000+05:30अब वो ज़माना गया मोहतरमा जब साहित्यक अकेडमी में साई...अब वो ज़माना गया मोहतरमा जब साहित्यक अकेडमी में साईकिल चलाने वाले लेखक या बस के टिकट जेब में रखकर .छोले कुलचे खाने वाले लेखक आते थे .....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-61414273721053119292008-08-20T10:02:00.000+05:302008-08-20T10:02:00.000+05:30गलत बात है ड्राईवर को देर से आने की सजा स्वरूप कम ...गलत बात है ड्राईवर को देर से आने की सजा स्वरूप कम से कम दो दिन दोनो वक्त का खाना चौका बरतन के अलावा गाडी लेकर गेट पर वर्दी मे चार चार घंटे खडे रहने की सजा दी जाये , जिसमे खैनी खाने या बीडी पीने पर भी सजा दुहराने का प्रविधान रखा जाये ,हम सभी ब्लोगर्स आपके साथ है जी :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-58594910361941480502008-08-20T10:00:00.000+05:302008-08-20T10:00:00.000+05:30कई बार न ध्यान खींचने वाली बातें भी ध्यान खींच लेत...कई बार न ध्यान खींचने वाली बातें भी ध्यान खींच लेती हैं और तब लगता है सचमुच एक बड़ा अर्थ वहां छुपा बैठा था और हम सब अनजान बने बैठे थे।अनुराग अन्वेषीhttps://www.blogger.com/profile/09263885717504488554noreply@blogger.com