Tuesday, March 4, 2008

कॉक्रोचों पर अत्याचार क्यों ?


नोट --ये एक अत्यंत गम्भीर पोस्ट है जो बहुत बडे प्रश्नों को उठाती है , कृपया इसे हास्य-व्यंग्य समझ कर अनदेखा न करें

कोई हमें निहायत असम्वेदनशील कहेगा अगर हम कॉक्रोचों का पक्ष लेने वालों पर हँसने लगें । आखिर वे भी इस जगत के जीव हैं और उन्हें भी किसी मच्छर मक्षिका की तरह जीने का हक है । और ब्लॉग बनाने का भी है । जब बैलों का हो सकता है तो कॉक्रोचेज़ का क्यो नही । हर जीव की अपनी उपयोगिता है । जीवन चक्र में से एक को भी माइनस कर दो तो सबै ब्योबस्था गडबडा जायेगी ।{खिचरी भाषा के लिये मुआफ करें , स्पॉंटेनिअस विचार ऐसी ही भाषा मे आते है :-)}आखिर कॉक्रोचेज़ कितने ज़हीन प्राणी होते हैं । और उतने ही सम्वेदनशील । जब हम लोग खा पी कर रात को चैन की बंसी वगैरह बजा रहे होते हैं तभी ये लोग दबे पाँव रसोई के अन्धेरे में उजागर होते हैं ,किसी देवदूत की तरह और सुनसान पडी रसोई को अपनी धमाचौकडी से गुलज़ार करते हैं । बेलन- कलछी -चम्मच के ये उजाड के साथी हैं ।ये न हों तो छिपकलियाँ क्या खाकर जियेंगी :-( पुरुषॉ को इनका विशेष आभारी होना चाहिये । ये विपदा बन कर स्त्री के सामने खडे हो जाते हैं और कामिनी को उनके नज़दीक लाते हैं । ये अपनी जनसंख्या को तेज़ी से बढाने मे माहिर है इस मायने में विशुद्ध भरतीय हैं । यूँ ही नही गूगल पर कॉकरोचेज़ के इतने सारे पेज दर्ज हैं ।वैसे आप सोच रहे होंगे कि इस कॉक्रोच - गुण -कथन का उद्देश्य क्या है । यूँ तो मानने को बहुतेरे हैं । न मानने को एक भी नही । पर फिलहाल एक सॉलिड कारण बता देते हैं ।
कॉक्रोचेज़ के प्रति हमारे मन में जो पूर्वाग्रह थे वे पिछले 15 दिन के मंथन के बाद दूर हुए । मंथन तब चालू हुआ जब हमने एक प्रेमी , अजी जीव-प्रेमी और कौन का प्रेमी ?, का "हिन्दुस्तान " में { हिन्दुस्तान दैनिक अखबार को कह रहे हैं , वैसे यह हिन्दुस्तान नामधारी राष्ट्र के नाम भी एक सन्देश ही समझा जाये } खेदजनक पत्र पढा जो उन्होने सम्पादक के नाम लिखा है । सम्पादक भी बडे रसिया हैं , मनबसिया हैं जो ऐसा पत्र छाप के होली की छेडछाड अडभांस में कर दिये हैं ।
पेश है पत्र -

क्या कोई और जीव भी ?

कॉलेजों में डिसेक्शन की प्रक्रिया के लिए महाराष्ट्र सहित देश भर के कॉक्रोचेज़ का प्रयोग हो रहा है । पहले मेंढक ,फिर चूहा और अब कॉकरोच ,विज्ञान के प्रयोगों के बलि चढते जा रहे हैं । कॉकरोच जैसे बेज़ुबान प्राणी पर यह अत्याचार ही तो है ।इस समाज में कॉकरोच गन्दगी का सूचक है तो क्या इनसान किसी से कम है ? महाराष्ट्र में क़ोलेज की डिसेक्शन प्रक्रिया के लिए एक -एक छात्र को असली आठ-आठ कॉकरोच चाहिये । यह कहाँ का इंसाफ है ? क्या पूरी कक्षा ही एक कॉकरोच से अपना प्रेक्टिकल पूरा नही कर सकती । पर्यावरण में कॉकरोचों का भी योगदान है । बच्चे कॉकरोचों से डरते नही । बल्कि इनकी मातारँ इनको दूध पिलाने के लिए कॉकरोचों से डराती हैं ।राजेन्द्र कुमार सिंह
से-15
रोहिणी
दिल्ली ।
{मुझे पूरा विश्वास है कि इस पत्र को सम्पादक ने एडिट किया है । जिस कारण हम कॉकरोच सम्बंन्धी अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियों से वंचित रह गये हैं । कोई भला मानस इस पत्र के लेखक को ब्ळॉग बनाकर अपनी बात कहने का लोकतांत्रिक माध्यम दिखाये ।}

तो दुनिया के कॉक्रोचेज़ एक हो जाओ !

हम बुद्धिजीवियों ने तुम्हारे लिये आवज़ बुलन्द की है । यूँ भी गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक कहती हैं न "कैन दि सबॉल्टर्न स्पीक ?" और ये भी कि बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है कि वे निम्नवर्ग , दलित , शोषित के लिये आवाज़ उठायें क्योंकि वे खुद नही उठा सकते ।
एक विपरीत मत ये भी है कि -

खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर स्प्रे से पहले , घर का मालिक तुझसे खुद पूछे -बता तरी रज़ा क्या है !वाह ! वाह!
अब ये कॉक्रोचेज़ का निजी मसला नही रहा । ये समाज का प्रश्न है जैसा कि राजेन्द्र जी ने अपने पत्र में कहा है । कृपया उदारता पूर्वक इस पर विचार करें ।

9 comments:

अजय कुमार झा said...

sujata jee,
bada hee shodhparak lekh likh daalaa apne cokrochon par , un bechaaron ko to ye ilm bhee nahin hogaa. aur cokroch ke maadhayam se aur bhee bahut kuchh keh daalaa apne kaash wo alag type ke cokcrochon ko bhagaane ke liye finit mil paatee.

भोजवानी said...

कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपकी चिंता जायज है। भविष्य में आप जब कभी कॉकरोचों की यूनियन बनाएं, तो मुझे जरूर खबर करें, आपको मेरा खुला समर्थन रहेगा।

Udan Tashtari said...

विचारमंच पर विराजमान हो गया हूँ.

azdak said...

क्‍यों? क्‍यों? क्‍यों?.. एक ब्‍लॉग इसी पर हो! क्‍यों पर?

Anita kumar said...

:) बड़िया लिखा है

राज भाटिय़ा said...

कॉकरोच यूनियन जिंदा वाद, वेसे देखा जाये तो हिन्दू धर्म के अनुसार कॉकरोच भी कभी इन्सांन थे, या इस से उलट हम भी कभी कॉकरोच थे,सो आज से हम सब का नारा कॉकरोच हत्या बन्द करो,

सुजाता said...

कॉकरोच संरक्षण और यूनियन समर्थन के लिए सबका धन्यवाद !

Anonymous said...

http://bageechee.blogspot.com/2007/10/blog-post_3592.html
उपर दिए गए लिंक पर क्लिक करने पर आपको क्राकरोच की एक लाश मिलेगी जिसे चींटियों ने तलाशा है और उसे उठाए ले जा रही हैं और राम नाम सत है की आवाज लगा रही हैं।
यह कविता और चित्र आपकी क्राकरोच मुहिम के लिए बहुत काम की लगती है, इसे भी अपने शोध में शामिल कर सकती हैं.
वैसे यह कविता अचित्र नवभारत टाइम्‍स ऑनलाईन संस्‍करण में भी प्रकाशित हो चुकी है। इस तरह आपके अभियान को राष्‍ट्रीय अखबार नवभारत टाइम्‍स का समर्थन भी मिल गया समझो।
- अविनाश वाचस्‍पति