गुलज़ार की ये शायरी अपने जीवन से बहुत करीब करीब सी लगती है--मेरा कुछ सामान,तुम्हारे पास पडा है..। ऐसा कितना ही सामान न जाने कहा कहा .किस किस के पास छूट जाता है -०-सावन के कुछ भीगे भीगे दिन,गीला मन, कुछ अधूरी चिट्ठिया.......!
ऐसे ही कुछ ,गुलाब की सूखी पन्खुरियो की तरह, कुछ अधूरी कुछ पूरी कविताए, कल घर साफ़ करते हुए मिल गई। मेरा ही सामान ,मेरे ही पास बेगाना सा रखा था. छपने के लिए कभी नही था, पर नए नए आकर्षण के दौर मे, तरुणाई की ये अभिव्यक्तिया हसा देती है, कभी कभी हैरान कर देती है।
उन्ही मे से कुछ प्रस्तुत है---
"हर बार तुमसे मिल कर
पुन: मिलने का विश्वास
मैने कभी नही बान्धा,
अवकाश न तुमने दिया न
नियति ने।
विचित्र सूत्र
तुम्हारे शब्दो मे पल्लवित
मेरे श्वासो मे आश्वस्त हुआ और पल्लवन
के साथ जड हो गया
मै आकन्ठ डूबी उसे सीचती रही।
ह्रदय से लगाए म्रत शावक को\
सद्य जन्मे प्रेम-शिशु का उल्लास
मैने कभी नही बान्धा।
अवकाश न तुमने दिया न नियति ने।
तुम मुझे और मै निर्निमेष देखती रही खाई -सा अन्तराल।
अपने सत्य से तुम्हारे मिथ
तक इस खाई को पाटने का सेतु,
मैने कभी नही बान्धा।
अवकाश न तुमने दिया न नियति ने.
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प्यार तो शब्द था
उड गया
हवा के साथ
हवा होकर।
हमारे ताकने को
बचा था
नालायक! आसमा।
किसी किताब ने
प्यार के
वो अर्थ
कभी बताए ही न थे
जितने
हमने जाने है
रुसवा होकर।
यू तो हर रोज़
बढती है उम्र
फ़ीकी होती है याद
अफ़सोस ज़ियादा मगर
आवारगी खोकर!
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12 comments:
सोचा खुद ही टिप्पणी कर दे.
--अच्छा है, आपने बता दिया परानी कविता है.
हम सोचते थे आप अच्छा लिखती है।----
अच्छी भाव पूर्ण रचना हैं
शायद अनुभव के जिस पडाव पर यह बनी उस वक्त भावुकता का दौर आप पर था.
प्यार शब्द का अर्थ भी पत नही कितना छोटा लगा लिया अपने जो हवा हो गया....
"प्यार तो शब्द था
उड गया
हवा के साथ
हवा होकर।"
प्यार तो अजर अमर होता है. एक यही शब्द तो ब्रह्म तक को समेटे हुए है....!
जब नारद पर मैंने पढा "मेरा कुछ सामान्" तब मैंने सोचा शायद आप का सामान चोरी हो गया...मगर यहां आ कर देखा तो... आपको कु खोया हुआ मिल गया है... बधाई हो...लड्डू कहां हैं
नोटपैड है न आपके पास नोट कर लीजिये...हमारी फरमाइश
वैसे मिला हुआ सामान बहुत ही दिलकश है
यह तो खोया-पाया विभाग वाला मामला निकला :)
अच्छा हुआ अच्छी कविता मिल गई और आपने परोस दे. खोजिये शायद और मिल जाए.
खोज जारी रखो. ठीक सामान मिल रहा है खोया हुआ...
हम सब के भीतर एक गुलज़ार है । उसे गुलज़ार करते रहिए ।
रवीश
कस्बा से
अच्छी खासी थीं आप, अब पहले तो पीएच.डी. हुईं और लीजिए अब कवि भी हो गईं(प्रियंकर भैया देखेंगे तो कहेंगे कवयित्री लिखो)
:
:
खुदा (अगर कहीं है तो) न जाने और क्या क्या दिखाएगा।
योगेश , मोहिन्दर जी,सन्जय जी उडन तशतरी जी,व रवीश जी धन्यवाद ! कुछ नया आजकल नही लिख्ती। आपके प्रोत्साहन से [ मसिजीवी जी के अनुसार} लगता है बेकार हो कर मानूगी। मसिजीवी सेन्स आफ़ ह्यूमर बनाए रखे.मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है.
Bahut din beete ... kutch naya nahi likha aap ne kya baat hae..... note pad nahi mil raha ya kalam gum ho gayee....ha ha...lighter side.....vayast lagti hein aap... pathak pratiksha mein hein
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