Thursday, October 25, 2007

अब तक उनसठ .....| मैं क्या समझूँ !!

“मैं बेकसूर हूँ जज साहब , मैने कुछ नही किया, मेरा यकीन कीजिये, मुझे फँसाया गया है .......” इस तरह की रिरियाहटें और “मैं जो कहूंगा सच कहूंगा ,सच के अलावा कुछ नही कहूंगा ” जैसे पिटे हुए वाक्य अक्सर हिन्दी फिल्मों के अदालती दृश्यों में सुन-दिख जाते हैं ।और नीर-क्षीर-विवेक सा न्याय का न्याय और अन्याय का अन्याय [दूध का दूध और पानी का पानी भी कह सकते है ] हो जाता है । खलनायक और उसके साथी सलाखों के पीछे जाते हैं ।अगर यह फिल्म का अंत हो तो दयनीय भाव के साथ अगर फिल्म का मध्य हो तो गर्दन झटकते हुए ‘तुझे तो मै देख लूंगा’ वाले अन्दाज़ में ।शुरु में भी और मध्य में भी हम जानते हैं अपराधी-दोषी कौन है;यह भी जानते हैं कि उसे सज़ा मिलेगी अवश्य । लेकिन वस्तुजगत में क्या न्याय की प्रक्रिया इतनी ही त्वरित और सजग है ? क्या हम न्यायालय में इंसाफ के अलावा कुछ नही मिलेगा पर यकीन कर सकते हैं ?शायद उत्तर नकारात्मक है । वकालत एक बदनाम पेशा है और असली गुंडों के साथ साथ वर्दीधारी ,कुर्सीधारी,उद्योगपति गुंडे भी हैं ।ऐसे में न्यायालय की सक्रियता और सज़ाओं का दौर चौकाने वाला है ।जनसत्ता का आज का मुखपृष्ठ अलग अलग चार खबरों में 59 लोगों को[गिनती गलत हो तो माफ़ करे‍ हमारा गणित बहुत कमज़ोर और गरीब है] विभिन्न केसों में उम्रकैद के फरमान की तफ़सील दे रहा है ।दस साल पहले दिल्ली के कनॉट प्लेस में फर्जी मुठ्भेड कर के दो व्यापारियों की हत्या करने वाले दस पुलिसवालों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है ।फरवरी 1998 यानी 9 साल पहले कोयम्बटूर में लालकृष्ण आडवाणी की हत्या की साज़िश रचने और सिलसिलेवार बम विस्फोटों के लिए 31 दोषियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी है ।वहीं नेता भी इस से नही बचे। 2003 में चर्चित् मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि को सपत्नीक व दो अन्य को उम्रकैद का फरमान सुना दिया गया है। दिसम्बर 1992 यानी 15 साल पहले बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के गुस्से में कानपुर में 11 लोगों को जलाने के मामले में 15 लोगों को अदालत ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई है ।इनमें कोयम्बटूर वाले केस में कई अपराधियों को दोहरी-तिहरी-और चार बार उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है ।अब्दुल ओज़िर को 125 साल कैद की सज़ा सुनाई गयी है । वही फर्जी एंकाउंटर केस में सी बी आई ने दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी ।

यह खबरें क्या संकेत करती हैं ? अदालती प्रक्रियाओं पर यकीन लौटाने में इनसे मदद मिलेगी ? या सर्वोच्च न्यायालय तक जाकर स्थितियाँ पलटने वाली हैं ? मै अब भी निष्कर्ष निकालने में असमर्थ हूँ । क्या न्याय-प्रक्रिया अपनी निरंतर होने वाली आलोचनाओं से झटका खाकर हरकत में आ गयी है ?सच का कितना और कौन सा अंश हम तक पहुँच रहा है ? क्या हमें आनन्दित होना चाहिये ? मै हतप्रभ हूँ ।

Monday, October 22, 2007

बाज़ार में खडा रावण


इधर बहुत दिन से कुछ लिखने का वक़्त और् समां नही बन्ध पा रहा । बीच बीच में झांक ज़रूर जाती हूँ कि किसने क्या लिखा । खैर , अब जबकि त्योहारों का आलम है और हम अभी अभी रावण को फूँक कर हटे हैं तो एक आंखिन-देखी की एक पोस्ट भी चिपका ही देते है । हुआ यूँ कि रावण –जलन [ दहन कह लीजिये ] की पूर्व सन्ध्या पर हम दिल्ली के तिलक नगर की ओर एक कार्यक्रम अटेंड करने चल रहे थे । टैगोर गार्डन आते आते सडक के दोनो ओर का नज़ारा देख मुँह खुले खुले रह गये ।लाल-बत्ती, चौराहा तिराहा. फुटपाथ, पार्क जहाँ जहाँ जगह हो सकती थी वही वही बडी बडी मूँछों और दांत वाले, अट्टहास करते रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के विशालकाय पुतले जलने को तैयार पडे थे । कुछ दशानन ,धड और बाकी अंग ट्रकों में सवार होकर सडकों पर दौडने लगे थे न जाने किन गंतव्यों तक पहुँचने के लिए । यह रावण का बाज़ार था । बोर्ड लगे थे- मोहन रावण वाला, सोनू रावण वाला [कोई राम या रामू रावण वाला भी रहा हो तो आश्चर्य नही ] । यह बाज़ार है । राम रावण में बन्धुता है । रावण के भरोसे कई रामों के घर के चूल्हे जल रहे हैं । अखबारें बता रही हैं पुतलों की मांग बढ रही है । पुतले जलाने का चलन बढा है । जयपुर से बडी डिमांड आ रही है । क्या लोग दशहरा को वाकई धर्म की विजय का पर्व मानकर मनाने लगे है ? क्या रावण दहन से वे अपने बच्चों को अच्छाई का पाठ पढाने लगे हैं ।
चलिए चाहे जितना चाहे बाज़ार को गरियाएँ पर इतना ज़रूर हुआ है कि बाज़ार ने सबको अवसर प्रदान किये हैं । वह हर तरह का वे-आउट सुझाता है । सैकडों तरीके और उपाय हरएक के लिए हैं उसके पास ।बाज़ार –दर्शन बडा प्रबल दर्शन है जो हर धर्म ,हर सभ्यता, हर संस्कृति के अनुरूप खुद को ढाल लेता है । त्योहार प्रधान इस देश में वह और भी सफल हुआ है । बाज़ार बिना त्योहार की कल्पना असम्भव है । इसलिए भई हम तो अक्तूबर माह के आने से पहले भय से काँपने लगते हैं। जेबें ढीली होते होते नया साल मनाने की नौबत आ जाती है । श्राद्धों में , नवरात्रों में व्रत के खाने में, आलू चिप्स में, डांडिया के डी जे में ,दुर्गा पूजा के पंडालों में,गीतों में, मेहन्दी में ,शादी में , करवाचौथ में, दीवाली मेलों में,पटाखों में,लडियों में ,मिठाइयों में, उपहारों में, दूज में, गोवर्धन में ...........सब में, सबके बीच बाज़ार उपस्थित रहता है । और इसी के बीच खडा है रावण जो बार बार जल रहा है पर रक्तबीज सा पल रहा है । जितना ही जलता है उतना ही बढता है ।