Thursday, April 26, 2007

वर्ना हम भी आदमी थे काम के.....

फरवरी मे किन्ही वैरियों ने { मसिजीवि और नीलिमा और कौन हमारे बहुत सारे दुश्मन हैं :) } हमें ब्लॉग जगत का रास्ता दिखाया और कहा एक और दुनिया भी है बच्चा ,वहाँ जाकर छपास भी शांत होती है और पीठ की खुजली भी मिटती है । आओ तुम्हारे ज्ञान की चिट्ठाजगत को नितांत आवश्यकता है " सो हम इधर की गली पकड लिए । पीएच डी मुई पूरी हुई गई थीं सो कुछ काम भी नही था । लगे पोस्टियाने ।
पर आज हम ऐसी हड्डी गले माँ फँसा लिए कि ना उगलते बने ना निगलते । रोज़ सुबह पति बच्चे को रवाना कर कीबोर्ड कूटने बैठ जाते हैं ।क्या कहें ऐसी ऐसी पोस्टों की उबकाई आती है रात भारत कि घरवालों का डर ना हो तो रात मे भी कंप्यूटर के कान उमेठते रहें । एक दिन पोस्ट ना डालें तो दाद खाज सब लग जाती है ।
फोन के बिल नही भरे जाते , बेल बजने पर गालियाँ देकर उठ्जते है ,सेल्समैन को धमकाते है , भूख से आँते कुल्बुलाती हैं तो भी कीबोर्ड नही छोडते , बच्चे पर झल्लाते हैं, सास के बुलाने पर कहते हैं-"इस घर में तो चैन से ब्लॉगिंग करना भी हराम है " ,टी वी देखे अर्सा बीत गया । बुद्धू बक्सा छोड आवारा बक्से की शरण गही और सर्फिंग कर्ते करते कबहूँ ना चैन से सोया ।
ब्लॉगिंग मेरी किचन है
ब्लॉगिंग मेरा भोजन
ब्लोगिंग मेरा मात्र कर्म ब्लॉगिंग ही प्रयोजन ।
देखा कविता भी कितनी उबकाई भरी करने लगी हूँ । जिस कुर्सी पर बैठती हूँ, ब्लॉगिंग करने, उसे छाले पड गये हैं , कीबोर्ड का बदन दुखता है उसके अक्षर मिट गये हैं ,मिट कर मेरी उंगलियो मे छप गये हैं ।भाषा बर्बाद हो गयी ।कोई शब्द बोलती हूँ तो दिमाग मे कीबोर्ड चलता है- चलता ?? दिमाग में CHALATAA है ।अब मेरे हाथ अंग्रेज़ी नही लिख सकते मेरे तो गिर्धर गोपाल दूसरो ना कोय की तरह। ।
मैं कहती हूँ "और कोई गम नही ज़माने मे ब्लॉगिंग के सिवा......."
टांसलिटरेशन ने खोपडे के खोपचे का बल्ब फोड डाला ।रोमन मे हिन्दी लिख कर किसी से चैटिंग करें तो लिखते हैं -kyaa haal hai aapakaa
किताबें कीडे खा रहे हैं हम ब्लॉग पर टिप्पिया रहे हैं चिप्पिया रहे है , और पता नही क्या क्या ।
ब्लॉगर्स ढिग बैठ बैठ लोक लाज खोई
मेरे तो गिर.....
हमारा भेजा कूडा करकट हो गय है ।दिमाग को डायरिया हो गय है । मॉनिटर गन्दा हो रह है । हम यहाँ बैठे बैठे ताने सुनते रहते है , पर बेशर्मो की तरह डटे रहते हैं।
भूखा क्या चाहे - दो घण्टॆ की ब्लॉगिंग !
जात पे ना पात पे मोहर लगेगी ब्लॉग पे !
ब्लॉग के अन्धे को टिप्पणी हीटिप्पणी दीखे !
ना होगा ब्लॉग और ना राधा टिप्पियाएगी !


ब्लॉगिंग ने हमें निकम्मा कर दिया वर्ना ...........
नोट ---- इसे पढ कर आपका दिमाग खराब हुअ हो तो ....
तो मै क्या करूँ ?

19 comments:

रंजू भाटिया said...

ब्लॉगिंग ने हमें निकम्मा कर दिया वर्ना ..

सच में :)

Anonymous said...

ऐलो, आपका तो काम हो गया..... ;) :P

Anonymous said...

बढ़िया! आपकी गिरधर गोपाल से दोस्ती बनी रहे। आप ब्लागियाती रहें ऐसे ही बिंदास लिखती रहें!

Pratyaksha said...

रोमन में हिन्दी chaltaa hai सच!

Pratik Pandey said...

सही है... ब्लॉगिंग को आप जैसे समर्पित लोगों की ज़रूरत है। :)

Neelima said...

नहीं नहीं हम बेकसूर हैं

Udan Tashtari said...

kyaa haal HO GAYAA hai aapakaa--

पहले के जमाने में जिससे दुश्मनी भजानी होती थी, उसके लड़के को फ्री में चरस दे देकर चरसी बना देते थे और फिर किनारे बैठ कर तमाशा देखो. आज वही अंजाम ब्लागिंग का रस्ता दिखा कर प्राप्त किया जा सकता है. :) जल्दी ही इसके लतियों के लिये भी रिहेबिलिटेशन सेन्टर (पुनरूद्धार केन्द्र) की स्थापना करने का विचार है. :)

सुजाता said...

रीहैब खुलवाने की वाकई ज़रूरत पडने वाली है समीर जी।
इसे मज़ाक न समझा जाए \हमारा सच यही हाल है।

मसिजीवी said...
This comment has been removed by the author.
Pramendra Pratap Singh said...

बढि़यॉं

Arun Arora said...

समीर भाई मेरा तो अग्रिम आरक्षण कर लो अपने रिहेबिलिटेशन सेन्टर (पुनरूद्धार केन्द्र)मे,
आहा आपका नाम पट्ट होगा कितना सुन्दर होगा

" डा. समीर उडन तश्तरी वाले"
नोट: यहा बिमारी के साथ दवाई भी मिलती है

अभय तिवारी said...

मेरा ई पन्ना आपसे प्रेरित हो कर महिला विमर्श कर रहे हैं.. सिमोन के बहाने.. आप कमान सँभालें.. प्रतिगामीशक्ति का प्रतिनिधित्व हम कर रहे हैं.. पतनशील मोर्चा देखने के लिये अज़दक को आवाज़ देने की ज़िम्मेदारी भी मैं ले सकता हूँ..आप रसोई से आग लेकर/ को आग में देकर युद्ध की तुरही बजा दें.. बीमारी का कुछ सदुपयोग हो..

Anonymous said...

kya haalata banaa rakhee hai apanee
ये तो बड़ा भयंकर रोग दिखे है।
रोज़ सुबह पति बच्चे को रवाना कर कीबोर्ड कूटने बैठ जाते हैं
टांसलिटरेशन ने खोपडे के खोपचे का बल्ब फोड डाला
भूखा क्या चाहे - दो घण्टॆ की ब्लॉगिंग !


मैं क्या क्या कोट करूँ, मुझे हंसते देख दूसरे मुझे पागल समझ रहे हैं। वैसे चिन्ता न करें मैंने कहा था ना ये संक्रमण है जो कमोबेश सभी को लगा है।
एक बात और समझ में आ गई है कि जिन से भी बदला लेना है उन्हें ब्लॉगिंग की राह दिखा दो।

Anonymous said...

सुजाता जी धन्यवाद आपने अभी से सचेत की दिया हम जैसे नौसिखियों को। और हाँ समीर जी के विचार वाकई चिट्ठाकारिता के हित में हैं। यह आप बीती पढ़ने के बाद उन लोगों को टेढ़ी नज़र से देखना पड़ेगा जिन्होंने ब्लॉगिंग में घुसा दिया और अब रोज़ टिप्पणी की भूख जगाते हैं।
कोटि-कोटि धन्यवाद!!!

Divine India said...

सच है…वाकई यह नशा बहुतो को घर में कैद कर रखा है…।

सुजाता said...

अभय जी अपने ब्लॉग की कमा न वे खुद संभाल लेंगे । महिला विमर्श है तो इसमे तुरही बजाने की क्या बात है, यह युद्ध नही ।
स्वस्थ बहस ऐसे नही होती ।
मुझे जहाँ लगेगा ज़रूरी ,ज़रूर बोलूँगी ।
सिमोन को मै भी पढने बैठ गयी हूँ । अभी तक तो वे सही जा रहे है। एक पुरुष को स्त्री मुद्दो पर इस तरह बात करते देख अच्छा लगता है।

Anonymous said...

अरे हम थोड़ा दूर क्या हुए ..इतने सारे किस्से हो गये . कोई शहीद बना जा रहा है कोई ब्लोगेरिया का शिकार है ..

सर्दी खांसी ना मलेरिया हुआ ..क्या कहूं यारो मुझको ब्लौगेरिया हुआ..

अभी मुझे भी थोड़े ही दिन हुए हैं पर अपनी हालत भी कुछ ऎसी ही है ... ऑफिस का काम पैन्डिंग हुआ जा रहा है ..रोज बीबी के ताने सुनने पड़्ते हैं पर क्या करें छूटती नहीं है गालिब ये लत लगी हुई. कोनो ईलाज विलाज हो तो बतलाईयेगा.

राज भाटिय़ा said...

ey bahi logo, mujhey daraoo mat mey too blogger par aap logo key chitey parney hi aata hu, taki mujhey bhi kuch likhana parnaa aa jay, aab too aap logo key nam bhi jantaa hu, mat daraoo

Rajeev (राजीव) said...

नोटपैड जी,
आपने बहुत सही विचार रखे हैं। अब हम तो बहुत ढीठ टाईप के हैं, लक्षण वही हैं, बस कुछ लिखते नहीं (या यूँ कहें कि मसाला ही नही है), एक सनक है । अब न भी लिखो, तो क्या पढ़ने से रोक लोगे अपने आप को? बड़ा मुश्किल है यह। कभी बहुत स्व-अवरोधों के बाद प्रारंभिक पोस्ट लिखी, जब चौथी पोस्ट हो गयी तब झट से सागर ने कह दिया - यह तो सर्वविदित है कि चार पोस्ट के बाद कोई ब्लॉगिंग से वापस नहीँ लौटता। हम अड़ गये, कि अब दुकान बंद। अनूप जी ने फिर एक दिन बताया कि नहीं यह मानक नहीं है, 40 तक लिखा जा सकता है (देख रही हैं, जो चरसियाना छोड़ने भी चला तो कहा, नहीँ अभी तो लत नहीँ लगी है, चिंता मत करो)

इसके पूर्व, कैसे फंसाया गया, आप यहाँ देख सकती हैं
सर मुँड़ाते ही ओले पड़े आपको लगेगा कि कुछ ऐसा ही हुआ है आपके साथ भी। बिल्कुल उसी सिद्धांत पर है, जैसा समीर जी ने कहा है। वहाँ पर ही सागर की 4 पोस्टों वाली चेतावनी भी है। और कैसा मज़ा आता है पुराने लोगों को, जीतू जी की इस टिप्पणी में निहित है

अब लिखने से तो कुछ रुका ही हूँ, बकौल फुरसतिया 40 की सीमा जो है और मसाला भी नहीँ, टिप्पणी पर भी कुछ-कुछ संयम, कभी बहक जाता हूँ पर पढ़्ने से - अभी तो नहीँ। पर वही बीमारी, मित्रों को देवनागरी में लिखने की, फिर उन्हें बताने की, कि कैसे तुम भी फंसो। हम तो अभी भी अपने आपको चरसियों में नहीं गिनते।