अशोक कुमार पाण्डेय said...
अरे अविनाश जी
विगत दस पान्च सालो का एक गाना बताइये जो स्त्री विरोधी ना हो!
फ़िल्म अब बाज़ारू माध्यम है और बाज़ार के लिये औरत की देह एक सेलेबल कमोडिटी तो और उम्मीद क्या की जाये।
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यूँ मै भी सहमत हूँ कि पंजाबी मे इस तरह की प्रेमभरी झिड़की लड़के लड़कियों को दी जाती है,मोए,मरजाणे,फिट्टे मूँ वगैरह वगैरह ....गाना लोकप्रिय हो रहा है...
पर फिलहाल मै सोच रही हूँ कि एक गीत कम से कम बॉलीवुड मे ऐसा है जो स्त्री विरोधी नही सुनाई देता, हालाँकि देखने से गीत मे हलकापन आता है पर सुनने पर यह किसी चोखेरबाली के शब्द प्रतीत होते हैं।हमारी तो बिन्दिया चमकेगी और चूड़ी खनकेगी , आप दीवाने होंते हों तो होते रहिए हम अपना रूप कहाँ ले जाएँ भला!!हम तो नाचेंगे आप नाराज़ होते हों तो हों!जवानी पर किसी का ज़ोर नही,इसलिए लाख मना करे दुनिया पर मेरी तो पायल बजेगी,मन होगा तो मैं तो नाचूंगी, छत टूटती है तो टूट जाए।और उस पर भी गज़ब लाइने यह कि - मैने तुझसे मोहब्बत की है, गुलामी नही की सजना ,दिल किसी का टूटे चाहे कोई मुझसे रूठे मै तो खेलूंगी , यारी टुटदी है तो टुट जाए।जिस रात तू बारात ले कर आएगा , मै बाबुल से कह दूंगी मै न जाऊंगी न मै डोली मे बैठूंगी , गड्डी जाती है तो जाए।फिल्म के सन्दर्भ से परे हटाकर ,एक प्रेमी को प्रेमिका की यह बातें कहते सुनें तो मुमताज़ चोखेरबाली ही नज़र आएगी।
आप सुनिए और बताइए -
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6 comments:
सही आत्मविश्वाश है.. "मैने तुझसे मोहब्बत की है, गुलामी नही की सजना"..
आपके इसी हुनर से तो जीनत है
हुस्न पर इतना नाज़ भी अच्छा नही मगर बेबाकी की दाद देनी पडेगी
बहुत सटीक..टूटने दो छत!! :)
आनन्द बक्शी गजब के गीतकार थे.. और मुमताज के बिन्दासपन का कोई सानी नहीं.. खोजने पर और भी मिसाले मिल जाएंगी.. कुछ भी नितान्त एकाश्मी और सपाट नहीं होता।
बढ़िया पोस्ट है आप की!
kya khwahish hai, kuchh to samajh aaye?
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