विज्ञापन हिन्दी-लेखन की अद्यतन विधा है [यह मेरा मानना है]।पॉपुलर भी [नही है तो हो जाएगी]।हाशियाई विमर्श में हम दोनो ओर हैं। कुछ प्रसंगों में मुख्यधारा और कुछ म्रं सीमांत या हाशिये पर हैं।जहाँ हम मुख्यधारा हैं वहाँ हाशिये के प्रति सम्वेदनशीलता लाख प्रतिबद्धता के बाद भी नही आ पाती ।इसलिए जब नौकर पर एक कहानी लिखने का सोचा तो नही लिख पाए। आराम और फुरसत से ब्लाग लिखते हुए अपने नायक के सन्दर्भ में फुरसत की बात जम नही रही थी ।नौकर का फुर्सत और आराम मे होना या कहें अस्मितावान होना मालिक होने के भाव को चुनौती देता है ।इसलिए कहानी का केन्द्रीय भाव पकड नही आता था । कहानी का फॉर्म नही जम रहा था ।तभी यह अद्यतन विधा याद आयी । यूँ भी कहा जाता है [पता नही कहाँ कहा जाता है ] कि लेखक विधा नही चुनता उसका कथ्य अपने लिए उपयुक्त विधा का चुनाव अपने आप कर लेता है । सो हमारे कथ्य और मंतव्य ने अपने लिए विज्ञापन विधा का चुनाव स्वयँमेव कर लिया ।
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चाहिये एक फुल-टाइम ,घरेलू,गधेलू, जड ,जवान,स्वस्थ नौकर [बच्चोँ को प्रेफरेंस दी जाएगी ]जिसे थकान न होती हो ;होती भी हो तो बताए न, जो कम रोटी और कम नीन्द पर ज़्यादा काम कर सके,जिसे आराम हराम हो ,जिसे अखबार पढना,चिट्ठी लिखना न आता हो ,जिसकी किसी समसामयिक विषय पर अपनी कोई राय न हो, जिसके चहरे पर आशा और आँखों में सपने न हों ,नौकर होने के कारण जिसके हाड-गोड आसानी से तोडे जा सकें,जिसका परिवार न हो, हो तो गाँव में हो जहाँ उसे जाने की छुट्टी नही दी जाएगी क्योंकि गाम जाकर ये नौकर जात वापस नही आते, विवाह की आज़ादी नही होगी ,विवाहित होने पर पत्नी-बच्चे गाँव मेँ ही रहे तो अच्छा ,दोस्ती-मित्रता की आज़ादी नही होगी ,जो सबके सोने के बाद सोए और सबके जागने से पहले जाग जाए,जिसके रीढ की हड्डी और गर्दन की हड्डी न हो या तोडी जा चुकी हो और वह गर्दन सीधी करके खडा न हो सकता हो लेकिन काम करने का उसमें ज़बर्दस्त जोश हो , ,जो परेशान होकर भागने का प्रयास न करे अन्यथा चोरी का केस लिखवा कर पकडवा लिया जाएगा [पिटाई होगी सो अलग] ,जो डाँट खाने पर मुँह न खोले ,वफादारी में कुत्ते के समान, स्वभाव में गऊ , बोलने में बकरी समान , बोझ ढोने में गधे के समान, फुर्ती में घोडे के समान उपयोगिता में बैल के समान और मालिक के सामने मेमने के समान् हो। और अंतत: वह सिर्फ और सिर्फ नौकर हो ।
बीमारी व दुर्घटना की स्थिति मे इलाज की गारन्टी नही ।योग्य उम्मीदवार सम्पर्क करे-बाक्स नम्बर -१०००
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9 comments:
आजकल जी ऎसे नौकर कहां मिलते हैं ! अब पहले वाली बात कहां ! आजकल के नौकर तो जी सिर पे चढके बैठ जाते हैं ! हाय हमारी किस्मत मिसेज फलां के तो क्या बढिया नौकर है दिन भर शापिंग कर सकती हैं ! हम तो जी जरा सॉफ्ट होके पेस आते हैं तो हमारे तो जी कोई काम धाम नहीं करते खाते मन मन भर हैं मारो तो भी असर नहीं जी ..अब क्या बताऎ हम तो बहुत परेशान हो लिए...
आजकल जी ऎसे नौकर कहां मिलते हैं ! अब पहले वाली बात कहां ! आजकल के नौकर तो जी सिर पे चढके बैठ जाते हैं ! हाय हमारी किस्मत मिसेज फलां के तो क्या बढिया नौकर है दिन भर शापिंग कर सकती हैं ! हम तो जी जरा सॉफ्ट होके पेस आते हैं तो हमारे तो जी कोई काम धाम नहीं करते खाते मन मन भर हैं मारो तो भी असर नहीं जी ..अब क्या बताऎ हम तो बहुत परेशान हो लिए...
देखिये आप पहले ये समझ ले कि हम खाना नही पकायेगे,कपडे नही धो सकते,बर्तन नही माजेगे,बाजार से सब्जी वगैरा की उम्मीद मत रखियेगा,हमे ब्रेकफ़ास्ट लंच और डिनर टाईम से चाहिये वो भी अच्छा ,हम आपके पति देव की तरह कुछ भी कभी भी नही खा सकते और आपके यहा टी वी ,वी सी डी /डी वी डी प्लेयर है क्या..?अगर नही है तो तो मगांले..और तनखा कितनी देगी ये हमे मेल करदे हम सोचेगे आपके यहा काम करने की..
दुख की बात यह है कि इन शर्तों पर भी कुछ लोग काम करने को राजी हो सकते हैं..
जब विज्ञापन दे दिया है तो दो ठो ढ़ूंढ लेना-एक हमारे लिये भी. विज्ञापन का खर्चा भी आधा आधा. अरुण की अर्जी पर ध्यान मत दें, बहुत मँहगा दिखता है.
अभयजी ने हमारे दिल की बात पहले ही कह दी है।
आपके लेखन से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। आप कुछ भी लिखें अच्छा ही लिखती हैं। आपको नमस्कार।
अब :-
"जिसे अखबार पढना,चिट्ठी लिखना न आता हो" .. ऐसा नौकर हैं तो सही पर ये बतलायें वे आपका यह विज्ञापन कैसे पढ़ें ?
Main taiyar hoon...aur maaf kijiye ye blog maine khud nahin padha kisi se padhwaya hai...
हे भगवान मुझे मालिक मत बनाना!
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