Wednesday, December 19, 2007

सेल.सेल सेल ..लूटो लूटो लूटो....उर्फ एक बकवास पोस्ट

अपटू 50% पढ्ते ही क्या आपका दिल मचला है कभी ? हमारा तो डोलता है जी । बडे बडे ब्रांड्स पर जब 2000 का कपडा 1000 में और 800 की जुत्ती 400 में मिलती है तो सबका मन डोलता है । ये ब्रांडस का चक्कर क्या है समझ नही आता ।जब कुर्ते के साइद कट से डब्ल्यू का लाल तमगा झाँकता है या कमीज़ की जेब के कोने में एरो या स्वेटर के सीने पर मॉंटे कार्लो धडकता है तो क्या कुछ अलग लगता है ? अगर लगता है तो क्यों ? कीमत की वजह से ?माने ब्रांड का मतलब है ऊंची कीमत ।खास । विशिष्ट । जो सब जैसा नही । कुछ सुघड लोग वैसा ही माल गैर ब्रांड दूकानों से आधी कीमत पर लाते हैं और हमें उनसे सबक लेने को दिल होता है ।पर सच कहें तो मोंटे कार्लों से कहीं बेहतर रेहडी पर से 150-200 रुपए का स्वेटर खरीदना जेब को भी माफिक पडता है ।ब्रांड के एक स्वेटर की कीमत में चार-पाँच आ जाते हैं । आप इसे चीपनेस भी कह सकते हो, चीप चीज़ें खरीदना ।पर मॉल के भीतर चकाचक दूकान में 1000 का पत्ता देते जी काँप उठता है ।एक बार लाल बत्ती पर अगर्बत्ती को बेचने वाला बहुत रिरियाया तो हमने 20 रु देकर खरीद ली । औटो वाला बोला -मत दो जी ये ऐसे ही मूर्ख बानाते हैं । तब सोचा कि मॉल के भीतर बडे ब्रान्ड के शोरूम में खडे हो कर अगर हम यह नही सोचते कि यह बेवकूफ बन रहा है तो अगर्बत्ती बेचने के लिए ट्रैफिक सिग्नलों पर दौड- धूप करते आदमी से बेवकूफ बनने से क्यो डरते हैं जो अकेला किसी की रोटी नही छीन रहा ,न किसी का हक मार रहा है,न चकाचौन्ध दिखा रहा है , जो ज़मीनों के बडे -बडे सौदे करते हुए झोपडियों को नही तुडवा रहा ।जो निरीह शायद उस 5-10 रुपए के फायदे में उस दिन अच्छा खाना खा -खिला सकेगा अपने परिवार को ।
खैर यह अवांतर कथा है , मुख्य प्रसंग है लूटो की मानसिकता में बेवकूफ बनना । ऐसा कई बार हुआ कि जो पसन्द आया वह सेल में नही था ,फ्रेश अर्राइवल था ।या जो पसन्द आया उस पर 15% ही छूट थी बाकि पर 50 या 70।
जो भी हो पर सेल हर आम को खास बनने का ,विशिष्ट होने का मौका देती है । सेल का चरित्र जनहितवादी होता है।जो यूँ न खरीदे सेल पढकर ज़रूर मुँह की खाता है सेल में दरबारे खास दरबारे आम के लिए खुल जाते हैं ।यह अवसरों की समानता का अच्छा उदाहरण् है । सेल में भी जो खरीदारी न कर सके ,ब्रान्ड न ले सके वह इस जगत में निश्चय ही झख मार रहा है ।दर असल सवाल मूर्ख बनने न बनने का नही है । बल्कि किससे मूर्ख बनें का है । यह चॉयस क सवाल है । क्योंकि मूर्ख बने बिना अब गुज़ारा नही । आप किससे मूर्ख बनकर आनन्दित होना चाहते हैं ?फटीचर से या करोडपति से ?

3 comments:

Anonymous said...

MAIN NE AISE BHI SHOPS DEKHE JAHAN SAAL KE BARA MAHINE 50% TO 70% DISCOUNT JARI REHTA HAI. HAIN NA TAJUB KI BAT!

SHUAIB
http://shuaib.in/chittha

अविनाश वाचस्पति said...

आप कर ही हैं सचेत
या खरीद चुके हों अचेत
सच्चाई यह भी है कि
बिना जरूरत के माल
भर लिया जाता है घर में
हमें तो यही समझ आया है
सेल का कमाल
वैसे तो यह बवाल ही है
सेल में मिले रूमाल
ऐसी भी सेज सजती हैं

अविनाश वाचस्पति said...

मेरी टिप्पणी में 1,2 पंक्ति यूं पढ़ें

आप कर रही हैं सचेत
या जो खरीद चुके हों, हों अचेत