वैसे ज्ञानदत्त जी को इस तरह कतरने समेटने से आपत्ति है और हम भी कोई फूल कर कुप्पा नहीं हुए जा रहे हैं लेकिन फिर भी जनसत्ता की इस कवरेज को पूरी साज सज्जा के साथ फिर से इसलिए पोस्ट कर रहे हैं कि एक तो भिन्न टाईम जोन में अवस्थित चिट्ठाकारों तक पूरी स्टोरी का रूप पहुँच सके दूसरा जितेंद्रजी ने इसका आग्रह किया है जिसे नकारना हमारे लिए आसान नहीं। वैसे सामान्य ब्लागिया छापे में पूरा लेख मसिजीवी के चिट्ठे पर उपलब्ध करा दिया गया है।
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5 comments:
अब सही स्केन हो गया, तब पुनः बधाई!! :)
अबकि जमा
हां अब सबसे अच्छा लगा। बधाई अच्छा लेख लिखने के लिये। धन्यवाद इसे यहां देने के लिये। अब ज्ञानद्त्तजी को भी अच्छा लगेगा। है कि नहीं ज्ञानदत्तजी!
लो बहन जी, हमारी भी बधाई ले लीजिये. चिठेरों से कोई शिकवा थोड़े ही है.
जनसत्ता पहले बहुत चाटा करता था. पर प्रभाष जोशी जी (जो मेरे आदर्श थे); ने बाबरी ढांचे के गिरने पर पूरे हिन्दू समाज को साल भर तक जो 'धतकरम-धतकरम' कह कर लताड़ा कि (बजरंगी न होने पर भी)मैने जनसत्ता पढना छोड़ दिया था. फिर जब वे टीवी पर नजर आते थे तो मेरी पत्नी कहती थीं - तुम्हारे धतकरम जोशी जी आ रहे हैं.
अब जनसत्ता कैसा है - इसपर नीलिमाजी एक पोस्ट लिखियेगा.
सुजाता जी यह इमेज उपलब्ध कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! यह एकदम सपष्ट है, विंडोज एक्स पी के इमेज व्यूअर में जूम करके आराम से पढ़ा जा सकता है। जरा यह बताएं कि आपने अखबार के पूरे पन्ने को एक ही इमेज में कैसे स्कैन किया?
बाकी लेख पर टिप्पणी मैं मसिजीवी के चिट्ठे पर कर चुका हूँ, उसे ही दोहरा देता हूँ।
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सुजाता जी इस बेहतरीन लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई।
हालांकि यह अवश्य कहना चाहूँगा कि इतने विस्तृत लेख में हिन्दी चिट्ठाकारी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्तम्भों देबाशीष दादा, ई-स्वामी आदि का समुचित उल्लेख नहीं हुआ।
अब आपको पता ही है कि मुझे अशुद्धि-शोधन और सुझाव देने की भयंकर बीमारी है। खुजली रुक नहीं रही अतः खुजा ही लेता हूँ। :)
"सबसे रोचक तो है कि हिन्दी चिट्ठों के शुरूआती दौर में सामने आने वाले बहुत से चिट्ठाकार विदेश में रह रहे भारतीय ही हैं जो अनायास ही हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास के साक्षी और निर्माणकर्ता भी हो गए। जितेन्द्र चौधरी, पंकज नरूला, प्रतीक, अनुनाद, रमण कौल इन्हीं आरंभिक बलॉगरों में से हैं।"
अरे भाई प्रतीक फिलहाल हिन्दुस्तान में ही हैं। :)
और शायद अनुनाद भी (पक्का नहीं कह सकता)
"नारद न केवल इन चिट्ठों की रोज़ की आवाजाही पर नज़र रखता है वरन् इन चिट्ठों की चर्चा करता है साथ ही साहित्यिक गतिविधियों, ब्लॉगज़ीन ; ब्लॉग मैगज़ीन व काव्य प्रतियागिताओं का भी संचालन समय-समय पर करता है।"
फीड एग्रीगेशन को छोड़कर उपरोक्त सब गतिविधियाँ नारद नहीं अक्षरग्राम परिवार संचालित करता है। नारद तो खुद एक मशीनी साइट है वह केवल फीड एग्रीगेट करता है।
"नारद, वर्डप्रेस, ब्लॉगस्पाट, गूगल सहित कई अन्य ब्लॉगर इस संबंध में सहायता करते हैं कि 'हिन्दी कैसे लिखें'।"
नारद, वर्डप्रैस, ब्लॉगस्पॉट और गूगल कैसे मदद करते हैं जी?
इनकी बजाय आपको सर्वज्ञ, परिचर्चा और चिट्ठाकार समूह का नाम लेना चाहिए था।
"हालांकि ई-पंडित श्रीष और ईस्वामी तकनीकी समस्याओं पर कक्षा लेते रहते हैं।"
श्रीष --> श्रीश, ब हू हू शायद आपने मेरी यह पोस्ट नहीं पढ़ी।
ईस्वामी कक्षाएं नहीं लगाते बल्कि अक्षरग्राम की विभिन्न साइटों की तकनीकी टीम के सक्रिय सदस्य हैं।
अंत में फिर से कहना पड़ेगा कि हिन्दी चिट्ठाजगत पर केंद्रित यह एक संपूर्ण लेख था, जिसने लगभग पूरे चिट्ठाजगत को कवर कर लिया। आपसे अनुरोध है कि आगे भी इस क्रम को बढ़ाते हुए ऐसे लेख लिखती रहें।
इस लेख का लिंक सर्वज्ञ पर डाल दिया है, जहाँ इस तरह के अन्य लेखों का लिंक भी मौजूद है।
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