आज कई दिनो बाद एक पोस्ट डाल रही हूँ वह भी कविता ... डरते डरते .... ।कई ब्लॉगर भयभीत रहते है और टेमा भी रहने लगे होंगे }॥ मुझे खुद भी कविता और कवि से बडी घबराहट होती है । कुछेक फिर भी पसन्द है जो नही पसन्द वे कूडा हैं:)वैसे कवि और उसकी कविताई मे बडी शक्ति होती है मॉस्किटो रिपेलेंट की तरह । यही कारणे हम आजकल कविता नही करते । पर मन तो बहुत होता है समीर जी ,घुघुती जी को देखकर। इसी से एक पुरानी कविता ,जिसे फेकने ज रहे थे ,फेंक नही पाए [क्योंकि कवि हमेशा इसी मुगालते में रहता है कि उसकी रचना में कुछ तो खास बात है ] ब्लॉग पर डाल रहे है । अब इसे फेंक भी दें तो साइबर पिता हमेशा अपनी गोद मे सम्हाले रखेंगे ।
तो प्रस्तुत है
*******
जब रोशनी खत्म् हो जाती है
पूरी तरहबन्द हो जाता हैकुछ भी दिखना
औरफटी आँखों सेअन्धेरा छानते
यह एहसास हो आता है
कि
दृष्टिहीन हो गये है हम ही
तो सहसा एक क्षुद्र जुगनू
तमस् में टिमटिमा कर
जतला देता हैआँखों को
कि असमर्थ नही है वे और
यह दोष नही है उनका
बात है इतनी
कि वक्त रात का है
और बह रही है कालिमा
आच्छादित है अमा
आज निकलेंगे नही तारे न कोई चन्द्रमा
इसलिये पौ फटने तक
तुम्हे करनी होगी प्रतीक्षा ।
******
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
10 comments:
ना तो हम कवि हैं ना ही हमें कविता की समझ है ..इसलिये ना तो कूड़ा कह सकते हैं ना ही ..... लेकिन कविता अच्छी ही लगी...
बहुत अच्छा लिखा है
आपने अमावस की बात की तो ये गीत याद आ गया
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है...
अच्छा लिखा है पर कविता अचानक ही ठहर गई सी लगती है...नयी सुबह पर अपनी आस्था को प्रकट करने के लिए कुछ ओर पंक्तियां जोड़ी होतीं तो ये प्रतीक्षा और भली लगती !
लगता है कुछ कविता की तरह का ही चेहरा खिला है…। :)
बहुत दिनों बाद मिलना हुआ आपसे. कहीं बाहर गई थीं क्या.
हम तो कब से प्रतीक्षारत हैं कि कब आप आयें और हमारी तुकबन्दी पर अपनी प्रतिक्रिया दें मगर आप है कि न जाने कहां चले गये...
सुन्दर रचना है आप की और हमारी प्रतीक्षा समाप्त करने के लिये धन्यवाद
वाह, बड़ी बेहतरीन वापिसी रही, बधाई.
वैसे अगर यह पोस्ट आपकी जगह फुरसतिया जी लिखते तो, कुछेक फिर भी पसन्द है जो नही पसन्द वे कूडा हैं:), कूडा में हमारा लिंक जरुर लगा देते. :) हा हा!! आपने बक्शा, साधुवाद.
अच्छा हुआ जो फेंका नही। कविता अच्छी लिखी है।
कविता दिल से निकलती है इस लिए सुन्दर होती है।अच्छी रचना है।बधाई।
अच्छा आशावादी स्वर है। आज जो कूड़ा है वह कल प्रसंस्करण के बाद ऊर्जा बनेगा। समीरजी की कुछ कवितायें भी होंगी उसमें।
Post a Comment