“मैं बेकसूर हूँ जज साहब , मैने कुछ नही किया, मेरा यकीन कीजिये, मुझे फँसाया गया है .......” इस तरह की रिरियाहटें और “मैं जो कहूंगा सच कहूंगा ,सच के अलावा कुछ नही कहूंगा ” जैसे पिटे हुए वाक्य अक्सर हिन्दी फिल्मों के अदालती दृश्यों में सुन-दिख जाते हैं ।और नीर-क्षीर-विवेक सा न्याय का न्याय और अन्याय का अन्याय [दूध का दूध और पानी का पानी भी कह सकते है ] हो जाता है । खलनायक और उसके साथी सलाखों के पीछे जाते हैं ।अगर यह फिल्म का अंत हो तो दयनीय भाव के साथ अगर फिल्म का मध्य हो तो गर्दन झटकते हुए ‘तुझे तो मै देख लूंगा’ वाले अन्दाज़ में ।शुरु में भी और मध्य में भी हम जानते हैं अपराधी-दोषी कौन है;यह भी जानते हैं कि उसे सज़ा मिलेगी अवश्य । लेकिन वस्तुजगत में क्या न्याय की प्रक्रिया इतनी ही त्वरित और सजग है ? क्या हम न्यायालय में इंसाफ के अलावा कुछ नही मिलेगा पर यकीन कर सकते हैं ?शायद उत्तर नकारात्मक है । वकालत एक बदनाम पेशा है और असली गुंडों के साथ साथ वर्दीधारी ,कुर्सीधारी,उद्योगपति गुंडे भी हैं ।ऐसे में न्यायालय की सक्रियता और सज़ाओं का दौर चौकाने वाला है ।जनसत्ता का आज का मुखपृष्ठ अलग अलग चार खबरों में 59 लोगों को[गिनती गलत हो तो माफ़ करे हमारा गणित बहुत कमज़ोर और गरीब है] विभिन्न केसों में उम्रकैद के फरमान की तफ़सील दे रहा है ।दस साल पहले दिल्ली के कनॉट प्लेस में फर्जी मुठ्भेड कर के दो व्यापारियों की हत्या करने वाले दस पुलिसवालों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है ।फरवरी 1998 यानी 9 साल पहले कोयम्बटूर में लालकृष्ण आडवाणी की हत्या की साज़िश रचने और सिलसिलेवार बम विस्फोटों के लिए 31 दोषियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी है ।वहीं नेता भी इस से नही बचे। 2003 में चर्चित् मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि को सपत्नीक व दो अन्य को उम्रकैद का फरमान सुना दिया गया है। दिसम्बर 1992 यानी 15 साल पहले बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के गुस्से में कानपुर में 11 लोगों को जलाने के मामले में 15 लोगों को अदालत ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई है ।इनमें कोयम्बटूर वाले केस में कई अपराधियों को दोहरी-तिहरी-और चार बार उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है ।अब्दुल ओज़िर को 125 साल कैद की सज़ा सुनाई गयी है । वही फर्जी एंकाउंटर केस में सी बी आई ने दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी ।
यह खबरें क्या संकेत करती हैं ? अदालती प्रक्रियाओं पर यकीन लौटाने में इनसे मदद मिलेगी ? या सर्वोच्च न्यायालय तक जाकर स्थितियाँ पलटने वाली हैं ? मै अब भी निष्कर्ष निकालने में असमर्थ हूँ । क्या न्याय-प्रक्रिया अपनी निरंतर होने वाली आलोचनाओं से झटका खाकर हरकत में आ गयी है ?सच का कितना और कौन सा अंश हम तक पहुँच रहा है ? क्या हमें आनन्दित होना चाहिये ? मै हतप्रभ हूँ ।
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9 comments:
मैं भी हतप्रभ हूँ.
एकाएक मानो न्याय की होलसेल की दुकान खुल ली हो.
हतप्रभ होने पर और गणित की काबिलियत पर सेम पिन्च है जी.
पढ़ना तो बहुत हो जाता है लेकिन टिप्पणी देने का अवसर आज मिला. आए दिन ऐसी खबरें सुनकर पढ़कर मन डूबने लगता है.
लेकिन जानना भी ज़रूरी है कि देश मे क्या हो रहा है.
शायद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा। आप, मैं नहीं हर कोई हतप्रत: है। फिर भी मन में एक अन्जानी आशंका है कि कहीं ये अपराधी सर्वोच्च न्यायालय तक जा कर छूट ना जाये।
आपके लेखन में जीवन की सच्चाई प्रतिबिंबित है.काफ़ी गंभीर अनुभूति न्याय की...!
वाकई हतप्रभ करने वाली जानकारी है।
लेकिन फिर भी "मेरा भारत महान है"।
abhee nahaa nayaa blogger hooN. aas pass jhaank kar dekh rahaa hooN ki kya kuchch kikhaa jaa rahaa hai. aaj aapka nymber lag gyaa.jyadatar rachnayeiN parh dalee.
aapki soch mein baicheni hei. bheetar kaheen aag hai.aur shabdoN mein voh ssg jhalaktree hei.
roman mein likhaa jana maaaf ho, kyonki mera pc mahaan. kabhee unifriendly nahee bhee hota.
suraj
सचमुच विचारणीय है। महत्वपूर्ण बात उठाई है।
तम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !
इसे सुखद संयोग कहें या फिर महज इतेफाक?...
"जब जागो तभी सवेरा" वाली बात अगर सच साबित हो आने वालो दिनों या सालों में तभी इस खबर पर संतोष होगा...
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