Monday, April 7, 2008

चिड़चिड़ी पत्नी

झल्लाई औरत सुबह सुबह चकरघिन्नी सी भाग रही थी । सब ठीक ठाक निबट जाए यही सोच रही थी । रोज़ यही सोचती है ।कल जो कमीज़ बटन लगाने को दी गयी थी वह उसे भूल ही गयी थी । आदमी ने उसे लाकर रोटी बेलती औरत के मुँह पर पटका ।"तुमसे एक बटन नही लगाया जाता ,मेरे ही काम नही याद रहते !"औरत की आँख से झर् झर आँसू बहने लगे ।वह रोटी छोड़ कमरे की ओर लपकी तो आदमी बोला "अब कोई ज़रूरत नही है । मैने दूसरी कमीज़ पहन ली है ।"वह मुँह झुकाए वापस बच्चों के टिफिन पैक़ करने लगी ।सबके चले जाने के बाद उसे सुकून मिला । पर अभी और बहुत् से काम निबटाने थे । दिन कटा । पता नही चला ।रात को छोटा बिस्टर मे कुनमुना रहा था । आदमी झल्ला रहा था । "उँह ! आराम से सो भी नही सकते !"
औरत ने मन ही मन गाली दी "कमबख्त आदमी ! हरामी ,कुत्ता !इसे सबसे चिढ है । बच्चा क्या मैं दहेज में लायी थी ?रंजना पागल है । पति को रिझा कर बस में रखने के टिप्स मुझे नही चाहिये । पागल समझ रखा है ।बनावटी मुस्कान ला लाकर रोज़ बात करना मेरे बस का नही । थक जाती हूँ ।रोज़ बिस्तर गर्म कर सकूँ इतनी हालत नही बचती ।भाड़ मे जाए ।"और औरत दिन पर दिन ढीठ होती जा रही थी । वह चिड़चिड़ी थी । लड़ाक थी । आए दिन रिक्शेवलो ,औटोवालों ,धोबी से झगड़ती थी ।उसे झगड़ कर चैन मिलता ।आदमी भी यही कहता था "बस ! तुमसे तो झगड़ा करवा लो जितना मर्ज़ी !हर बात पे लड़ने को तैयार । बात करना ही गुनाह है । क्या करूँ ऐसे घर पर रहकर " और वह निकल गया संडे का दिन दोसतों के साथ बिताने ।झगड़ैल बीवी से तो निजात मिलेगी ।झक्की औरत संडे के दिन बड़े का प्रोजेक्ट बनवाती रही और पाव भाजी बनाकर बच्चों को खिलाती रही ।संडे की शाम आदमी लौटा तो औरत अगले दिन बच्चों के स्कूल के कपड़े इस्त्री कर रही थी । वह बटन लगाना संडे को भी भूल गयी थी ।क्या जानबूझकर !!?

16 comments:

Arun Arora said...

हम कुछ नही कहेगे..(खामखा पंगे मे फसने का डर है)

मुनीश ( munish ) said...

i have sahanubhooti for that miserable lady , but for me blogging is just for anubhoooooti !!

Anonymous said...

kyaa patni bannaa itana jaurii tha ? agar kabliyat nahin thee toh kyon bannii . aur agar ek maid rakh laetii toh kuch sudhaar toh ho hee saktaa tha

Udan Tashtari said...

हमने तो पढ़ा ही नहीं इस चिड़चिड़ी औरत के बारे में और न ही हम जानते हैं कि वो क्यूँ फिर से बटन लगाना भूल गई या क्यूँ सबसे लड़ने लगी या रंजना से नाराज हो ली-जब पढ़ेंगे तबहि न समझ में आयेगा. तो चुपचाप चले. :) आज संडे है, जरा दोस्तों से मिल आयें. :)

note pad said...

अनानी मस जी सही कहा - पतनी बनना बिल्कुल ज़रूरी नही था जी , सब औरतों को अविवाहित ही रहना चाहिये या लिव इन रिश्तों में ही जीना चाहिये ।वैसे इस सवाल के बार बार उठने पर अब तो कोफ्त होने लगी है कि इतनी परेशान हो तो पत्नी क्यो बनी ही क्यों या फिर तलाक क्यो नही ले लिया ।
कोई महानुभाव समाधान करे ,वह अनाम् ही क्यो न हो ।

सुजाता said...

और हाँ अनाम जी सबसे मज़ेदार तो यह है कि मैं जो भी लिखती हूँ वह मेरा ही भोगा हुआ है यह आप कैसे मान लेती हैं /लेते हैं ?

Anonymous said...

यह पोस्‍ट पति (देव) को पढ़वा देनी चाहिए. शायद इतना कुछ करना सोचना न ही पड़े और हल चल मिट जाए, सारा झगड़ा सिमट जाए. इसे आजमाने में कोई हर्ज भी तो नहीं है. सारे सकारात्‍मक प्रयास करने चाहिए - ऐसा मेरा मानना है.
पंगेबाज तो नाम के ही निकले :

पंगे से डरते है जो,
नाम पंगेबाज रखते हैं क्‍यों ?

- अविनाश वाचस्‍पति

सुजाता said...

अविनाश जी आपने ऊपर का कमेंट पढा नही शायद !
मेरे पति जो देव नही और मैं भी देवी नही , वे इन्हें पढते रहते हैं बल्कि स्त्री विमर्श पर बहुत सी पुस्तके भी सजेस्ट करते हैं ।
शायद यही कारण है कि ज़्यादातर स्त्रियाँ कविता लिखती हैं । कम से कम कोई यह नही कहता कि -अच्छा आप के साथ ऐसा हुआ । कविता एक आवरण दे देती है । गद्य मे कहने के लिए अनामों को झएलने की हिम्मत चाहिये न !

मुनीश ( munish ) said...

ab mujhe khud is tarah ki baaton mein ras aa raha hai!
ye kya ho raha hai ? kahin kuch gadbad hai.

मीनाक्षी said...

बस इक लहर सी उठी...कलम अनायास पैर पटकती हुई आ पहुँची यहाँ... आदमी ने रोटी बेलती औरत के मुँह पर कमीज़ पटकी तो जलती आँखों से क्यों न देखा...झर झर आँसू क्यों बहने लगे.... छोटे को पति की बाँहों में क्यों न डाल
दिया...क्यों झल्लाई सी इधर उधर भागती है..अपने से प्यार, अपने लिए सम्मान क्यों नहीं....ऐसे कई सवाल मन में उठते हैं ....

note pad said...

बहुत सही मीनाक्षी जी ,
ऐसे ही सवाल उठने चाहिये हमारे मन में भी उस पत्नी के मन में भी और उस पति के मन में भी ।सवाल उठे या किसी एक को भी यहाँ आइना दिख जाए तो लेख्न सफल है ।
धन्यवाद सभी का !

अनूप भार्गव said...

सम्बन्ध vicious circle की तरह होते हैं , एक बार बिगड़ने शुरु हुए तो हर छोटी सी बात के बड़े बड़े अर्थ दिखने लगते हैं । कोशिश हो कि उस ’भँवर’ में फ़ंसने से पहले ही कुछ किया जाये ।
समस्या निश्चित रूप से सिर्फ़ ’बटन नहीं लगाना’ नहीं हो सकती ।

Ghost Buster said...

सुजाता जी, ये अनामी कमेन्ट किसका है जानना चाहती हैं आप? हम प्रमाण सहित बता सकते हैं. ये ब्लाग जगत का एक जाना माना नाम हैं. कुछ दिन से ghost buster के नाम से कई ब्लाग्स पर वरिष्ठ ब्लागर्स के प्रति बेअदबी से कमेन्ट देने वाली शख्सियत भी यही हैं. अगर इनकी ये हरकतें जारी रहती हैं तो सप्ताह भर के अन्दर अपना हिन्दी ब्लाग बनाकर इनकी जानकारी समस्त ब्लाग जगत को प्रमाण सहित दे देंगे.

note pad said...

घोस्ट बस्टर जी ,
धमकाइये नही अनामी को धमकी तो सावधान करती है ,बल्कि यदि इतने विश्वस्त हैं तो चुपचाप पता लगा कर एक दिन घोषणा कर दीजिये ।

vidooshak said...

यह न आपबीती है और न जगबीती . यह तो भरेपेट वाले का रूमानी रुदन दीखै . नौसिखिए का फ़िक्शन लिखने का अभ्यास . धीरे-धीरे हाथ शर्तिया मंज जाएगा . हिंदी में ऐसे सिड़ीमार्का आंसूबहाऊ-सहानुभूतिजताऊ किंतु अतिशय उबाऊ लेखन का बाज़ार भाव अब भी बना हुआ है .

दबाव चौतरफ़ा हैं . सब पर हैं . ढूंढने पर ऐसे आदमी भी बहुतायत में मिलेंगे .

note pad said...

विदूषण जी ,
धन्यवाद !मेरे सिड़ीमार्का लेखन को आपकी पारखी नज़र ने कैसे पहचान लिया ? महान हैं आप ? वैसे इस कहानी की अंतिम पंक्ति रुदन से प्रतिरोध की ओर ले जाती है ,आपको नही लगता ?
प्लीज़ ध्यान से पढियेगा न एक बार और !
अपने ब्लॉग पर भी कुछ लिखिये , आपको भी तो पढ लें !