दिल्ली के निगम चुनाव का दिन था आज ५ अप्रैल और बहुत दिनो से उम्मीदवार, पत्रकार,अखबार,समाचार,{बेरोज़गार..} बावरे हुए घूम रहे थे। सरकारी स्कूल के टीचरों की कमर कसी जा रही थी। कोई उम्मीदवार लड्डुओं से तुल रहा था तो कोई सिक्कों से तोली जा रहीं थी{महिला उम्मीदवार थीं ना,इसलिए सिक्को से तुल रही थी,}।यकीन ना मानें तो कल का जनसत्ता देख लें। सभाओं की होड थी । जनता भी समझदार हो गयी है। बी जे पी वाले नेता की पार्टी खाकर तुरन्त उसके सामने वाले पार्क मे हो रही कंग्रेसी नेता की दावत उडाने चली जाती थी.।
दो चार दिन से तो आलम यह था कि पार्टियो के कर्यकर्ता घर पर बार बार पूछने आते थे{बडे ही शालीन अन्दाज़ मे}-- जी, फ़लां फ़लां मेम्बर है आपके घर मे ? कोई छूट तो नही रहा?
india t v ने तो 8 मार्च को ही शुरुआत कर दी थी। बहाना था "विश्व महिला दिवस" और जा जाकर विभिन्न पार्टियो की महिला सदस्यो से पूछ रहे थे कि राजनीति मे उनकी खूबसूरती की क्या अहमियत है? एंकर महोदय को उस दिन चैन नही था। बल्लियों उछल रहे थे और पुरुष सदस्यो से कह रहे थे_ आप से तो आज हम बात नही करेंगे। आज आप लोग सिर्फ़ सुनिए। {वैसे भी इतनी सारी महिलाएं सामने खडी हो तो कोई बोल ही क्या सकता है}
जी ,तो एक महिला उम्मीदवार के वे घर ही जा पहुचे{ शालू जी}। उनकी सास से खूब तारीफ़े करवाई,खुद उससे भी ज़्यादा की। पर बन्धु एक सुई पर अटक गए। शालू जी की सहयोगी महिला सदस्य से पूछा_ शालू जी मे सबसे खास बात आपको क्या लगतीह ै?"
वे कहना शुरु हुई--"वे सच्ची हमदर्द है, किसी को अपने दरवाज़े से खाली नही ...."
लो जी, अपेक्षित उत्तर नही मिला तो एंकर महोदय ने उन्हे बोलने ही नही दिया। खुद बोले--"आप तो नही बता पाई ,मै ही बताता हू>। वे सुन्दर है ,उनका व्यक्तित्व आकर्शक है bla bla bla bla bla bla"
उस पर भी उन्हे चैन ना आया.पूछते ही रहे जैसे सोच कर आएं हो कि यही उगलवाना है कि- स्त्री को उसकी सुन्दरता की वजह से टिकट भी मिलता है ,सफ़लता भी।
स्त्रियो के आरक्षण का मुद्दा भी तो गर्म था उन दिनो। बात हमारे दिमाग मे सेव {save} हो गयी ,आज मौका देख उगल दी।
हलांकि स्त्री विमर्श की द्रिष्टी से इस पर और चर्चा होनी चाहिए। पर अभी चुनाव की और बातें भी हैं।जिनमे कुछ व्यक्तिगत ,दुखद किस्से भी है।
तो, मुबारकपुर मे वोट नही डले। मशीने खराब थीं। बाद मे वोटरों का दिमाग भी खराब हो गया। एक बजे प्रशासन ने कहा "मशीने ्ठीक है ,आइए वोट डालिए।" तो वोटर,{बकौल हमारे ्टी वी चैनल} बोले---" सुबह से जो हमारा समय खराब हुआ पहले उसकी भरपाई हो"
पता नही इस भरपाई का क्या मतलब था
एक आध{ ?} जगह झगडे हुए पर कुल मिलाकर चुनाव शान्ती पूर्ण ढंग से निबट गए।
हमारे साथ लेकिन कुछ दुखद घट गया।
वोट डालने गए। अपनी ४ १/२ साल की औलाद को भी सथ ले गए ।
उसे समझाने और दिखाने कि वोट डालना क्या होता है।
बारी आई, तो हमारी औलाद दौडी ।ज़ोर से बीप की आवाज़ आई।
पता चला नालायक ने बटन दबा दिया। हमारा वोट डल चुका था। पोलिंग आफ़िसर और प्रेसाइडिंग आफ़िसर चिल्लाए।
पर अब का होत जब बेटा डाल चुका वोट।
तो, यह था भारत के सबसे युवा नागरिक का वोट, जो ना जाने किस उम्मीदवार के खाते मे चला गया। और हमारी उम्मीदो पर पानी फ़िर गया ।
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7 comments:
जी, हम भी डाल आये वोट :)
ले जाना तो हम भी चाहते थे अपने बेटे को कि उसे भी कुछ लोकतन्त्र समझायें, मगर उसने रुचि नहीं दिखायी ।
चिन्ता ना करें बच्चों का मन निर्मल होता है, वे अन्जाने में भी गलत काम नहीं करते। बेटे ने वोट दिया है तो यकीनन योग्य उम्मीदवार को ही दिया होगा, शायद आप भी उतना निष्पक्ष वोट नहीं दे सकती थी :)
दिल को बहलाने के लिये खयाल अच्छा है.....:)
www.nahar.wordpress.com
यह तो मज़ेदार है, चुनाव के पहले सभी नेता, सरकार और चेले-चपाटे निष्पक्ष वोट की माँग करते हैं, मैं कह रहा हूँ माँग करते हैं, और आपका वोट तो पूर्णत: निष्पक्ष गया है। हाँ एक समस्या है कि यदि जीतने वाले उम्मीदवार ने काम में कबाड़ा किया जो कि 90 प्रतिशत संभव है, तो आप यह नहीं कह सकेंगी कि हमने तो इन्हें ही वोट दिया था। हाय री इलेक्ट्रॉनिक बैलट, अरे मतलब हाय री किस्मत!
फ़रवरी में हमने भी वोट डाला मुम्बई में.. और हमारी आर पी आई की उम्मीदवार के साथ ऐसी धाँधली हुई कि उन्हे कुल जमा तीन वोट मिले.. एक शायद उनका अपना, एक मेरी बाई का, और एक मेरा..उनके पति, लड़के बच्चे पड़ोसी आदि अन्य समर्थक शर्तिया अन्दर से शिव सेना से मिल चुके होंगे तभी तो वह विजयी साबित हुई.. बहुत लोग सोचते हैं चुनाव में धाँधली सिर्फ़ बिहार यू पी में होती है.. मैं भी यही सोचता था..
बढ़िया। वोट तो हम नहीं जानते लेकिन आपकी बिंदास लेखनी के हम मुरीद होते जा रहे हैं!
बढ़िया बयानी रही. :)
चलता है, हमारे लोकतंत्र के साथ जाने अनजाने खिलवाड़ होत रहता है. :)
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