Wednesday, April 28, 2010

आप कितने बड़े "मैंने" हैं

आप अक्सर कुछ लोगों से बात करना , मिलना अवॉइड करना चाहते हैं अलग अलग कारणों से।स्वाभाविक भी है।हर किसी से नही मिलता मन। लेकिन दुनिया ऐसे नही चलती न!कभी न कभी आपको उनसे टकराना ही पड़ता है।रियल दुनिया की दोस्ती छोड़कर आप वर्चुअल स्पेस मे ही भाग कर क्यों न आ जाएँ ..आप उस प्रवृत्ति से बच नही सकते जिसे हम अपनी मित्र मंडली मे "मैने" कहकर अभिव्यक्त करते हैं।

ये मैने कौन होते हैं?

मैने वे है जो आत्माभिभूत हैं और साथ ही जिन्हें लगता है कि समाज -बिरादरी -मित्र मण्डली में अपेक्षित स्थान सम्मान और आदर उन्हे नही मिल रहा जबकि वे तो कितने महान हैं।
आप उनसे टकराए नही कि उधर से शुरु हो जाएगा ....." आप ऐसा कैसे कह सकते हैं मैनें ज्ञान-विज्ञान का प्रसार किया है, मैने अपने सारे अंग मृत्यु से पहले ही दान दे दिए हैं, मैने अपनी पत्नी को अधिकार दिए हैं, मैने अपना पतिव्रत धर्म निभाया है, मैने तो ...मैने कभी किसी का अहसान नही लिया...मैने कभी बे ईमानी ....मैने ये.. मैने वो .... अरे आप क्या समझते हैं मैने सारी ज़िन्दगी हिन्दी की सेवा करने मे बिता दी....भई मैने ..........
मैने किसी की एक भी फालतू बात नही सुनी आजतक .. मैने अपने बच्चों को सबसे अच्छी एजुकेशन दी है , मैने तो अपने बच्चों को हमेशा फ्रीडम दी है.मैने... मैने ...मैं तो साफ साफ बात करता हूँ हमेशा चाहे बुरी लगे .... मै बहू-बेटी (या बेटा-बेटी भी हो सकता है) मे कोई फर्क नही करती ....

"मैनें तो हमेशा ही सधी हुई लेखनी चलाई है ... मैने हिन्दी ब्लॉग जगत मे हमेशा ही विवेक - विश्लेषण की चेतना पैदा करने की कोशिश की है....आप क्या जाने मैनें हिन्दी ब्लॉग जगत मे किस किस बात का प्रसार किया और इसी मे अपना जीवन लगा दिया...मैने हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए ...ब्ला ब्ला ....मैने हिन्दी ब्लॉग जगत मे ...ब्ला ... ..मैने ....मैने ...मैने.......

और आप मेरी मेहनत को क्षण भर मे एक खराब टिप्पणी करके नष्ट कर देना चाहते हैं ....मैने कभी किसी को खराब कमेंट नही दिया...मैने कभी किसी की पोस्ट की बुराई नही की..... मैने किसी विवाद का आगाज़ नही किया ......मै तो आपके ब्लॉग पर कभी नही गया आपको ही क्या ज़रूरत पड़ी थी यहाँ आकर मवाद बिखेरने की...
हुँह !

आप जानते हैं मैने कैसे कैसे हालात मे अपना कॉलम लिखा है ?अपनी बीमारी के बाद अस्पताल से निकलते ही मैने फलाँ को बेटी के अपार्टमेंट में बुलाकर अपना कॉलम लिखवाया और नियत समय पर 'हँस' मे भेजा ..और आप यूँ की कह देते हैं कि हमने फलाँ लेख गलत लिखा (यह हिम्मत!!) साहित्य के लिए मैने जो जो सहा है कोई नही सह सकता , सबसे बढकर मैने हिन्दी की जितनी सेवा की है वह कोई नही कर सकता (निराला या कोई प्रेमचन्द भी नही) इतने साल मैने साहित्य के लिए झोंक दिए।मैने हमेशा प्रतिक्रियाओ का सम्मान किया।मैने कभी रुपए पैसे का हिसाब नही रखा।
और आपने किया ही क्या है जो टिप्पनी करने चले आते हैं?


आप हँसते हँसते कहेंगे कि जी हाँ आपने , आपने , आपने ....
सब कुछ आपने ...
हम तुच्छ प्रानी जाने क्यों इस धरती पर कीड़ों की तरह बिलबिला रहे हैं जबकि सारी क्रांति , सारा धर्म कर्म , सारा ज्ञान विज्ञान का प्रचार , सारी विद्वत्ता , सारा परोपकार तो आप ही करते आए हैं कर रहे हैं!!हम तो बे ईमान हैं, कामचोर हैं, हिन्दी की सेवा नही करते, विज्ञान का तो भी नही जानते,बच्चों को सबसे घटिया सस्ते स्कूल मे पढाते हैं,सबकी फालतू बात भी हम ही सुनते हैं...उधार करते हैं, हम अधर्मी हैं ....सबके अहसान लेते हैं ...हम साफ बात नही करते.. आप धन्य हैं ! अब हमे जाने दीजिए प्लीज़!अपन तो ये भी नही जानते कि यहाँ करने क्या आए हैं !
और आप पिण्ड छुड़ाकर भागेंगे।

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चिंता न करें , इस लेख की कोई कड़ियाँ नही आने वालीं। वैसे आप तो जानते ही हैं मैने कभी व्यक्तिगत आक्षेप नही किए , न ही मैने किसी का कभी दिल दुखाया , मैने तो यही सोचा है कि कुछ समझ का विस्तार हिन्दी ब्लॉग जगत मे कर सकूँ ... भई मैने तो मैने मैने कभी नही किया :)

14 comments:

Arvind Mishra said...

देखिये मैं (ने ) कहता था न ..आप कितनी मेधावी ब्लॉगर हैं ! आपको याद होगा !
बढियां लिखा है -चिट्ठाचर्चा लायक!

डॉ .अनुराग said...

यश की लालसा मुई बड़ी ख़राब चीज़ है .....

पदम सिंह said...

मै और मैंने दोनों की अति कहीं न कहीं हमें आत्म मुग्धि की ओर ले जाती है ... और इतने चुपके से कि कोई जान नहीं पाता कि कब हमने चारों ओर दीवार खड़ी कर ली है ... जिसके पार किसी का आना वर्जित होता है ... अहं का पहरेदार बैठा दिया जाता है ... कुल मिला कर आँखे होते हुए भी कुछ दिखाई नहीं देता ...
.... देखिये मैंने कितनी अच्छी बात कह दी मजाक मजाक में :)

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत अच्छा विषय है... शायद लोग 'हम' के बजाय 'मैं' को महत्व देने लगे हैं, इसलिए भी कई समस्याएं पैदा हुई हैं...

कोई भी 'सभ्य' व्यक्ति कभी किसी पर 'व्यक्तिगत आक्षेप' नहीं लगाता... यह काम तो 'असभ्य' लोग ही करते हैं...
शानदार लेख के लिए बधाई...

Anonymous said...

excellent post and i do remember most episodes mentioned in here !!!!!!!!!!!!!!!!!

ZEAL said...

Interesting post !

कुश said...

और ऐसे 'मैंने' लोगो को लप्पड़ भी वैसे ही लगायी जाती है जैसे आपने इस पोस्ट में लगायी है.. बेचारे 'मैंने'

rashmi ravija said...

इन 'मैंने' वाले लोगों से तो बिलकुल नहीं बचा जा सकता....चाहे रियल वर्ल्ड हो या वर्चुअल...उन्हें अपने नाक के आगे दुनिया दिखाई नहीं देती...

अनूप शुक्ल said...

बिन्दास!

अविनाश वाचस्पति said...

बनना चाहिए वो आकाश
जिसमें मैंने बनकर उड़े
सब ओर दिखे
चहाचहाती फिरे
मैं ना मतलब मैना
भी हो सकती है
सबको सुंदर लगती है
बोली भी अच्‍छी होती है
बिना कहे सब कहती है
मैंने मैंने नहीं कहती
मैंना में ही प्‍यार की
बेलाग अभिव्‍यक्ति बहती है।

अजित गुप्ता का कोना said...

आपने मैंने साहब के बड़े गुणगान किए हैं। आपने तो ब्‍लाग जगत को एक दिशा दे दी है। आपके कारण ही हमारी सोच परवान चढ़ती है, बस आप हैं तो हम हैं। आपने इतनी अच्‍छी पोस्‍ट देकर हम सबको धन्‍य किया इसलिए हम आपके आभारी हैं। हा हा हा हा। अच्‍छा चिंतन।

सुजाता said...

अजीत जी , आप भी न ! हमे ही बना दिया :)

ajay saxena said...

सुजाता जी मैंने आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा ..फिर मैंने पढ़ा ...फिर मैंने कॉमेंट्स लिखने का मन बनाया ...मैंने लिखा फिर पोस्ट किया ...अमा यार मैंने शब्द है ही ऐसा जिसे हिंदी भाषी इस्तेमाल किये बगैर नहीं रह सकते ...पर आपने आत्म मुग्ध लोगो वाला मैंने पर प्रकाश डाला है जो की लाजवाब है ...निशित रूप से आप एक सधी हुई लेखिका है ...

लीना मल्होत्रा said...

pahli baar aapke blog par pahunchi hoon. poora padhe bina nahi jaaoongi.----nahi kaha (maine) :) . sundar.