मौर्य जी को मोहल्ले पर पढा । ट्प्पणियाँ भी देखी।
भई हम तो ना बाबा को सुनते है ना मानते हैं ।फिर भी यहाँ अजीब लगा जब मौर्य जी ने कहा
"अगर
बाबा रामदेव की योग शिक्षा को परे रखकर उनके प्रवचनों को ध्यान से सुना जाए तो यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि वह हिंदुत्व की ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनके प्रवचनों में सिर्फ हिंदुत्व और उसके आदर्श ही नज़र आते हैं "
मुझे लगता है यहाँ एक प्रकार का चश्मा पहन कर देखने से ही कहना संभव होता है । हैरानी तो यहाँ है कि वे अपनी बात के समर्थन मे बाबा का एक भी वाक्य उद्धृत नही करते।
आस्था और भक्ति क्या केवल हिन्दू आदर्श हैं ? क्या अन्य धर्म तर्क पर आधारित हैं?
आस्था भक्ति और श्रद्धा शायद किसी भी मानव धर्म की सत्ता के अनिवार्य पहलू हैं बिना इनके कोई धर्म खडा नही होता । जब हमा तर्क करते है तो ज़रूर इस मध्यकालीनता से आगे आ जाते हैं।प्रश्न करना, तर्क देना आधुनिकता है । इसलिए बात को कहने से पहले वैध् तर्क खोजना ज़रूरी है वर्ना यह भी एक अन्य किस्म की आस्था ही है कि भक्ति की बात होते ही हम खतरे की घण्टी सुनने लगें।
मेरी नज़र मे बाबा वाला सारा मामला मार्केटिंग की दृश्टि से देखा जाना चाहिए। जो बिकाऊ नही उसकी सत्ता निरर्थक है । योग जब तक बाज़ार की उत्पादन -वितरण प्रणाली के योग्य न था उसे किसी ने नही पूछा । बाबा ने योग को देशी ही नही विदेशी बाज़ार मे भी बेचने योग्य बना दिया ।मार्केटिंग स्किल्लस अगर आपमे है तो आप गोबर भी ऊँची कीमत पर बेच सकते हैं फिर यहाँ तो योग है । रामदेव ने उसे ऐलोपैथी से टक्कर लेने काबिल दिखा दिया ।वर्ना कौन पूछता था इसे ।
अभी संस्कृत पर भी बात चली ठीकि क्या यह एक मृत भाषा है? आप संस्कृत को बाज़ार के उपयुक्त बना दें और फिर देखें कैसे यह जीवंत हो जाती है ।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि मै न रामदेव की भक्त हूँ {जैसा कि इस पोस्ट के बाद माना जाने की संभावना है} ना मै उनहे सुनती हू, ना उनका समर्थन या प्रचार करना चाहती हूँ । धर्म और आस्था को हर बार बीच मे ला ला कर हम शायद इस मुद्दे के प्रति संवेदनशीलता खत्म कर देगे और सहिष्णुता को भी ।
हर एक बात मे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अन्दाज़े गुफ्तगूँ क्या है......................
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19 comments:
जो लोग रामदेव बाबा के बढ़ते प्रभामण्डल से ईर्ष्या कर रहे हैं उन्हे समय-समय पर याद दिलाते रहना चाहिये कि उनका 'प्रगतिशील' मजहब जलील होकर कब का मर गया। उनके मजहब पर 'इमान' रखने वाले अब इने गिने रह गये हैं। उनका प्रोपेगैन्डा और दुष्प्रचार कभी चला था, अब उनका भण्डा फूट चुका है। उन्हे बताइये कि वे अपनी कुण्ठा दूसरों में न बाँटें। अब शाश्वत भारतीय जीवन-मूल्यों के पुनर्स्थापित होने का समय आ चुका है..
अनुनाद सिंह
अपने तो बाबाजी की मार्केटींग के कायल है. भक्त तो कतई नहीं.
वे किसी हिन्दूत्व की स्थापना कर रहे है, यह कहना ही हास्यास्पद है. वे योग बेच रहे है, इससे किसीको क्यों आपत्ति हो रही है?
सुजाता जी;
इन्होंने तो अपनी आंखो पर चश्मा चढ़ा रखा है. सावन के अन्धे को हरा ही हरा दिखेगा.
आपका समर्थन है धुर र्विरोधी जी
बाबा रामदेव योग का प्रचार प्रसार कर रहे हैं । कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है । मैं नहीं समझता कि वो कोई हिंदुत्व की घूंटी पिला रहे हैं । हां इतना जरूर है कि उनका इस्तेमाल करने के लिए एक पूरी फौज तत्पर है । अब संवेदनशील स्थिति है, हो सकता है कि बाबाजी किसी चटकीले आक्रामक रंग वालों के फेर में चले जायें । ऐसा हुआ तो योग से जुड़ने वालों को धक्का पहुंचेगा ।
प्रतिवाद का सवाल ही नहीं था. नाहक उलजुलूल सोच के साथ लेखन का जवाब देने का कष्ट उठाया आपने.
स्वामी रामदेव से चार बार खासी चर्चाएं की हैं और यही समझा हूं कि योग को जन जन तक पहुंचाना पुनीत कार्य है. कौन सा दल कैसे इसका फ़ायदा उठाता है ये तो कोई नहीं जानता. सिवाय वामपंथियों के हर दल उन्हें अपने पाले में लेने को आतुर है. आप उन्हें राजनीति से जोड़ भी लें तो भी सिर्फ़ योग के क्षेत्र मे उनका योगदान भुलाने योग्य नहीं है.
अब ऐसा भई. वामनेता जिस पर निशाना साध लें. उसे अपना जानी दुश्मन मानना कुछ लोगों का मुख्य ध्येय होता है. तभी यदा-कदा वे इस तरह की बातें कहने लगते हैं.
बाब रामदेव ने कुछ वर्षों में योग को जितना प्रचलित किया उतना दशकों में नहीं हो पाया था। यदि इससे लोग स्वास्थ्य लाभ लेते हैं तो क्या बुराई है? वरना भारत में 'योगा' करना या उस पर बात करना स्टेटस सिंबल था।
बाबा के खिलाफ तर्क करने वाले योग को ही गलत बता रहे हैं, अब हिंदूस्तान की धरोहरों पर भी हमले बोल रहे हैं।
हम स्वामी रामदेव जी का बहुत सम्मान करते हैं। उनके योग और प्राणायाम शिक्षा से लाखों लोग लाभान्वित हुए हैं। सद्गुणों तथा सदाचरण की शिक्षा से, हिन्दू संस्कृति के प्रचार से भी लोगों समाज को भारी लाभ मिला है।
किन्तु उनके साथ जुड़े भारी धन कमाई के तरीकों से दुःखी होकर कुछ सच्चाई बताना चाहते हैं। उनके एक योग शिविर में लगभग 70000 टिकटें बिकीं, जिनकी दर 100, 500, 1100 व 2100 रु. थीं। 100 रुपये वाली टिकटें तो आयोजकों ने पहले से ही 'खत्म' हो गई कहकर बेची ही नहीं। 'गरीब' लोगों के लिए घोषित निःशुल्क टिकटें भी ब्लैक में बेची जाती देखी गईं। औसतन प्रति टिकट 1000 के हिसाब से 7 करोड़ की कमाई हुई। आयोजकों ने शिविर स्थल के मैदान तक को भी समतल नहीं किया था। उबड़-खाबड़ कंकरीली धरती पर कइयों को योगाभ्यास के दौरान चोटें लगीं। भीड़ में धक्का मुक्की से भी लोग आहत हुए। 'दिव्य फार्मेसी' हरिद्वार की दवाइयों के लिए लम्बी लम्बी लाइनों में घण्टों तक प्रतीक्षा करते दिखाई दिए लोग। देखा गया कि वहाँ 30 वैद्यों में सिर्फ 2-3 ही पंजीकृत/डिग्रीप्राप्त वैद्य थे, शेष नवयुवा थे जो पर्ची पर हस्ताक्षर तक करने से भी मना कर रहे थे, वैद्यक रजिस्ट्रेशन वाली रबड़ की मोहर लगाना तो दूर की बात है। लगभग 8 करोड़ रुपये की दवाइयाँ बिकीं, जिनका न तो कोई बिल दिया गया, न टैक्स। स्वामी जी से मुलाकात तक के लिए 51000, 11000 रुपये के चन्दे वसूले गए। एक एक शिविरों से लगभग 15 करोड़ की कमाई का हिसाब लिया जाए तो आजतक हजारों करोड़ की कमाई हो चुकी होगी? इसमें से कितने देश के विकास में लगाए हैं? क्या पतञ्जलि ने योग और प्राणायाम को यों धन कमाने के लिए आविष्कार किया था?
सही लिखा है भाई लोगों ने
सारा मार्केटिंग का और पैसे का खेल है फ़िर भी रामदेव जी के योग से एक रुपये में १० पैसे का तो फ़ायदा होता ही है (बीमारी में) बाकी तो प्रपोगैण्डा है कि कैन्सर या एड्स ठीक हो जाता है...तो बाबाजी को उतना ही महत्व दिया जाना चाहिये जितने के वे हकदार हैं, हो सकता है कि कुछ लोग भविष्य में उन्हें भगवान का अवतार भी साबित करें, तब तो हम विरोध करेंगे भाई...
मुझे बाबा जी से कोई गिला नहीं और ना ही उनसे कोई फाईदा - सारी दुनिया पैसों के पीछे भाग रही है, सोचता हूं मैं ख़ुद बाबा हो जाऊँ तो पैसा मेरे पीछे भागा आएगा मगर यहां आकर फंस जाता हूं कि अपनी मार्केटिंग किस से और कैसे करवाऊँ ;) चूंकि हमाको कोई चमत्कार नहीं मालूम :)
बहुत अच्छा लिखा आपने और बिलकुल बजा फरमाया, आपके इस तरह गहरे विचार जानकर ख़ुशी हुई, वरना हम तो यही समझे थे कि आपको सिर्फ अपनी पीट खुजवाना ही है ;)
कृपया समाईली पर भी तवज्जा दें
आपने ठीक कहा है आज योग की भी मार्केटिंग हो रही है मगर इसके लिये बाबा रामदेव दोषी कतई नही है,..दोषी है हमारा समाज,...जो इन बाबाओ को कुछ समय बाद ईश्वर मान बैठता है,...हाँ योग एक अचूक दवा है इसमे कोई संदेह नही ये हमारे भारत की संस्कृति की देन है मगर आज इसे ऐक बहुत बड़ा मार्केटिन का जरीया बना दिया गया है,..एसे ना जाने कितने पेड़ो के नीचे हर गली कुचे मे बगीचे मे निःशुल्क योग शिक्षा दी जाती रही है मगर बाबा ने जब से मार्केटिंग शुरू की
योग चर्चा का विषय बन गया है,...
सुनीता(शानू)
।मार्केटिंग स्किल्लस अगर आपमे है तो आप गोबर भी ऊँची कीमत पर बेच सकते हैं फिर यहाँ तो योग है ।
-बिल्कुल सही. मैं पूर्ण रुप से सहमत हूँ आपके इस कथन से.
अरे भाई एक शख्स योग के मार्ग से लोंगों को डॉक्टरों से लुटने से बचा रहा है.दिनचर्या खान-पान में सुधार के साथ शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य भी उपलब्ध हो जाय तो बुरा क्या है. बाबा रामदेव भगवा पहरे हैं.अपनी संसकृति की बात करते हैं तो सब की छाती पर सांप लोटता है.य़े तो वही बात हुई घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का संत.
खादी,टाई,जीन्स, स्कर्ट पहिनकर या उसे भी उतार जो लोग देश पर जादू कर रहे हैं उनका क्या.
बाबा की बात मान कर तो देखो डॉक्टरों से पिंड छूट जायेगा.रही बात फ़सादों की वो बेमौसम नहीं होते ये सब जानते हैं.इससे बाबा को मत जोड़िये. नेट पर बैठना क्या आ गया आजकल सभी ज्ञान बघेरने में लगे हुए हैं.आप भी उन्हीं में से एक हैं जनाब.
जब बाबा रामदेव पर लिखा तो उम्मीद नहीं थी कि इतना शोर होगा। खैर बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। मुझे बजरंगियों से कुछ नहीं कहना है जो तिनका भर भी आलोचना सहन नहीं कर पाते।
मैं मानता हूं कि अपने लेख में मुझे कुछ चीजें और साफ करनी चाहिये थी। कई टिप्पणियों को पढ़कर लगा कि मेरी बातों को उन संदर्भों में समझा गया जिनकी मेरी कतई मंशा नहीं थी।
कुछ यारों ने यों टिप्पणी की गोया मैं योग का विरोधी होऊं। लेकिन ऐसा नहीं है। योग को लोकप्रिय बनाने में बाबा की भूमिका को मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूं लेकिन उनके प्रवचनवादी रूख को देखकर मुझे कुढ़न होती है। मेरा लेख उसी शिकायत या कहें कुढ़न का नतीजा है कोई सस्ती लोकप्रियता या नारेबाजी का शोशा नहीं जैसा कि कई यारों ने फरमाया।
अविनाश ने कहा कि रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों ने टेलीविज़न में पौराणिक आख्यानों की सुंदर दृश्यावलियों की शुरुआत की। लेकिन मेरा कहना है कि उनकी देश में सांप्रदायिक उभार में भी एक भूमिका थी। ये धारावाहिक इतने लोकप्रिय हुए कि इनके प्रसारण के समय सड़के सूनी हो जाया करती थीं। इन्होंने लोगों के मनोमस्तिष्क पर इस तरह असर किया कि सीता का अभिनय करने वाली बी ग्रेड फिल्मों की नायिका रही दीपिका, रावण का अभिनय करने वाले अरविंद त्रिवेदी और कृष्ण का अभिनय करने वाले नीतीश भारद्वाज सांसद बन गए। और वह भी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर।
मैने बाबा रामदेव को हिंदु या मुसलमान के खांचे में बांटकर देखने की कोशिश नहीं की है जैसा कि कई दोस्तों ने आरोप लगाया है। मैं चीजों का इतना सरलीकरण करने का आदी नहीं हूं। न मैंने हिंदुत्व विरोध का चश्मा चढ़ा रखा है। लेकिन कभी इस बात का पता लगाने की कोशिश जरूर करें कि बाबा का शिविर आयोजित कराने में सबसे आगे आगे कौन रहते हैं। और अमिताभ या सचिन को ईश्वर का अवतार कहने वालों की आलोचना करनी चाहिये न कि उन्हें प्रश्रय देना चाहिये।
subhsh_bhadauriasb@yahoo.com said...
नेट पर बैठना क्या आ गया आजकल सभी ज्ञान बघेरने में लगे हुए हैं.आप भी उन्हीं में से एक हैं जनाब. .......
भई हमारा तो नेट पर बैठे ही हैं ग्यान बघेरने{?} आपको भी छूट है कि आप किसे पढे किसे ना पढें।नेट ग्यन प्रसार से आप क्यो चिढ रहे हो भाई । तकनीक क्या आप जैसे सयानो के लिए ही है ।
सारे प्रकरण का निचोड यह कि -बाबा के स्वरूप के दो पक्ष हैं - एक योग प्रचारक और एक हिन्दुत्व प्रचारक ।
तुम्हारी बात मानी भैया सुभाश ,पर हमने कहा कि हम बाबा को देखते सुनते नही ।तो तुमन जो बार बार कहाँ रहे हो कि बाबा के प्रवचन से आपत्ति है तो कोई एक उदाहरण दे दो आस्था चैनल से ।हम भी कोशश करके देखेगे यहाँ चैनल
swami ji jo bhi kar rahein hain, sab sahi samay par aur sahi disha mein kar rahein hain. agar apko unke hindutva ke prachar par apatti hai to kariye. vaise swami ji hindutva nahin balki rashtriyata ka prachar jyada kar rahein hain. ab aap ki soch hi galat ho to kya? vaise bhi hindustan main hindutva ka hi bolbala hona chahiye kyonki yeh hamari purani virasat/sanskriti hai. vaidik dharma ki jai ho. hindutva ka vikas ho.
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