Saturday, April 28, 2007

आज के सबसे पॉपुलर देवता

सर्व प्रथम --- इस पोस्ट का हिन्दुत्व और मोहल्ला प्रकरण से कोई लेना देना नही है ।


आज शनिवार है और मेरा मानना है कि आज के सबसे पॉपुलर देवता "शनि देव महाराज जी हैं " {हनुमान जी मुझे यह पोस्ट लिखने के लिए उनके कोपदृषटि से बचाना। कहा जाता है कि शनि के क्रोध का तोड सिर्फ हनुमान कर सकते है ,इसलिए शने पीडितो को हनुमान चालीसा के नियमित पठन की सलाह दी जाती है । } जब मै छोटी थी शनि देव से बहुत डरती थी । मेरीमाँ बहुत गॉड-फियरिंग हैं । उन्होने ही भगवानो से डरना सिखाया {अच्छी बातें भी बहुत सारी सिखाई,उन्हे सादर प्रणाम }। उनसे ही जाना कि शनि रुष्ट हो तो सत्यानास ।{मेरी माँ अच्छी पढी लिखी हैं पर शनि की दृष्टि का भय आजकल सभी को हो चला है }
तो डर के मारे शनिवार को ना हम नया कपडा पहन सकते थे ,ना नाखून काट सकते थे, न बाल धो सकते थे { मै तो डर से हँसती भी नही थी ,कहीं पेपरो मे नम्बर खराब हो गए तो...} ।यहाँ तक कि उनके लिए कुछ सोच भी नही सकते थे ,कही काली दाल् दान करने को कभी कह कर भूल गए तो जीवन नर्क समझो। सो हमारे मन मे उनकी छवि देवों मे विलेन जैसी हो गयी {कोई आहत ना हो ,ये मेरे बचपन के विचार हैं } जिसका असर आज तक चला आ रहा है कि लोटे मे सरसों का तेल लिए घूमते बच्चो,स्त्रियो बाबाओ को एक सिक्का तो दे ही देते है ,हफ्ता वसूली :)
शनि की साढेसाती, यानी साढेसात साल चलने वाली दशा और 18 बरस चलने वाली शनि की महादशा व्यापार ,व्यव्साय, स्वास्थ्य,संतान करियर स्टैंडर्ड प्रतिष्टा सब कुछ ध्वंस कर सकती है ।इसी से ज्योतिषी हर दूसरे व्यक्ति का शनि भारी बताते है या और कुछ नही ति आधी साढेसाती कह कर उपाय बताते हैं ।क्योंकि इनके उपाय भी तो उतने ही मँहगे है । नीलम पतथर 20,000 से लेकर 1 लाख की कीमत तक जाता है ।और नेताओ व्यापारोयो को तो इन देव का विशेष भय रहता है और सर्वोत्तम उपाय के लिए उन्हे पत्थर बेचने वाले दूकानदार वाया ज्योतिषाचार्य लाखो का नीलम इम्पोर्ट कर के देते हैं।

शनि के भार से घबराया व्यक्ति कुछ् भी उपाय कर सकता है । इसलिए हमे शनिवार को किसी का प्रसाद लेना भी मना था ।
अब हम खुद हे किसी का प्रसाद नही देते लेते ।
शनि देव पर सीरियल भी है और टी सीरीज़ वालों के गाने भी । "ये है शनि दशा रे मेरे भाई...ओ मेरे बन्धु ... करो शनि देव की मन से पूजा......."शायद फिल्म भी बना डाली है ।खौफनाक फिल्म! देखी तो नही ।पर ऐसी होगी कुछ कि कोई व्यक्ति शनि देव की मन्नत मानकर,, कि बात पूरी हो तो ऐसा ऐसा करूँगा ...--- बात पूरी करवा कर भूल गया होगा । तो शनि देव बोले होंगे -"ले बेट्टा, मन्नत पूरी हुई तो भूल गया...दुख मे सिमरन सब करें...सुख मे ...। तो ले अब भुगतियो बैठ कर " डःइश! डःइश !ढिश! " और फिर सब सत्यानास ! महल झोंपडी हो गया होगा , वह व्यापारी से भिखरी ,बीवी रानी से नौकरानी , बच्चे भींख माँगते होंगे -----"ए माईए! कुछ्ह खाने को दे ना !"और फिर शनि देव {चूँकि उनके पत्नी की मुझे कोई जानकारी नही है } तो कोई और या नारद जी उनसे सिफारिश करते होंगे "हे प्रभु इस अबोध के दुख हरो" वे नही मानते होगे । फिर नारद हनुमान के पास जाते होगे क्योकि नारद सबकीए खबर रखते थे ,कि हे! हनुमान , शनि के कोप से आप ही उन्हे बचा सकते हो ।" ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला । जिन महाशय ने फिल्म देखी हो मुझे करक्ट कर दे ।
हर वार कुछ न कुछ निषेधात्मक सलाह देता है --
मंगलवार -नाई की दूकान बन्द , मीट बन्द । हम बाल नही धोये । पुरुष दाढी ना बनाऎ।
बुधवार - विवाहिता मायके से ससुराल विदा ना हो । बुधवार व्रत कथा इसी प्रसंग पर बनी है।
गुरुवार -कपडे ना धोएँ , साबुन ना लगाएँ , बाल ना धोएँ { मेडीकर बेचने की ज़रूरत पडेगी कि नही !}
शुक्रवार -खट्टा ना खाएँ । संतोषी माता और लक्ष्मी जी का व्रत ।
और शनिवार - लोहा ना खरीदें । नए काम की शुरुआत ना करे, नया कपडा ना पहने { जैसे हमारी हर नई चीज़ पर शनि देव को आपत्ति हो ।}
हमेशा कहा जाता है --शनि की "कुदृष्टि"।
क्या इसी लिए कहते हैं-----"बुरी नज़र वाले ,तेरा मुँह काला"
काला शनि देव का रंग है । काला बुराइयों का सिंबल है । क्यो ? कृष्ण भी काले थे ।उनको तो पूजते हैं । कृष्ण शब्द का तो अर्थ ही है "काला"

काले को बदनाम करने की साज़िश तो नही है यह । हम भी इंग्लैड मे काले के नाम से बदनाम थे
black indians , black dogs !
खैर यह अवांतर प्रसंग है ।
मुद्दा यह था कि शनि देवों मे और प्राचीन विद्याओं मे आजकल ज्योतिष बहुत पॉपुलर हो रहा है । मीडिया ने यह काम बखूबी अंजाम दिया है । एस 1 और कई चैनल रोज़ का भविष्य बताते हैं ।खबरिया चैनलों को भविष्य बताने की ज़रूरत क्यो पडती है । क्या ज्योतिष इन-थिंग है । क्या हमारे भाग्यवाद को बढावा दिया जा रहा है या मार्केट मे उसे भुनाया जा रहा है ।

सोचें,विचारें

Thursday, April 26, 2007

वर्ना हम भी आदमी थे काम के.....

फरवरी मे किन्ही वैरियों ने { मसिजीवि और नीलिमा और कौन हमारे बहुत सारे दुश्मन हैं :) } हमें ब्लॉग जगत का रास्ता दिखाया और कहा एक और दुनिया भी है बच्चा ,वहाँ जाकर छपास भी शांत होती है और पीठ की खुजली भी मिटती है । आओ तुम्हारे ज्ञान की चिट्ठाजगत को नितांत आवश्यकता है " सो हम इधर की गली पकड लिए । पीएच डी मुई पूरी हुई गई थीं सो कुछ काम भी नही था । लगे पोस्टियाने ।
पर आज हम ऐसी हड्डी गले माँ फँसा लिए कि ना उगलते बने ना निगलते । रोज़ सुबह पति बच्चे को रवाना कर कीबोर्ड कूटने बैठ जाते हैं ।क्या कहें ऐसी ऐसी पोस्टों की उबकाई आती है रात भारत कि घरवालों का डर ना हो तो रात मे भी कंप्यूटर के कान उमेठते रहें । एक दिन पोस्ट ना डालें तो दाद खाज सब लग जाती है ।
फोन के बिल नही भरे जाते , बेल बजने पर गालियाँ देकर उठ्जते है ,सेल्समैन को धमकाते है , भूख से आँते कुल्बुलाती हैं तो भी कीबोर्ड नही छोडते , बच्चे पर झल्लाते हैं, सास के बुलाने पर कहते हैं-"इस घर में तो चैन से ब्लॉगिंग करना भी हराम है " ,टी वी देखे अर्सा बीत गया । बुद्धू बक्सा छोड आवारा बक्से की शरण गही और सर्फिंग कर्ते करते कबहूँ ना चैन से सोया ।
ब्लॉगिंग मेरी किचन है
ब्लॉगिंग मेरा भोजन
ब्लोगिंग मेरा मात्र कर्म ब्लॉगिंग ही प्रयोजन ।
देखा कविता भी कितनी उबकाई भरी करने लगी हूँ । जिस कुर्सी पर बैठती हूँ, ब्लॉगिंग करने, उसे छाले पड गये हैं , कीबोर्ड का बदन दुखता है उसके अक्षर मिट गये हैं ,मिट कर मेरी उंगलियो मे छप गये हैं ।भाषा बर्बाद हो गयी ।कोई शब्द बोलती हूँ तो दिमाग मे कीबोर्ड चलता है- चलता ?? दिमाग में CHALATAA है ।अब मेरे हाथ अंग्रेज़ी नही लिख सकते मेरे तो गिर्धर गोपाल दूसरो ना कोय की तरह। ।
मैं कहती हूँ "और कोई गम नही ज़माने मे ब्लॉगिंग के सिवा......."
टांसलिटरेशन ने खोपडे के खोपचे का बल्ब फोड डाला ।रोमन मे हिन्दी लिख कर किसी से चैटिंग करें तो लिखते हैं -kyaa haal hai aapakaa
किताबें कीडे खा रहे हैं हम ब्लॉग पर टिप्पिया रहे हैं चिप्पिया रहे है , और पता नही क्या क्या ।
ब्लॉगर्स ढिग बैठ बैठ लोक लाज खोई
मेरे तो गिर.....
हमारा भेजा कूडा करकट हो गय है ।दिमाग को डायरिया हो गय है । मॉनिटर गन्दा हो रह है । हम यहाँ बैठे बैठे ताने सुनते रहते है , पर बेशर्मो की तरह डटे रहते हैं।
भूखा क्या चाहे - दो घण्टॆ की ब्लॉगिंग !
जात पे ना पात पे मोहर लगेगी ब्लॉग पे !
ब्लॉग के अन्धे को टिप्पणी हीटिप्पणी दीखे !
ना होगा ब्लॉग और ना राधा टिप्पियाएगी !


ब्लॉगिंग ने हमें निकम्मा कर दिया वर्ना ...........
नोट ---- इसे पढ कर आपका दिमाग खराब हुअ हो तो ....
तो मै क्या करूँ ?

Wednesday, April 25, 2007

रामदेव को ऐसे देखो

मौर्य जी को मोहल्ले पर पढा । ट्प्पणियाँ भी देखी।
भई हम तो ना बाबा को सुनते है ना मानते हैं ।फिर भी यहाँ अजीब लगा जब मौर्य जी ने कहा
"अगर
बाबा रामदेव की योग शिक्षा को परे रखकर उनके प्रवचनों को ध्‍यान से सुना जाए तो यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि वह हिंदुत्‍व की ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनके प्रवचनों में सिर्फ हिंदुत्‍व और उसके आदर्श ही नज़र आते हैं "
मुझे लगता है यहाँ एक प्रकार का चश्मा पहन कर देखने से ही कहना संभव होता है । हैरानी तो यहाँ है कि वे अपनी बात के समर्थन मे बाबा का एक भी वाक्य उद्धृत नही करते।
आस्था और भक्ति क्या केवल हिन्दू आदर्श हैं ? क्या अन्य धर्म तर्क पर आधारित हैं?
आस्था भक्ति और श्रद्धा शायद किसी भी मानव धर्म की सत्ता के अनिवार्य पहलू हैं बिना इनके कोई धर्म खडा नही होता । जब हमा तर्क करते है तो ज़रूर इस मध्यकालीनता से आगे आ जाते हैं।प्रश्न करना, तर्क देना आधुनिकता है । इसलिए बात को कहने से पहले वैध् तर्क खोजना ज़रूरी है वर्ना यह भी एक अन्य किस्म की आस्था ही है कि भक्ति की बात होते ही हम खतरे की घण्टी सुनने लगें।

मेरी नज़र मे बाबा वाला सारा मामला मार्केटिंग की दृश्टि से देखा जाना चाहिए। जो बिकाऊ नही उसकी सत्ता निरर्थक है । योग जब तक बाज़ार की उत्पादन -वितरण प्रणाली के योग्य न था उसे किसी ने नही पूछा । बाबा ने योग को देशी ही नही विदेशी बाज़ार मे भी बेचने योग्य बना दिया ।मार्केटिंग स्किल्लस अगर आपमे है तो आप गोबर भी ऊँची कीमत पर बेच सकते हैं फिर यहाँ तो योग है । रामदेव ने उसे ऐलोपैथी से टक्कर लेने काबिल दिखा दिया ।वर्ना कौन पूछता था इसे ।
अभी संस्कृत पर भी बात चली ठीकि क्या यह एक मृत भाषा है? आप संस्कृत को बाज़ार के उपयुक्त बना दें और फिर देखें कैसे यह जीवंत हो जाती है ।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि मै न रामदेव की भक्त हूँ {जैसा कि इस पोस्ट के बाद माना जाने की संभावना है} ना मै उनहे सुनती हू, ना उनका समर्थन या प्रचार करना चाहती हूँ । धर्म और आस्था को हर बार बीच मे ला ला कर हम शायद इस मुद्दे के प्रति संवेदनशीलता खत्म कर देगे और सहिष्णुता को भी ।
हर एक बात मे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अन्दाज़े गुफ्तगूँ क्या है......................

Tuesday, April 24, 2007

चर्च ताल और नाम

क्वीन मेरीज़ चर्च -सवा सौ साल पुराना
इसकी देखभाल करते सैनिक सुबह शाम मिले । ज़्यादातर समय सैनिको को सफाई करता देख हमसे रहा न गया और राज़ पूछ डाला। 20 अप्रैल को वहाँ निरीक्षण होना था । अपने विद्यालयी दिन याद आ गये। पहले भी एक फोतटो मे झाडू लगाता सिपाही दिखा था ।हम हैरान थे ,जिस अनुशासन से हम स्कूल मे भी भागे फिरते थे ,तंग थे ; वह अनुशासन इन्हे सेवानिवृत्ति तक मानना होता है । इन्ही से देश है भई ।!
पिछ्ली कडी मे जो ऐतिहासिक चित्र थे वे सब इसी चर्च मे रखी पुस्तक मे से थे । उस पुस्तक का आवरण भी दिखाया गया था । नीचे के पृष्ठ पर लॉर्ड लैंस डाउन का चित्र है जिनके नाम पर इस स्थान का नाम पडा ।पहले इस स्थान का नाम कलुडांडा था ।साथ मे लिफ्टिनेंट गवर्नर का चित्र भी ।
भुल्ला ताल्
जिसका विकास 2003 मे किया गया क़ैंट द्वारा ही । उससे पहले यहाँ एक नाला हुआ करता था । पर्यटन का विकास तो है ,पर व्यावसायिकता का आडम्बर नही क्योंकी सब कुछ छावनी के हाथ मे है ।
भुल्ला ताल की बत्तखों के साथ हमारे बच्चे ।नीलिमा जी की बेटी ,हमारा बेटा । इनकी बल्ले बल्ले हो गयी थी । नीचे ताल मे तैरती बत्तखें ।
हर स्थान पर प्यार करने स्थान मिल ही जाते हैं और कभी कभी नाम भी वैसे ही पड जाते है ं।नीचे लवर्स लेन का चित्र

यहाँ कोई आता जाता नही । रात मे तो बाघ और गीदड ज़रूर आते जाते हैं ।पास ही जिन महिला का घर है उनकी छतों पर से बाघ रात मे कूद फाँद करते जाते हैं किसी कुत्ते की फिराक में।

Monday, April 23, 2007

तस्वीरें बोलती हैं..

इन चित्रों को अलग लिंक विंडो मे खोल कर देखें।

तस्वीर की तस्वीर। अलग खोल कर देखने पर आप लिखा हुआ पढ पाएँगे।

लैंस डाउन - कुछ और भी है कहना दिखाना

ऐसे साफ आसमान को शायद हम दिल्ली मे नही देख सकते। ऐसे ही नज़ारों को मन भर समेट लेने के लिए हम बार बार दौड जाते हैं पहाडों की ओर।
बादल -सूरज का यह प्रिय खेल है । अपनी ऑखों से हर नज़ारा ,काश दिखा पाते। और गढवाल छावनी मे हमारा प्रवेश।साफ और सुन्दर सडकें।
"
एक गोली एक दुश्मन "
यह कहना है गढवाल राईफल्स का ।जोशीला चित्र देख ते ही छावनी का चरित्र सामने आ जाता हैं ।झाडू लगाता एक सिपाही नज़र आता है, चमकती सडके इन्ही की बदौलत हैं ।


सूर्योदय का दृश्य छन कर दिखता हुआ पेडों से।

to be continued....

Sunday, April 22, 2007

[2] दिल्ली से ....सडक का रास्ता

दिल्ली से निकलना आसान काम नही।कई अर्थों में।ट्रैफिक तो भयंकर होता ही है दूसरा समय कम काम अधिक लगते हैं। ऐसे मे कुछ छुट्टियों का मिल जाना राहत देता है ।यहाँ की आपाधापी,तनाव,धूल,गर्मी मे बीच बीच मे मन उचाट हो जाता है ।और सब कुछ छोड् कर भागने का मन करता है।तो हम भी भाग चले कुछ् दिन के लिए ।रास्ते मे पहली बार कैमरा निकालने का मन तब हुआ जब ये नज़ारे दिखने लगे -- इस पेड के खूबसूरती और रंग ने बरबस रोक लिया ।
हाई-वे का रास्ता मज़ेदार है।जब खेत शुरु हओते है

दिल्ली से मोहन नगर - मेरठ रोड - शास्त्री नगर बाई पास{मेरठ नगर मे घुसना खतरे से खाली नही -भयंकर जाम मे फँस सकते हैं} -मवाना रोड - बिजनौर - नजीबाबाद {मवाना से यहाँ तक रात में सफर करना भी समस्याग्रस्त है , क्योंकि मार्ग पर रात मे गन्नोंसे भरे ट्रक, ट्रैकटर,बग्गियों का राज होता है जिन्हे& मवाना चीनी मिल जाना होता है। } - कोटद्वार { पहाडों का द्वार} -दुगड्डा - लैंस डाउन ।
वैकल्पिक रूट है - दिल्ली से मुरादाबाद - नजीबाबाद - फिर वही ।लेकिन यह रास्ता लम्बा है और मुरादाबाद से नजीबाबाद का रास्ता बहुत खराब है ।सडक संकरी है और गड्ढों से भरी।
नीचे उस रास्ते की तस्वीर जिस पर हम चले।यानी मेरठ वाला ।
साइन बोर्ड देख सकते हैं।
पहाडों की पहली झलक । हाँलाकि रोड शहर की तरह व्यस्त है और शोरयुक्त भी। पर सडक को कौन ध्यान दे जब सामने पर्वत खडे हों विशाल ,हरे,सम्मोहक ।दिल्लीवालों के तारन हार ।
यहाँ के बाद हवा बदलना शुरु होती है । वनस्पति रूपाकार बदलती है । अब खिडकी से बाहर मन रमने लगता है । नीचे एक सूखी नदी कोटद्वार से थोडा आगे जहाँ पर्वत के चरण हैं।

शेष अगली कडी में ..........

Saturday, April 21, 2007

बादलों से ऊपर....

बादलों के ऊपर, यह दृश्य है टिप-इन-टॉप का। लैंस डाउनअ छावनी है गडवाल राइफल्स की। टिप -इन-टॉप यहाँ सबसे ऊँचा स्थान है जहाँ से हिमालय की बर्फीली चोटियाँ दिखाई देती हैं। अजीब है कि गर्मियों मे यहाँ धुंध होती है जिसके कारण चोतटियाँ नहीं दिखती ,लेकिन सर्दियों मे बिल्कुल धुन्ध नही होती और इन्हें देख कर आप हत्प्रभ रह जा सकते हैं। हम बादलों को आक के फूल की तरह, बच्चा बन कर पकड लेना चाहते हैं। बारिश अभी अभी हुई थी इसलिए नज़ारा और भी खूबसूरत ,और भी दिल्कश था। ऐसे मे कौन नही कह उठेगा---


छोड द्रुमों की मृदु छाया
तोड प्रकृति से भी माया
दिल्ली तेरे मॉल-जाल में
कैसे उलझा दूँ लोचन।

Monday, April 16, 2007

ज्ञानदत्‍तजी क्षमा करें मैं फिर कतरन लेकर हाजिर हो गई हूँ

वैसे ज्ञानदत्‍त जी को इस तरह कतरने समेटने से आपत्ति है और हम भी कोई फूल कर कुप्‍पा नहीं हुए जा रहे हैं लेकिन फिर भी जनसत्‍ता की इस कवरेज को पूरी साज सज्‍जा के साथ फिर से इसलिए पोस्‍ट कर रहे हैं कि एक तो भिन्‍न टाईम जोन में अवस्थित चिट्ठाकारों तक पूरी स्‍टोरी का रूप पहुँच सके दूसरा जितेंद्रजी ने इसका आग्रह किया है जिसे नकारना हमारे लिए आसान नहीं। वैसे सामान्‍य ब्‍लागिया छापे में पूरा लेख मसिजीवी के चिट्ठे पर उपलब्‍ध करा दिया गया है।

बड़ी छवि के लिए छवि पर क्लिक करें




मुख्‍यपृष्‍ठ का शेष अंश अगले पृष्‍ठ पर जारी



Saturday, April 14, 2007

जनसत्‍ता में अंतर्जाल पर देसी चिट्ठे

अभी फोन पर पता चला कि चिट्ठाजगत को कल जनसत्‍ता में आने वाली आवरण कथा की सूचना दे दी गई है। कल कोशिश करेंगे कि पूरा लेख पोस्‍ट हो पाए, वाया मसिजीवी। आज जनसत्‍ता में छपी सूचना यह है।



Tuesday, April 10, 2007

शादी किसकी बर्बादी ......ऐशवर्य-अभिषेक के विशेष सन्दर्भ में


आने वाली 20 अप्रैल को दोनो शादी कर रहे हैं।कहा जाता है मेड फॉर ईच अदर कपल हैं। फिर भी तमाम कर्मकाण्ड अब तक किए जा चुके दोनो के निर्विघ्न वैवाहिक जीवन के लिए।
खैर ,, ये दोनो सुखी रहें! इन्हें हिन्दी ब्लॉगजगत का आशीर्वाद है।
मुद्दा यह है कि जब हम रिश्तों की असमानता की बात कर रहे थे ,तब बहुत से लोगो को हमारे विचारों से दिक्कत हो रही थी। वे मान रहे थे कि वर्तमान कोई भी पारिवारिक संरचना सम्बन्धो की असमानता की सूचक नही है ।
असहमतिओ का सम्मान है। पर विस्तृत बहस मे न पडकर अपनी बात इन दोनो के उदाहरण से देना चाहूँगी। हालाँकि शादी अभी हुई नही है इसलिए अटकलें लगाना शायद आसान है कि दोनो की शादी किस के करियर के लिए अहितकर साबित होने वाली है लेकिन हिदायतें और न्सीहते देने वाले बहुत से हैं । संडे के डेलही टाइम्स मे खबर छपी कि बॉलीवुड ,जहाँ ज़्यादातर शादियाँ एक्सपाइरी डेट के साथ आती है , वहाँ दिलिप कुमार -सायरा बानो अपवाद हैं।सायरा बानो जो विवाह के समय अपने करियर के उत्कर्ष पर थीं कहती हैं-""" marriage is certainly an eye-opener and I slowly had to deal with things which were a revealation to my young mind....................
If you want your marriage to work, one of the two has to take a back seat in the carrrer. there's no two ways about it. you have to choose to be under the other's shadow. and this is something you have to do for love ......
I believe SACRIFICE MAKES A SUCCESSFUL MARRIAGE """----
ऐसी ही बात कभी सार्त्र {अस्तित्ववादी दार्शनिक} ने कही थी कि--" प्रेम का अर्थ है अपनी स्वतंत्रता खोकर किसी और की अधीनता स्वीकार करना, या किसी और की स्वतंत्रता छीन कर उसे अपने अधीन करना..."
स्पष्ट है त्याग किसने किया , क्यो किया
सायरा जी के ये कथन किसी स्त्री के लिए उपदेश हों तो हों हमारे तईं तो ये शब्द गंभीर चेतावनी हैं।{पर अब पछताए होत का जब..........}:):)
कहने का तात्पर्य यह कि घर और घर से जुडी हर् संरचना स्त्री की पीठ पर लदी है ।
घर बनाए तो वह। रसोई पकाए तो वह। बच्चे पाले तो वह।
और घर के आराम सदा दूसरो के लिए। रसोई का खाना दूसरों के लिए एक और आराम। नहाए ,खाकर अघाए बछे खिलाना औरों का सुख ,जिसे कोई भी लूटने को तयार रहता है।
ऐसे मे हम असमानता पैदा करने वाली संरचना को ढोए चल जाएँ ,तो क्यों ? राखी सावंत भी शादी कर ले ,सिर्फ कर ना ले ,उसे चलाना भी चाहे तो सायरा जी को तो याद करना ही पडेगा ।
तो स्त्री को अगर घर बनाना है तो करियर मे take a back seat.... क्योके त्याग ही{केवल स्त्री का ???} शादी को सफल् बनाता है।
मेरे व्यक्तिगत मामले मे यह समीकरण ठीक उलटा है।इसलिए यह मेरी कुंठा नही है जो बाहर आ रही है ।क्योकि हममे अकसर यह आदत होती है कि किसी के विचारों से उसके व्यक्तिगत जीवन का ताल्लुक बैठा देते हैं। जब मैने रसोई नष्ट करने की बात कही तो कहा गया कि _नोटपैड वाली सुजाता जी रसोई से दुखी हैं। सायरा जी की बात सुन कर यह कहना कि वे अपनी शादी से दुखी हैं ,, अजीब नही लगता?
लेखक का कंसंर्न व्यापक हो तो ही लेखनी प्रभावी होती है । व्यक्तिगत पीडा भी अभिव्यक्त होती है तो व्यापक सन्दर्भ में।
तो आशा है कि सोच की उदारता के साथ हम विमर्श कर पाएँगे । व्यंग्यार्थ समझ पाएँगे। व्यंजना ले पाएँगे ।
और ऐश- अभी को भावी ,सुखी करियर और शादी की मुबारक बाद दे पाएँगे।

Monday, April 9, 2007

आर यू फीलिंग लकी टुडे..?

वैसे तो हमारा नियति मे विश्वास है ,या कहें समय के साथ साथ हो ही चला है। 'वैसे तो' इसलिए कहा कि ज़्यादातर लोग सोचते है कि प्रोग्रेसिव थिंकिंग और नियति का मेल नही है । यूँ भी नियति मे हमारे विश्वास का मतलब 'नियतिवादी' होना नही है । ऐसा कतई नही है कि हम यह सोच कर बैठ जाते हों कि नियति जहाँ ले चलं वहाँ चल देंगे। पर निरंतर प्रयत्नशील रहते हुए भी कई बार देखा है कि परिणाम अपेक्षा से परे या भिन्न या उलट होता है । फिर भी हम सोचते हैं और लगातार काम करते रहते हैं। इसके पीछे भी नियति का विश्वास ही लगता है क्योंकि कब कहाँ क्या हो जाएगा हमेशा इसकी भनक आप नही पा सकते। हो सकता है कि नियति ने कुछ रच ही रखा हो जो देर सवेर मिल जाएगा या जिसे हम सहेजे बैठे है वह नष्ट होने वाला हो ।
दरअसल जीवन की अनिश्चितता से ही नियति का खयाल जन्म लेता है।

खैर यह बोरिंग संभाषण तो केवल भूमिका है।बाज़ार हमे लकी बताता है अपने अनुसार।
हमारे विचार को उद्दीप्त किया गूगल के इस प्रश्न ने--आर यू फीलिंग लकी टुडे?
हम सोच रहे हैं कि यह चक्कर क्या है कि हमारा लकी होना , स्वस्थ होना, ज़िम्मेदार होना, विकासमान होना, समझदार होना यह सब विग्यापन हमे बताते है जिनके पीछे एक बडा खौफनाक बाज़ार रौद्र मुद्रा मे हमे लीलने को खडा है। कुछ भी हो हमे खरीदारी करनी चहिए , हमें मॉल मे घुस कर उसकी चकाचौंध पर निछवर होते हुए अपनी जेब खाली कर देनी चाहिए। हमें बडे बडे शो रूम मे घुस कर खाली हाथ नहीं लौटना चाहिए । कुछ न कुछ चढावा ज़रूर चढा कर आना चाहिए। ऐसे मे मध्यवर्ग की गत सब्से बुरी होती है । मॉल मे जाने की औकात नहीं , यह वह स्वीकार नही कर सकता: वहाँ बिना लुटे आना ,मन मारना, वह यह बे इज़्ज़ती भी बरदाश्त नही कर सकता। इसलिए 50 रुपए की कॉफी पीकर या एक पेन खरीदकर वह कलटी हो लेता है।
मॉल के बाहर खडे हुए लगता है वह हमसे कह रहा हो -" आओ! मुझमे खो जाओ। सब कुछ निछावर कर दो। लूट पाट करो ,चोरी, डकैती करो कुछ भी करो ;मुझ पर पैसा लुटाओ।फेंको पैसा, फिर देखो मै तुम्हे आनंद मे सरबोर कर दूँगा ।"
और हम अपनी चादर देखे बिना पाँव पसारने लग जाते हैं।
बेचने और बिकने की कला ,जीवन की कला होती जा रही है । बेचना और बिकना नही जानते तो इस माया जगत मे तुम्हारा हो ना निरर्थक है। तुम्हे मर जाना चाहिए और नही मरते तो बेशर्म माने जाओगे ।बज़ार के तिरस्कार के बाद भी जीते हो? 1 रुपया वापस माँगते हो? डूब मरो। यूँ ही उडा देने के लिए तुम्हारे पास 100 -500 रुपए भी नहीं। ऑटो वाला बिन्दास बोलता है--"- 5 रु. ही तो ज़्यादा माँग रहा हूँ ।इतना तो जायज़ है। सभी देते है।"
सब सीखने लगे है यह भाषा, बिकने- बेचने की भाषा, मॉल की भाषा ,नफे की भाषा।।और हमें लूट कर हमपर ही अहसान दिखाना इस कला की जान है ।लुटने वाले को लगना चाहिए कि उसका फायदा हो रहा है ।वह कितना लकी है कि उसे एक के साथ एक फ्री का ऑफर मिला है। वह खुशकिस्मत है कि पिज़्ज़ा घर वालो ने उसे एक पिज़्ज़ा के साथ दो पेय मुफ्त दिये है ।'कॉम्बो ऑफर' "ईकोनोमील"। वह लकी है। अन्यथा जहाँ वह झँकता भी नही जेब कटने के डर से आज वहाँ 500 रु. फेंक कर आएगा।

यहाँ तक कि कल हमारे पास फोन आया । सिटिबैंक वालों ने लकी ड्रॉ करके मुझे 1 लाख रुपए का लोन देने के लिए चुना है ।मुझ पर कर्ज़ चडाने के लिए मेरा चुनाव किया गया और मुहझे लकी भी कहा जा रहा है?
भींगा हुआ जूता मारना इसे ही कहते हैं क्या ?
ऐसे लोगों की बात ना सुनने पर हमे खडूस, पिछडा हुआ, गरीब वगैरह वगैरह समझा जाता है।
ठेले वाले भी इस कला से अनजान नही रहे। पूरी कोशिश कर वह इस होड मे शामिल हो रहे है। कहना चाहिए लूट मे वे भी शामिल है।
32 रु. किलो भिंडी,32रु. किलो करेले और इसी तरह बाकी भी। लेकिन सीज़न मे कुछ सब्ज़ियाँ बुरी तरह पिटती हैं।10 के दो किलो आलू मिल रहे थे कुछ दिन पहले। लेकिन रेहडी वाले की शर्त थी कि 2 किलो से कम आलू नही लेने दिए जाएँगे। गोभी 15 का आधा किलो देंगे, पर पाव भर लोगे तो 10 का पाव देंगे।
मरते क्या ना करते। ले ही जाते है उनकी शर्त पर सब्ज़ी और खुद को भाग्यवान समझते है कि हमे इतने सस्ते मे इतनी सब्ज़ी मिली। एकाध बुज़ुर्ग को उनसे भिडते भी देखा है। जिन्हे सब्ज़ी वाले बाद मे पागल और न जाने क्या क्या कहते हैं।
करोडपति बनने के लिए पहले फोन पर के बी.सी वालों के प्रश्नो का देर तक उत्तर दो ,फोन का बिल 2000 रु. , फिर भी आप हॉट सीट पर पहुँचे कोई गारंटी नही।
मोबाएल पर 8888 वाले सवाल पर सवाल करेंगे ,आप जवाब दोगे कार वगैरह जीतने के लिए। सब सही बताने पर मैसेज आएगा -play daily to win ....
मोबाएल का एक महीने मे आने वाला बिल एक दिन मे हो जाता है और आप धीरज खोकर आगे से न खेलने का ठानते हो। पर उस दिन जो लुटाया ,वह तो बाज़ार खा चुका ,उसका क्या?
15 रु का प्लास्टिक 150 रु. मे खिलौने के रूप मे खरीदने को मना करने पर हमारा बेटा खुद को वंचित मह्सूस करता है और हमें क़ंजूस कहता है ।

बज़ार तेरी जय हो । तू चाहे तो कुछ भी संभव है। तू चाहे तो ऊँचे दाम मे हमें गोबर बेच दे और हम फिर भी मानेंगे कि आज हम लकी हैं। हम लकी है कि आज हम बाज़ार के मुर्गे बने ।

Thursday, April 5, 2007

क्या आपने आज वोट डाला??

दिल्ली के निगम चुनाव का दिन था आज ५ अप्रैल और बहुत दिनो से उम्मीदवार, पत्रकार,अखबार,समाचार,{बेरोज़गार..} बावरे हुए घूम रहे थे। सरकारी स्कूल के टीचरों की कमर कसी जा रही थी। कोई उम्मीदवार लड्डुओं से तुल रहा था तो कोई सिक्कों से तोली जा रहीं थी{महिला उम्मीदवार थीं ना,इसलिए सिक्को से तुल रही थी,}।यकीन ना मानें तो कल का जनसत्ता देख लें। सभाओं की होड थी । जनता भी समझदार हो गयी है। बी जे पी वाले नेता की पार्टी खाकर तुरन्त उसके सामने वाले पार्क मे हो रही कंग्रेसी नेता की दावत उडाने चली जाती थी.।
दो चार दिन से तो आलम यह था कि पार्टियो के कर्यकर्ता घर पर बार बार पूछने आते थे{बडे ही शालीन अन्दाज़ मे}-- जी, फ़लां फ़लां मेम्बर है आपके घर मे ? कोई छूट तो नही रहा?
india t v ने तो 8 मार्च को ही शुरुआत कर दी थी। बहाना था "विश्व महिला दिवस" और जा जाकर विभिन्न पार्टियो की महिला सदस्यो से पूछ रहे थे कि राजनीति मे उनकी खूबसूरती की क्या अहमियत है? एंकर महोदय को उस दिन चैन नही था। बल्लियों उछल रहे थे और पुरुष सदस्यो से कह रहे थे_ आप से तो आज हम बात नही करेंगे। आज आप लोग सिर्फ़ सुनिए। {वैसे भी इतनी सारी महिलाएं सामने खडी हो तो कोई बोल ही क्या सकता है}
जी ,तो एक महिला उम्मीदवार के वे घर ही जा पहुचे{ शालू जी}। उनकी सास से खूब तारीफ़े करवाई,खुद उससे भी ज़्यादा की। पर बन्धु एक सुई पर अटक गए। शालू जी की सहयोगी महिला सदस्य से पूछा_ शालू जी मे सबसे खास बात आपको क्या लगतीह ै?"
वे कहना शुरु हुई--"वे सच्ची हमदर्द है, किसी को अपने दरवाज़े से खाली नही ...."
लो जी, अपेक्षित उत्तर नही मिला तो एंकर महोदय ने उन्हे बोलने ही नही दिया। खुद बोले--"आप तो नही बता पाई ,मै ही बताता हू>। वे सुन्दर है ,उनका व्यक्तित्व आकर्शक है bla bla bla bla bla bla"
उस पर भी उन्हे चैन ना आया.पूछते ही रहे जैसे सोच कर आएं हो कि यही उगलवाना है कि- स्त्री को उसकी सुन्दरता की वजह से टिकट भी मिलता है ,सफ़लता भी।
स्त्रियो के आरक्षण का मुद्दा भी तो गर्म था उन दिनो। बात हमारे दिमाग मे सेव {save} हो गयी ,आज मौका देख उगल दी।
हलांकि स्त्री विमर्श की द्रिष्टी से इस पर और चर्चा होनी चाहिए। पर अभी चुनाव की और बातें भी हैं।जिनमे कुछ व्यक्तिगत ,दुखद किस्से भी है।
तो, मुबारकपुर मे वोट नही डले। मशीने खराब थीं। बाद मे वोटरों का दिमाग भी खराब हो गया। एक बजे प्रशासन ने कहा "मशीने ्ठीक है ,आइए वोट डालिए।" तो वोटर,{बकौल हमारे ्टी वी चैनल} बोले---" सुबह से जो हमारा समय खराब हुआ पहले उसकी भरपाई हो"
पता नही इस भरपाई का क्या मतलब था
एक आध{ ?} जगह झगडे हुए पर कुल मिलाकर चुनाव शान्ती पूर्ण ढंग से निबट गए।
हमारे साथ लेकिन कुछ दुखद घट गया।
वोट डालने गए। अपनी ४ १/२ साल की औलाद को भी सथ ले गए ।
उसे समझाने और दिखाने कि वोट डालना क्या होता है।
बारी आई, तो हमारी औलाद दौडी ।ज़ोर से बीप की आवाज़ आई।
पता चला नालायक ने बटन दबा दिया। हमारा वोट डल चुका था। पोलिंग आफ़िसर और प्रेसाइडिंग आफ़िसर चिल्लाए।
पर अब का होत जब बेटा डाल चुका वोट।
तो, यह था भारत के सबसे युवा नागरिक का वोट, जो ना जाने किस उम्मीदवार के खाते मे चला गया। और हमारी उम्मीदो पर पानी फ़िर गया ।

Monday, April 2, 2007

तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊं


जनाब आज कौन सा विवाद sorry विचार उठाऊ समझ नही आ रहा था। बहुत पोस्टे पढी, कमेंट भी दिए। कुछ पोस्टे वीरान पडी थी {o comments वाली} उन्हे गुलज़ार किया,काम था मुश्किल फ़िर भी,यार किया।अर्रे, यह तो शायरी जैसा बन पडा भई।{भाई लिखा था, फ़िर भई कर दिया।कोई आहत ना हो जाए।वैसे भी फ़ुरसतिया जी कहे है अपने इंट्रवू मा कि नारद मे भाई चारा चारा चल रहा है।}वैसे भी आदत से मज्बूर है। किसी रेहडी, दूकान ,इस्टाल पर जाकर पूछते फ़िर्ते है -"टमाटर कैसे दिया भैया?",{जैसे मुर्गी को पूछ रहे हो_अण्डा कैसे दिया बहिनी!}
इतना ही नही, अपने दादा समान उम्र के आटो रिक्शा वाले से कहा--"चलेंगे भैया,क्नाट प्लेस?"
वह बिटिया कहे या बहनजी उसकी समझ मे नही आया सो बोला--"चलेंगे madam"
इत्ता ही नही हमने अभय तिवारी जी की एक बडीईईई सी टिप्पणी के जवाब मे लिखा--"आपकी पीढी से बडी उम्मीदे है......"
उनका जवाब आया--"आपकी पीढी से उम्मीदे है -कहे तो ज़्यादा ठीक नही होगा। आपसे १२ साल बडा होने के नाते।"
हमने उनका प्रोफ़ाइल नही देखा था।किसी का देखते भी नही। अब से देखने लगे है।
बातो से लगा था कि ऐसी सोच किसी तरुण की होगी जिसके मन मे आदर्श भारतीय स्त्री की छवि विद्यमान है।:) {अभय जी बुरा न माने,प्लीज़}
अर्रे, विषयान्तर करने की बहुत आदत है।
बात थी पीठ खुजाने की।तो हमारा मानना है कि टिप्पणी न पाने की पीडा पीठ की खुजली की तरह है। शुरू होती है तो कुछ उपाय करवा कर ही मानती है। किचन मे खुजली होना बहुत सेफ़ है ।बहुत से उपकरण है खुजाने के।बेलन ,कडछी,पलटा,चम्मच{छोटी खुजली के लिए}।विचार आया है सोचा बता ही देते है, यह कि टायलेट मे बैठे बैठे पीठ की खुजली जोर मारने लगे तो....।
तो हम कह रहे थे कि टिप्पासा पीठ की खुजली की तरह है। अकेले मे बडा सताती है।हमें मिलती रही है पर टिप्पेषणा है कि बढती जाती है।
हमने देखा कि कुछ लोग हमारे ब्लाग पर कभी आए ही नही।{टिप्पणी करने} उनकी भी टिप्पणी मिल जाए तो।{वैसे फ़ुरसतिया जी का आइडिया लागू हो जाए तो ३३% टिप्पणिया तो हमे मिल ही जएगी}।
सो, हम ऐसे लोगो के ब्लाग पर टिप्पणी मार आए, कि भैया कभी तो शर्म आएगी उन्हे मुफ़्त की टिप्पणिया खाते खाते। वैसे वे ब्लाग भी सुनसान पडे थे।जैसा हमने शुरु मे बताया।इसलिए वे भी भाईचारे के नाते हमारे ब्लाग पर टिप्पणी मारने आएंगे।:)
इस तरह हम एक -दूसरे पर टिप्पणिया मार मार के अपनी टिप्पेषणा शान्त करेंगे। मेरी टिप्पणिया लेने वालो ,मुझे भी टिप्पणिया दो।यह क्या कि नारद तो ५० हिट्स दिखाए पर टिप्पणी ४-५ ही नज़र आए। बिल्ली की तरह चुपचाप न जाए। अगर मैने किसी को सच्चे मन से टिप्पणी दी है तो भगवान इसका बदला देगा। वो गाना है ना--तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा। :):)।
तो मित्रो, चलो मिल कर पीठ खुजाए एक दूसरे की।
:):):):):):):):):) हमने जगह जगह यह स्माइली बनाई है। सुना है ऐसा करने से लोग बात का बुरा नही मानते। कडे से कडे पीस भी कडुवा घूंट पीकर रह जाते है ।

Sunday, April 1, 2007

indian express मे हिन्दी ब्लाग पर ही नही नारद पर भी लेख

कल की INDIAN EXPRESS मे सिर्फ़ हिन्दी ब्लौगिंग पर ही नही उसमे नारद की भूमिका पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा है। श्री अप्पूस्वामी राजगोपालन का यह लेख न केवल हिन्दी ब्लौगिंग के स्वरूप की विस्तार से व्याख्या करता है वरन नारद के प्रयासो का भी यथोचित उल्लेख करता है। इस लेख को पढ कर खुशी हुई कि चारो ओर हमारी चर्चा है। सबसे बढकर खुशी इस बात की हुई कि इस लेख मे जितेन्द्र चौधरी श्री नरुला के अतिरिक्त फ़ुरसतिया, मोहल्ला, मसिजीवी,निर्मल अनन्द, एक अनसुल्झी पहेली ज़िंदगी, ANONYMOUS, प्रत्यक्षा जी नीलिमा जी और उडनतश्तरी के अतिरिक्त नोटपैड यानी मेरे ब्लाग का भी उल्लेख किया गया है।
श्री राजगोपालन केरल के निवासी है।हिंदी मे ph.d है। और हमारे जानकार भी है।हमारे कहने पर ही उन्होने यह लेख लिखा है।इसलिए उनका तहे दिल से शुक्रिया।
उन्होने ब्लाग मे पत्रकारिता, ब्लौगिंग मे मुखौटो वालेविवाद का भी उल्लेख कर दिया है। उन्होने भविष्य को लेकर भी कुछ चिन्ताए ज़ाहिर की है ।
कुल मिलाकर यह कि राजगोपालन का यह विचारात्मक लेख हम सब को पढना चाहिए और निष्ठा पूर्वक ब्लौगिंग करते रहना चाहिए।
यह पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद!
कही यह लेख किसी को दिखे तो मुझे भी उसकी एक कापी e mail कर दे।क्योकी मै तक्नीकी कारणो से वह लेख अपनी पोस्ट मे नही दिखा पा रही।
जिनके नाम और ब्लाग इस लेख मे छऊट गए है उनके लिए एक अलग से लेख लिख्ने का वादा राजू जी ने किया है।