Thursday, December 13, 2007

मरने के अलग-अलग स्टैंडर्डस्

“हम न मरै मरिहै संसारा हमको मिला जियावन हारा” ये कबीर का कॉंन्फिडेंस है अपनी भक्ति और ईश्वर के प्यार में ।पर अपन पिछले कई दिनों से ,जब से मृत्यु के शाश्वत प्रश्न पर विचार कर रहे हैं , बडे परेशान हैं ।परेशानी का कारण वाकई बडा है । खुद मृत्यु से भी बडा ।न भक्ति की है न ईश्वर से प्यार । परलोक के लिए कुछ योजना नही बनाई । सच कहें त इहलोक की भी अभी तक कोई योजना बनाई नही जा सकी । इसलिए जब आस-पास वालों को बीमा एजेंटों से बात करते मृत्यु के बाद के जीवन पर चिंतित देखा तो होश फाख्ता हो गए ,यह सोच कर कि अपन तो अभी तक खाक ही छान रहे थे मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया .... वाले अन्दाज़ में और दुनिया बीमा करा करा कर कबीर का वही दोहा गुनगुना रही है –हम न मरैं....... पर हम तो अवश्येअ ही मरिहैं और फोकटी का मरिहैं और तिस पर भी सब स्टैंडर्ड मौत मरिहैं ,हमार का होई ?? बाज़ार देवता ने जियावन हारा का रूप धर लीन्हा है । उनके पास नई नई स्कीम है । बीमा एजेंट ने चिढते हुए कहा –“लोग कडवा सच नही सुनना चाहते ,हम मरने की बात करते हैं तो बुरा मानते हैं , मरना तो सच्चाई है ,कब मौत आ जाए क्या पता । इसलिए मौत के बाद की प्लानिंग करनी चाहिए ” मैक्स या फैक्स जाने वे कहाँ से जियावन हारा की फरिश्ता बन कर आयी थीं ।उदाहरण देने लगीं – एक व्यक्ति ने एक ही प्रीमियम भरा था और कलटी हो लिए दुनिया से ,हमने सारा पैसा दिया । हम ज़्यादातर को सारा पैसा देते हैं ।बस सामान्य ,प्राकृतिक मृत्यु नही होनी चाहिये ।एक्सीडेंट में फायदा है । वह भी विमान से हो तो और अच्छा !! –वे मुस्कराईं। ट्रेन, बसों में सफर करने वाले चिरकुट चिर्कुटई मौत मरते हैं और उसी हिसाब से उनका क्लेम बनता है ।देखा जाए तो ट्रेन बस से मरना ज़्यादा कष्टकर है ।और आएदिन ये दुर्घटनाएँ होती ही रहती हैं ।हो सकता है इसीलिए बीमा वालों की नज़र में यह घाटे का सौदा हो । हवा में मृत्यु के आसार भी कम होते हैं और यह शानदार भी है !! ऊपर से ऊपर ही हो लिए !! कोई कष्ट नही । न आत्मा को न परमात्मा को न यमदूत को। न मरने वाले के परिवार को ।खबर बन जाते हैं यह फायदा अलग से ।
अब हमारी चिंता का एही कारन है । निचले दर्जे का मौत नही न चाहिए और हवा में उडने के अभी तक कोई आसार नहीं । अभी तक की जिनगानी में एअरपोर्ट का दर्शन केवल् टी वी में ही किया है । अपनी-अपनी मौत –अपनी अपनी किस्मत । ज़िन्दगी के स्टैंडर्ड से ही मौत का स्टैंडर्ड तय होता है । हम समझ गये हैं ज़मीन पर मरने में कोई फायदा नही । जिनगी की खींचतान मौत के बाद भी बनी रहती है । सो पोलिसी अब तभी लेंगे जब हवाई सफर का कुछ जुगाड हो जाए । वर्ना तो क्या फर्क पडता है कैसे जिए और क्यूँ मरे ।जियावनहारा न हमारी भक्ति से प्रसन्न होगा न योग से न ज्ञान से । उसे धन चाहिये ।

7 comments:

Neelima said...

सही कहा !!:)

रवीन्द्र प्रभात said...

मृत्यु से पहले और मृत्यु के बाद की दोनों योजनायें आपकी अच्छी है , व्यंग्य और प्रस्तुति दोनों बेहतर है .

Sanjay Karere said...

अरे का फरक पड़ी स्‍टैंडर से मरी के फोकटी का मरी... मरे तो मरे ना.. वैसे हमऊं फोकटी का मरी, ई हम जानबे करे.
उ कलटी बाला लाइन बहुत अच्‍छा लगा.. कहां से सीखे इ भासा?

पुनीत ओमर said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और आप की शैली से प्रभावित हुए बिना रह ना सका. अच्छा लिखते हैं आप. बार बार आना पड़ेगा.

सुजाता said...

पुनीत संजय रवीन्द्र व नीलिमा जी
बहुत धन्यवाद !
संजय ,मीडिया ने बहुत कुछ सिखाया है ।वैसे यह बॉलीवुड की देन है ।

मीनाक्षी said...

:) हम बस आपके व्यंग्य को पढ़कर मुस्कुरा रहे हैं...!

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया व दिलचस्प लिखा है आपने । अभी तो आप लोगों याने बच्चों को ऐसी बातों पर विचार भी नहीं करना चाहिये । ये तो हमारा अधिकार है । आप बीमा अवश्य करवाएँ परन्तु इसलिये कि अपने आप बचत हो जाएगी ।
घुघूती बासूती