tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post8636062195563533673..comments2023-10-29T14:47:22.589+05:30Comments on notepad: निजी कितना निजी है और कब तक ?कवि कितना मानव है ?सुजाताhttp://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-82238310120182600252007-07-27T00:04:00.000+05:302007-07-27T00:04:00.000+05:30>>"दो प्रेमियों का रिश्ता जब केवल स्त्री-पुरुष.......>>"दो प्रेमियों का रिश्ता जब केवल स्त्री-पुरुष................ जाति और पुरुष जाति की समस्या हो जाती है ।"<BR/><BR/>१. क्या हम यह कह सकते हैं कि य समस्या समाज की हो जाती है न की किसी जाति विशेष की ?<BR/><BR/>>>"वर्ना अर्चना जैसी कई लडकियाँ....................लेकर घर के पंखे से लटक जाती हैं, "<BR/><BR/>२. " घर के पंखे से लटक जाती हैं..." या " घर के पंखे से लटका दी जाती हैं" ????<BR/><BR/>३. लिखती रहिये, हम बिना शोर मचाये पढ़ रहे हैं ( निरंतर )<BR/><BR/>रणगामीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-34443085281072857722007-07-25T20:54:00.000+05:302007-07-25T20:54:00.000+05:30अच्छा लिखा है। कुछ सरलीकरण ज्यादा है लेकिन अपनी बा...अच्छा लिखा है। कुछ सरलीकरण ज्यादा है लेकिन अपनी बात कहने में सफ़ल रहीं। मेरी समझ में स्त्री-पुरुष,पति-पत्नी के पहले असीमा और आलोक धन्वा दो प्राणी हैं। कवि के रूप में संभव है कि आलोक धन्वा महान हों लेकिन एक प्राणी और एक जीवनसाथी के रूप में वे अगर अपने साथी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पाते तो यह निंदनीय है। उनकी कविता की ऊंचाई उनको निम्न कृत्य करने की छूट नहीं देती। अब यह बातें कितनी सच हैं यह उनसे जुड़े लोग ही बता सकते हैं। लेकिन किसी क्रांतिधर्मी कवि को अगर अपनी पत्नी के साथ ही बदसलूकी की बातें उठती हैं तो उसकी कविता के प्रभाव पर भी फ़रक पड़ता है। बधाई इस लेख के लिये, बावजूद इस सच के कि आपने सारे पतियों को एक ही फोलियो में रख दिया। :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-32512592260861394172007-07-24T13:40:00.000+05:302007-07-24T13:40:00.000+05:30बढ़िया लिखा है। संवेदना और विचारों की जो ऊंचाई और ...बढ़िया लिखा है। <BR/>संवेदना और विचारों की जो ऊंचाई और गहराई साहित्यकारों के लेखन में दिखती है, यदि उसका कुछ अंश उनके जीवन-व्यवहार में भी हो तो सोने में सुगंध आ जाए। लेकिन हिन्दी के ज्यादातर साहित्यकारों में ऐसा नज़र नहीं आता।<BR/><BR/>यदि साहित्य, पाठकों की संवेदनाओं के विकास और परिष्कार का कार्य करता है तो खुद साहित्यकारों पर उसका इतना नकारात्मक असर क्यों पड़ता है, यह समझ में नहीं आता!<BR/><BR/>एक जीवंत, सहज, सच्चा इंसान केवल अपनी मौजूदगी मात्र से किसी व्यक्ति की संवेदनाओं के विकास और परिष्कार में जितना सफल हो सकता है, उतना चारित्रिक रूप से पतित, किन्तु बड़ी-बड़ी और सुन्दर-सुन्दर बातें करने वाला कोई तथाकथित महान साहित्यकार नहीं हो सकता। <BR/><BR/>इसलिए "पढ़ने योग्य लिखा जाए" से अधिक "लिखे जाने योग्य किया जाए" पर हमारा जोर होना चाहिए।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-74764150878347750762007-07-23T18:10:00.000+05:302007-07-23T18:10:00.000+05:30आप की इस बात से सहमत है।बहुत सही लिखा है-"एक महत्व...आप की इस बात से सहमत है।बहुत सही लिखा है-<BR/><BR/>"एक महत्वपूर्ण बात यह भी । सच अपने सम्पूर्ण रूप मे कुछ नही होता । वह विखंडित है ।सच के कई पहलू होते हैं ।लेकिन इन विखंडित सत्यों के बीच हमें अपने सच का एक चेहरा बनाना होता है । यह सच का हमारा निजी पाठ है"परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-56535261516424704992007-07-23T17:54:00.000+05:302007-07-23T17:54:00.000+05:30गहन चिन्तन-आगे भी आपके विचारों का इन्तजार है.गहन चिन्तन-आगे भी आपके विचारों का इन्तजार है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-51795901873736882442007-07-23T15:13:00.000+05:302007-07-23T15:13:00.000+05:30Satik aur spast chintan ke liye dhanyavad !Satik aur spast chintan ke liye dhanyavad !36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-66726523808726306932007-07-23T13:35:00.000+05:302007-07-23T13:35:00.000+05:30मैं आप की राय का सम्मान करता हूँ.. आप ने सही लिखा....मैं आप की राय का सम्मान करता हूँ.. आप ने सही लिखा.. <BR/>मैं अपनी पोस्ट के बारे में बस इतना कहना चाहूँगा कि उसे इस मामले में किसी की पक्षधरता न समझा जाय.. साथ ही साथ वह पोस्ट असीमा जी के विरोध में भी नहीं है.. उन्हे अपनी बात कहने का पूरा हक़ है..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-73765566324299555872007-07-23T12:38:00.000+05:302007-07-23T12:38:00.000+05:30बहुत सही कहा !बहुत सही कहा !Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-45591031410692821412007-07-23T12:35:00.000+05:302007-07-23T12:35:00.000+05:30बहुत सही!!खासतौर से यह लाईन्स पसंद आई"आचार्य रामचन...बहुत सही!!<BR/><BR/>खासतौर से यह लाईन्स पसंद आई<BR/>"आचार्य रामचन्द्र शुकल ने लिखा था कि कविता का लक्ष्य है ---मनुष्यता की रक्षा करना ।तो हम उस कवि से मानव होने की ही उम्मीद कर रहे है ।वह अति मानव न हो । पर कम से कम अमानवीय तो न हो जाए ।सडक के भिखारी को भीख देना और घर के भीतर नौकर को पीटना ----क्या यह मानवीयता ही है ?<BR/>कवि को कम से कम मानव के ओहदे से तो नीचे नही गिरना चाहिये ।"<BR/><BR/>शुक्रिया!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-37769540924235352302007-07-23T12:24:00.000+05:302007-07-23T12:24:00.000+05:30नीरज फ़िक्शन तो है ही साहित्य पर सत्य का आधार ज़रूर ...नीरज फ़िक्शन तो है ही साहित्य पर सत्य का आधार ज़रूर होता है ।कल्पना का सहारा अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए लिया जाता है ।अनुभव तो कम से कम सच्चे होन्गे यह उम्मीद कवि से होगी । भिखारी को भीख मान्गते आप भी देखते है और मै भी ।पर कवि के देखने मे ऐसा क्या है कि वह उस की स्थिति को बया करने मे बाज़ी मार ले जाता है ।तभी हम उसे पढना चाहते है ।यह है -अन्य के अनुभव को अपनी अनुभूति बनाना और अभिव्यक्त करना ।सम्वेदना शायद यही है ।हैरी पोटर की कोरी कल्पना मे भी एक बच्चे के मनोभाव है और उसकी अभिव्यक्तियो को समझे बिना राउलिन्ग सफ़ल नही होती ।कल्पनिक पात्र भी इस जग से जीवन लेकर ही जीवन्त होते है ।आप्के प्रश्नो को अगली पोस्ट मे लेना होगा ।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8991622950326641568.post-50216342789582109462007-07-23T12:04:00.000+05:302007-07-23T12:04:00.000+05:30इस विषय पर आपके लेख की अगली कडी का इन्तजार रहेगा,"...इस विषय पर आपके लेख की अगली कडी का इन्तजार रहेगा,<BR/><BR/>"...उसकी सम्वेदनशीलता मानव विशेष के लिए लिए सामन्य के लिए होती है । इसलिए उसके लेखन और जीवन में विरोध दिखाई दे तो हमें उसके लेखन ही नही उसकी सम्वेदन शीलता पर भी शक करना होगा..."<BR/><BR/>यदि उसके लेखन में फ़िक्शन अथवा काल्पनिकता का डिस्क्लेमर लगा है तो भी क्या आप यही विचार रखेंगी ?Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.com