Tuesday, April 10, 2007

शादी किसकी बर्बादी ......ऐशवर्य-अभिषेक के विशेष सन्दर्भ में


आने वाली 20 अप्रैल को दोनो शादी कर रहे हैं।कहा जाता है मेड फॉर ईच अदर कपल हैं। फिर भी तमाम कर्मकाण्ड अब तक किए जा चुके दोनो के निर्विघ्न वैवाहिक जीवन के लिए।
खैर ,, ये दोनो सुखी रहें! इन्हें हिन्दी ब्लॉगजगत का आशीर्वाद है।
मुद्दा यह है कि जब हम रिश्तों की असमानता की बात कर रहे थे ,तब बहुत से लोगो को हमारे विचारों से दिक्कत हो रही थी। वे मान रहे थे कि वर्तमान कोई भी पारिवारिक संरचना सम्बन्धो की असमानता की सूचक नही है ।
असहमतिओ का सम्मान है। पर विस्तृत बहस मे न पडकर अपनी बात इन दोनो के उदाहरण से देना चाहूँगी। हालाँकि शादी अभी हुई नही है इसलिए अटकलें लगाना शायद आसान है कि दोनो की शादी किस के करियर के लिए अहितकर साबित होने वाली है लेकिन हिदायतें और न्सीहते देने वाले बहुत से हैं । संडे के डेलही टाइम्स मे खबर छपी कि बॉलीवुड ,जहाँ ज़्यादातर शादियाँ एक्सपाइरी डेट के साथ आती है , वहाँ दिलिप कुमार -सायरा बानो अपवाद हैं।सायरा बानो जो विवाह के समय अपने करियर के उत्कर्ष पर थीं कहती हैं-""" marriage is certainly an eye-opener and I slowly had to deal with things which were a revealation to my young mind....................
If you want your marriage to work, one of the two has to take a back seat in the carrrer. there's no two ways about it. you have to choose to be under the other's shadow. and this is something you have to do for love ......
I believe SACRIFICE MAKES A SUCCESSFUL MARRIAGE """----
ऐसी ही बात कभी सार्त्र {अस्तित्ववादी दार्शनिक} ने कही थी कि--" प्रेम का अर्थ है अपनी स्वतंत्रता खोकर किसी और की अधीनता स्वीकार करना, या किसी और की स्वतंत्रता छीन कर उसे अपने अधीन करना..."
स्पष्ट है त्याग किसने किया , क्यो किया
सायरा जी के ये कथन किसी स्त्री के लिए उपदेश हों तो हों हमारे तईं तो ये शब्द गंभीर चेतावनी हैं।{पर अब पछताए होत का जब..........}:):)
कहने का तात्पर्य यह कि घर और घर से जुडी हर् संरचना स्त्री की पीठ पर लदी है ।
घर बनाए तो वह। रसोई पकाए तो वह। बच्चे पाले तो वह।
और घर के आराम सदा दूसरो के लिए। रसोई का खाना दूसरों के लिए एक और आराम। नहाए ,खाकर अघाए बछे खिलाना औरों का सुख ,जिसे कोई भी लूटने को तयार रहता है।
ऐसे मे हम असमानता पैदा करने वाली संरचना को ढोए चल जाएँ ,तो क्यों ? राखी सावंत भी शादी कर ले ,सिर्फ कर ना ले ,उसे चलाना भी चाहे तो सायरा जी को तो याद करना ही पडेगा ।
तो स्त्री को अगर घर बनाना है तो करियर मे take a back seat.... क्योके त्याग ही{केवल स्त्री का ???} शादी को सफल् बनाता है।
मेरे व्यक्तिगत मामले मे यह समीकरण ठीक उलटा है।इसलिए यह मेरी कुंठा नही है जो बाहर आ रही है ।क्योकि हममे अकसर यह आदत होती है कि किसी के विचारों से उसके व्यक्तिगत जीवन का ताल्लुक बैठा देते हैं। जब मैने रसोई नष्ट करने की बात कही तो कहा गया कि _नोटपैड वाली सुजाता जी रसोई से दुखी हैं। सायरा जी की बात सुन कर यह कहना कि वे अपनी शादी से दुखी हैं ,, अजीब नही लगता?
लेखक का कंसंर्न व्यापक हो तो ही लेखनी प्रभावी होती है । व्यक्तिगत पीडा भी अभिव्यक्त होती है तो व्यापक सन्दर्भ में।
तो आशा है कि सोच की उदारता के साथ हम विमर्श कर पाएँगे । व्यंग्यार्थ समझ पाएँगे। व्यंजना ले पाएँगे ।
और ऐश- अभी को भावी ,सुखी करियर और शादी की मुबारक बाद दे पाएँगे।

5 comments:

Anonymous said...

सुजाताजी, विवाहोपरान्त जीवन के अनुभव निश्चित रूप से प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए भिन्न होते हैं। हालाँकि भारतीय समाज में वैसा अधिक होता है जैसा सायराजी ने बताया। यदि सार्त्र ने कहा है कि प्रेम में स्वतंत्रता खोकर किसी की अधीनता स्वीकार करना है तो यह भी सही है। जब प्रेम में समर्पण होगा तभी तो स्वतंत्रता तिरोहित होगी। संभवत: स्त्री के परिवेश और परवरिश के कारण ही उसमें समर्पण के गुण आ जाते हैं जैसा सायराजी ने लिखा है कि एक को पीछे की सीट पर बैठना होगा, किसी एक को दूसरे की छाया तले आना होगा। जिन युगलों में परस्पर प्रेम होता है वहाँ कोई नहीं सोचता कि कौन किसकी छाया तले है और कौन किस सीट पर बैठा है।
मैं भी एक पुरुष हूँ फिर भी मुझे अपनी पत्नी की छाया मैं रहना अच्छा लगता है। दोनों जीवन की गाड़ी में पास-पास की सीट पर बैठे हैं। यदि आप इस पास-पास की बात न भी स्वीकार करें तो भी जीवन के सफर में जैसे रास्ते आते हैं उसके अनुसार हम आगे पीछे की सीट ले लेते हैं। हमारे लिए घर, रोटी, रसोई, बच्चे कोई मुद्दा नहीं है। सब-कुछ हमारा साझा है।
शायद मैं अपनी बाद ठीक से रख सका हूँ।

सुजाता said...

हाँ, सही कह रहे हैं। मेरे पति पीछे की सीट पर हैं। खुश हैं। सब कुछ साझा है ।
पर बात है कि अधिकांश्त: ऐसा नही होता। यह स्थिति सिर्फ हमारे साथ है । 95% लोगो का भी तो सोचिए।
हम केवल यह सोच कर संतुष्ट नही हो सकते कि हमारे साथ सब ठीक है।

शैलेश भारतवासी said...

नोटपैड मैडम,

आपके यह लेख अभि-ऐश की शादी से शुरू होकर खुद को बवाल से बचाये रखने पर जाकर खत्म होता है। अजीब लगा पढ़कर। एक व्यक्ति का जीवन जितना बिखरा-बिखरा होता है, उससे भी अधिक बिखरे हैं आपके विचार। यद्यपि जीवन के बिखरे हुए एपीसोड भी एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, मगर आपके इस लेख के कोटेशन इसे तैयार करने को ठूँसे गये मालूम होते हैं।

वैसे जो आपका स्त्रोच्यूत सत्य है, वही इस दुनिया की हर स्त्री का सत्य है, हालाँकि भारत में शाश्वत सत्य जैसा है (उत्तर वैदिककालीन संकल्पनाएँ कल्पनातीत लगती हैं)। मैंने आज तक भारत में ऐसा कोई जोड़ा नहीं देखा जैसा कि सात फेरे के कान्सेप्ट से बनना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे जोड़े नहीं होंगे, परंतु अपवाद रूप में ही होंगे। वैसे अधिक शिक्षित मनुष्य अधिक स्वतंत्र रहना चाहता है, क्योंकि स्वतंत्रता सनातन है, बंधन सामाजिक है। जवरदस्ती का। पहले स्त्रियाँ कम शिक्षित थीं, इसलिए विद्रोह का लेवल कम था। जैसे-जैसे वो पुरूषों की सच्चाई समझती जायेंगी और आत्मनिर्भर बनने की हिम्मत करती जायेंगी, नरपशुओं के लिए मुश्किलें होंगी। सायरा बानो, डिम्पल आदि हस्तियाँ जागरूक वर्ग में आती हैं, जहाँ एकत्व की चाहत ज़्यादा है, इसलिए पिंजड़े को तोड़ने की संम्भावना भी अधिक।

Anonymous said...

नमस्कार...अरे आजकल तो कुछ अमरीकी अखबार-मैगज़ीनों में भी इनकी शादी की खबरें छपने लगीं हैं...यहां तक कि 'टाइम' पत्रिका में भी!

हरिराम said...

मंगली ऐश और अमंगली अभिषेक का मंगल-मिलन कितना मंगलमय होगा? मंगलनाथ जी विधिवत् पूजा तो की जा चुकी है। अन्य सारे उपाय भी। ईश्वर से प्रार्थना है सदा सुखी रहें। दोनों मिलकर नई फिल्में बनाते रहें और अपने चहेते दर्शकों को सदा सुखी करते रहें।