Friday, September 28, 2007

महापुरुष उदास है

प्रमोद जी का महापुरुष उदास हैऔर अकेला है बेवकूफ बुद्धिजीवियोँ के बीच । मुझे भी हमेशा से लगा किताबें खरीदना [जो पडी रहेंगी शो केस में अपना सारा वज़न लिए], फिक्की के सेमिनार और पुस्तक विमोचन , मण्डी हाउस के बेवजह चक्कर , श्रीराम सेंटर के नाटक , आई आई सी और आई एच सी की गोष्ठियाँ और प्रदर्शनियाँ बेवकूफ बुद्धिजीवियों की बौद्धिक अय्याशी के अड्डे हैं । सोचना और उस सोच पर दुनिया को कायल् कर देना शगल है । ज्ञानदत्त ने सही पहचाना । कभी कभी एक ही के भीतर महापुरुष और बेवकूफ बुद्धिजीवी एक साथ होता है ।विखंडित स्व । स्प्लिट पर्सनैलिटी ।पर अलग भी होता है ।बेजी जी ने कहा –
महापुरुष ज्ञानियों के बीच हो या अज्ञानियों के बीच अकेला ही होता है।

हाँ पर खुश होने और रहने का ताल्लुक ज्ञान से है मैं नहीं मानती। (यकीन नहीं हो तो मुझे ही देख लें :)))
दोनो बातों से सहमत हूँ ।पर व्याख्या अपेक्षित है ।मेरा आशय भिन्न है ।कुछ कबीर की तरह है ---
सुखिया सब संसार है खावै और सोवै दुखिया दास कबीर है जागै और रोवै
जिसने ज्ञान पा लिया वह कभी खुश रह ही नही सकता ।खुशी का ताल्लुक बेखबर रहने से है ।अज्ञानी होने से है ।बच्चा जब तक दुनिया के दर्द-रंज जान नही लेता वह खुश है । अबोध है मासूम है तो सब आनन्द है ।आनन्द पर वज्रपात होता है जब जान जाता है संसार को । सुख का भोंथरापन समझ लेने के बाद चैन नही मिलता ।कबीर ने जाना कि सुख और खुशी भ्रम है क्षणिक हैं ।जिनके पीछे पगलाई भीड भाग रही है वह वस्तुएँ कितनी सारहीन हैं । इसलिए कबीर दुनिया के इस चलन को देखता है और दुखी रहता है । कैसे इनसान खुद को मूर्ख बनाता है और जिए जाता है । इसलिए प्रमोद जी का महापुरुष दुखी है । वह जानता है ।बौद्धिक होना , बने रहना और दिखना क्या है । ए.सी. की हवा खाते नाटक का मंचन होते देखना और हाशिये के लोगो पर बात करना और मुद्दों को चाय-समोसे के साथ उडा देना।महापुरुष दुखी ही रहेगा और अकेला भी ।बेवकूफ बौद्धिक जब तक अज्ञानी है वह अय्याश है और उसकी हर चिंता फैशन है ।

8 comments:

Anonymous said...

कुछ कुछ महापुरुष या महामहिला टाइप ज्ञानयुक्त बातें है.बातें अच्छी हैं.उनका सार गहरा है.

अनामदास said...

आपसे पूरी सहमति के साथ...

http://anamdasblog.blogspot.com/2007/05/blog-post_18.html

अगर न पढ़ा हो तो देखें...

Udan Tashtari said...

गहन दर्शन है इस बात में-बेवकूफ बुद्धिजीवियों की बौद्धिक अय्याशी के अड्डे .

ALOK PURANIK said...

आप तो घणी सीरियस हो लीं। इत्ती सीरयसता सिर्फ व्यंग्यकार को शोभा देती है।

रवीन्द्र प्रभात said...

लेख गम्भीर रहा…बहुत खूब्॥धन्यवाद

Anonymous said...

प्रिय सुजाता जी,
मैं वेबदुनिया की ओर से आपको यह पत्र लिख रही हूं। हिंदी पोर्टल वेबदुनिया से तो आप वाकिफ ही होंगे। वेबदुनिया ने हिंदी ब्‍लॉग्‍स की दुनिया पर एक नया कॉलम शुरू किया है – ब्‍लॉग चर्चा। इस कॉलम में प्रत्‍येक शुक्रवार हिंदी के किसी एक ब्‍लॉग के बारे में चर्चा होती है और ब्‍लॉगर के साथ कुछ बातचीत। अपने इस कॉलम में हम आपका ब्‍लॉग भी शामिल करना चाहते हैं। आप अपना ई-मेल का पता और मोबाइल नं. कृपया नीचे दिए गए पते पर मेल करें। फिर आपसे फोन पर बातचीत करके हम आपका ब्‍लॉग अपने इस कॉलम में शामिल करेंगे।
manisha.pandey@webdunia.net
manishafm@rediffmail.com

शुभकामनाओं सहित
मनीषा

विनीत कुमार said...

आपकी तरह गंभीर नहीं हूं लेकिन गंभीर गुरु का साथ मिला है,तिवारी सर से आपके बारे में सुनता रहता हूं कभी गाहे-बगाहे पर आएं...

Batangad said...

मैं महापुरुष नहीं बनना चाहता!