Monday, April 2, 2007

तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊं


जनाब आज कौन सा विवाद sorry विचार उठाऊ समझ नही आ रहा था। बहुत पोस्टे पढी, कमेंट भी दिए। कुछ पोस्टे वीरान पडी थी {o comments वाली} उन्हे गुलज़ार किया,काम था मुश्किल फ़िर भी,यार किया।अर्रे, यह तो शायरी जैसा बन पडा भई।{भाई लिखा था, फ़िर भई कर दिया।कोई आहत ना हो जाए।वैसे भी फ़ुरसतिया जी कहे है अपने इंट्रवू मा कि नारद मे भाई चारा चारा चल रहा है।}वैसे भी आदत से मज्बूर है। किसी रेहडी, दूकान ,इस्टाल पर जाकर पूछते फ़िर्ते है -"टमाटर कैसे दिया भैया?",{जैसे मुर्गी को पूछ रहे हो_अण्डा कैसे दिया बहिनी!}
इतना ही नही, अपने दादा समान उम्र के आटो रिक्शा वाले से कहा--"चलेंगे भैया,क्नाट प्लेस?"
वह बिटिया कहे या बहनजी उसकी समझ मे नही आया सो बोला--"चलेंगे madam"
इत्ता ही नही हमने अभय तिवारी जी की एक बडीईईई सी टिप्पणी के जवाब मे लिखा--"आपकी पीढी से बडी उम्मीदे है......"
उनका जवाब आया--"आपकी पीढी से उम्मीदे है -कहे तो ज़्यादा ठीक नही होगा। आपसे १२ साल बडा होने के नाते।"
हमने उनका प्रोफ़ाइल नही देखा था।किसी का देखते भी नही। अब से देखने लगे है।
बातो से लगा था कि ऐसी सोच किसी तरुण की होगी जिसके मन मे आदर्श भारतीय स्त्री की छवि विद्यमान है।:) {अभय जी बुरा न माने,प्लीज़}
अर्रे, विषयान्तर करने की बहुत आदत है।
बात थी पीठ खुजाने की।तो हमारा मानना है कि टिप्पणी न पाने की पीडा पीठ की खुजली की तरह है। शुरू होती है तो कुछ उपाय करवा कर ही मानती है। किचन मे खुजली होना बहुत सेफ़ है ।बहुत से उपकरण है खुजाने के।बेलन ,कडछी,पलटा,चम्मच{छोटी खुजली के लिए}।विचार आया है सोचा बता ही देते है, यह कि टायलेट मे बैठे बैठे पीठ की खुजली जोर मारने लगे तो....।
तो हम कह रहे थे कि टिप्पासा पीठ की खुजली की तरह है। अकेले मे बडा सताती है।हमें मिलती रही है पर टिप्पेषणा है कि बढती जाती है।
हमने देखा कि कुछ लोग हमारे ब्लाग पर कभी आए ही नही।{टिप्पणी करने} उनकी भी टिप्पणी मिल जाए तो।{वैसे फ़ुरसतिया जी का आइडिया लागू हो जाए तो ३३% टिप्पणिया तो हमे मिल ही जएगी}।
सो, हम ऐसे लोगो के ब्लाग पर टिप्पणी मार आए, कि भैया कभी तो शर्म आएगी उन्हे मुफ़्त की टिप्पणिया खाते खाते। वैसे वे ब्लाग भी सुनसान पडे थे।जैसा हमने शुरु मे बताया।इसलिए वे भी भाईचारे के नाते हमारे ब्लाग पर टिप्पणी मारने आएंगे।:)
इस तरह हम एक -दूसरे पर टिप्पणिया मार मार के अपनी टिप्पेषणा शान्त करेंगे। मेरी टिप्पणिया लेने वालो ,मुझे भी टिप्पणिया दो।यह क्या कि नारद तो ५० हिट्स दिखाए पर टिप्पणी ४-५ ही नज़र आए। बिल्ली की तरह चुपचाप न जाए। अगर मैने किसी को सच्चे मन से टिप्पणी दी है तो भगवान इसका बदला देगा। वो गाना है ना--तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा। :):)।
तो मित्रो, चलो मिल कर पीठ खुजाए एक दूसरे की।
:):):):):):):):):) हमने जगह जगह यह स्माइली बनाई है। सुना है ऐसा करने से लोग बात का बुरा नही मानते। कडे से कडे पीस भी कडुवा घूंट पीकर रह जाते है ।

24 comments:

dhurvirodhi said...

चलिये, पहली टिप्पणी मेरी.
जबर्दस्त लिखा है, बहुत ही जबर्दस्त लिखा है, आदि से अन्त तक रोचक, वाहवाह, वाहवाह वाहवाह.
(जब मेरा लिखा आये तब सूद सहित चुका देना)

Jitendra Chaudhary said...

ह्म्म!
जब चित्त अशांत हो और मन बैचैन।
तो अपने अराध्य देव का स्मरण करते हुए, दो कम्पयूटर के सामने दो अगरबत्ती जलाएं और इस लेख को दो बार पढें।

सारी टिप्पणी सम्बंधी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।

चलते चलते said...

कई दफा सब्‍जेक्‍ट का अकाल रहता है। ऐसे में इस तरह के सब्‍जेक्‍ट मजेदार हो सकते हैं। वैसी भी टिप्‍पणियों का सभी को इंतजार रहता है, नहीं तो कहलावकर भी डलवाई जा सकती हैं। टिप्‍पणियों के सहारे भी कई लोग बेहतर ब्‍लॉगर बन गए हैं।

सुजाता said...

धुर विरोधी पीठ पेश करो खुजलाई जाएगी।
जीतू जी
आपके और हमारे विचार कितने मिलते है ना!
आप को तो एक टिप्पणी ज़रूर देनी चहिए हमारी हर पोस्ट पर!:) हम स्माइली का सहीप्रयोग सीखने लगे है।
वैसे आप बढिया लिंक देते है>लिंकित मन नाम आप ही काहे नही रख लिए?:)

काकेश said...

सचमुच मजा आ गया.आपने जो टिप्पणी की थी उसका हिसाब चुकता कर दिया..अब ना कहना कोइ टिप्पणी नहीं करता .

काकेश

Udan Tashtari said...

बहुत सही!!! :)

पीठ खुजलाने या खुजलवाने का समीकरण पहले कभी हम भी सिद्ध कर चुके हैं, यहाँ पढ़ना.

http://udantashtari.blogspot.com/2006/05/blog-post_04.html

-आपकी टिप्पणी अपनी पोस्ट पर approve करने में थोड़ा विलम्ब हुआ, क्षमा चाहता हूँ. दरअसल, रात में थोड़ी देर सो जाता हूँ, न!!

Sagar Chand Nahar said...

लीजिये हम भी टिप्पणी कर देते हैं इस आस के साथ कभी हमारे चिट्ठे पर भी नजरें इनायत होंगी। :)

टिप्पणी के महत्व पर समीरलाल जी
ने बहुत शोध की है और ॥दस्तक॥ पर भी कुछ इससे संबंधित कुछ लिखा गया था।
॥दस्तक॥

Arun Arora said...

जीतू भाई को ज्यादा गम्भीरता से लेते हुये दीपक मत जला लेना वर्ना कमर के बजाये दिमाग खुजाना पडेगा लेख भले जितनी बार पढे अब कृपया मेरी भी कमर खूजा दे १०/१२ टिप्पणिया पोस्ट तो कर ही दे

अनामदास said...

मैं अक्सर आपका लिखा पढ़ता रहा हूँ, अच्छा लिखती हैं आप. मैं भी आपकी ही तरह ब्लॉग्स को गुलज़ार करता हूँ, जिन पर टिप्पणियाँ न हों, एक-आध लिख देता हूँ. आपकी टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ.

Shuaib said...

हम अकसर आपकी पीठ देखकर वापस चले जाते हैं - और आज खुजाकर जाएंगे ;) :-)
Note: सबसे पहले Login को हटादें, क्योंकि टिप्पणी के लिए हमेशा लॉग इन होना एक मसला है।

Sanjeet Tripathi said...

उपस्थिति दर्ज की जाए।

Jitendra Chaudhary said...

वैसे आप बढिया लिंक देते है>लिंकित मन नाम आप ही काहे नही रख लिए?:)

अब जिज्जी को समझाओ, इतना महीन और गहरा लिखती है फिर लिंकित मन काहे रखी? हम अपने जुगाड़ी लिंक से ही खुश है, तुम अगरबत्ती जलाई की नही? टैन्शनियाना नही, लिखे रहो बिन्दास।

सुजाता said...

अजी अगरबत्ती क्या मन्दिर बना लिए है। चप्पल उतार कर पोस्टिंग करते है।बाकी जीजी हमारी हरफ़नमौला है। मझाकिया सेन्स हम उनही से पाए है।अजदक के जूते का डिठौना लगा कर क्या बढिया चिट्ठाचर्चा की थीं।

Reetesh Gupta said...

बात ही बात में ही अच्छा लेख लिख दिया है आपने

टिप्पणी का महत्व तो अब सब ही मानते हैं...
अब हमे ही लीजिये ६ माह पहले लिखना शुरू किया
न कोई लिखने का इतिहास....
टिप्पणी की मेहरवानी से इतना लिख पाये है
और आगे के लिये भी उत्साह बरकरार है

अनूप शुक्ल said...

बढि़या है। बिंदास लेखन। फोटो भी चकाचक लगाये हैं। नीलिमाजी ने चर्चा तो चौकस की ही थी। और हमारी ३३% वाली बात को अब आप लोग अप्रूव करवायें। टिप्पणी की चिंता न करें वो आती रहेंगी। ऐसे ही आप बिंदास लिखती रहें मैडम। :)

कटारे said...

बहुत सुन्दर भद्रे ! पीठ खुजाने का निमन्त्रण ही कितना आनन्दप्रद है ,भला कौन नहीं चाहेगा ? मेरी पीठ बिल्कुल अस्पर्शित है कृपया धन्य करेन।
http://www.vipannbudhi.blogspot.com/

ePandit said...

लो जी टिप्पणी महिमा की मुरीद आप भी हो गईं। बहुत अच्छा इस काम की प्रैक्टिस करने के लिए हमारा चिट्ठा निसंकोच प्रयोग करें। हमने वहाँ लॉगइन, इमेज वैरीफिकेशन, मोडरेशन जैसे कोई झंझट नहीं लगा रखे ताकि आप जैसे साथियों को दिक्कत न हो।

वैसे हिन्दी चिट्ठाकारी की व्यंग्य शैली में आपका लेखन भी शामिल हो चुका है। ये शैली इस समय सबसे हिट चल रही है।

वो प्रैक्टिस करने चिट्ठे पर आ जाना हाँ... Madam

संजय बेंगाणी said...

कभी हमारा काम पोस्ट लिखने से कहीं अधिक टिप्पणी करना हुआ करता था. लोग बाग हमें टिप्पणी-पीर कहते. उद्देश्य केवल इतना था की लोग लालच में फस लिखते रहे. तब हमे क्या मालुम था की हम तो दरअसल पीठ खुजा रहे है :)

अच्छा लिखा है :) अनुपात में खुजाया भी खुब गया है.

सुजाता said...

भाए ,पीठ इतनी खुजा दी गयी है कि छिल ही गयी है।
पर टिप्पणी के मारे हम यह खुशी -खुशी सह लेंगे।
सबका धन्यवाद!

Tarun said...

बातो से लगा था कि ऐसी सोच किसी तरुण की होगी जिसके मन मे आदर्श भारतीय स्त्री की छवि विद्यमान है।
पहले हम अपना नाम क्लियर कर देते हैं कि कम से कम इस तरूण की तो नही ;)

देखिये आपने आजतक हमारी पीठ कभी नही खुजायी फिर भी हम आपकी पीठ खुजा रहे हैं, पहले भी खुजा के गये थे, ये अलग बात है तब हमें पता नही था कि हम आपकी पीठ खुजा रहे थे। ;) हम तो टिप्पणी समझ के टिप्पणियां गये।

विजेंद्र एस विज said...

गजब...समकालीन भाषा..हम तो खाँ मे खाँ बिलाग बिरादरी से दूर होते जा रहे है..पर यहाँ तो शब्दो से नगाडे बज रहे है..
बढिया लेख.
बधाई..

Unknown said...

Can people leave comments here, who dont know you well but liked the contents ?

Thanks and regards

हरिराम said...

बड़ी सुन्दर फोटो लगाई है, सिंहावलोकन, वह भी विशाल झरने का और फिर ऐसे सिंहासन मुद्रा में बैठकर! वस्तुतः चित्ताकर्षक। पीठ खुजाना यहाँ बिल्कुल नहीं जमता, दिल गुदगुदाना ज्यादा सही होगा शायद?

Dr Prabhat Tandon said...

लेख तो खैर है ही मजेदार और साथ मे लेख का शीर्षक उससे भी अधिक !