Wednesday, October 22, 2008

आप भी लुत्फ लीजिये न ..बहस वहस जो भी...व्हाटेवर ... हो उसे छोड़िये !

"कोई फर्क नही अलबत्ता" या कि आज के कुछेक खाते-पीते युवाओं की बेलौस वाणी की तर्ज़ पर कन्धे उचका कर मुँह बिचका कर कहें "whatever !!" ...बहुत बार इस रवैये के साथ कुछ लोग किसी गम्भीर बह्स में कूद जाते हैं और अपने दो चार जाति भाइयों के साथ मिलकर ठिठोली का विषय बना लेते हैं सारे मुद्दे को । उस पर अगर बहस किसी ऐसे मुद्दे पर हो जिसमें स्त्री की अस्मिता, मुक्ति या परम्परागत छवि के बरक्स नवीन छवि की बात उठती हो ,स्त्री को प्रभावित करने वाले कानूनी संशोधनों की बात हो तो बहस की आग मे हाथ तापने वाले "व्हाटेवर" वाले बेखयाल , बेपरवाह लोग निरंतर परम्परा और संसकृति की दुहाई देते हैं और तर्क के बदले "भावनाओ को समझने की बात भी करते हैं " और उस पर तुर्रा यह कि सामने वाला अतार्किक है ।भाई हम तार्किक हैं तभी शायद भावनाओं से आगे जाकर सोच रहे हैं,इसलिए भावनाएँ तो आप ही समझें कृपया !
हम बड़े आराम से यह मुद्दा किसी मंच से उठा सकते थे पर क्या करें कि औरों को तो फर्क नही पड़ता होगा अपन को पड़ता है जब बहस व्यक्तियों के नामों के सहारे शीर्षक बना बना कर हिट्स लेने वाली मानसिकता से शिथिल और हास्यास्पद हो जाती है।"...वालियों" को बदनाम करने मे मेरा भी पूरा हाथ होगा ही , इसलिए जब बात अपन के नाम से होने लगी है तो अच्छा है कि मंच का दुरुपयोग न करके मै अपने ब्लॉग से आवाज़ बुलन्द करूँ !18 अक्तूबर की बात और हम अब जाग रहे हैं तो भई क्या करें दुनियावी मानुषों की तरह अपने के जीवन के भी कुछ पचड़े हैं ही रोटी पानी कमाने के , सो तब देखा नही , और ऐसे हितैषी भी नही है ब्लॉगजगत मे अपने कि तुरंत फोन की घण्टी घुमा दें -कि भई आपकी पोस्ट या कमेंट से बवाल हुआ ...आप जल्द जवाब दें ....{अच्छा ही है कि हमारा साबका समझदारों और सयाने ब्लॉगरों से है}
जिनकी सोच किसी खास दायरे मे कैद हो वे बहस नही केवल कुतर्क ..या कहें प्रलाप कर सकते हैं ,और जो अपने तर्क {?} के समर्थन में गवाहों को पेश करने लगे तो अपन को बिलकुल भी सन्देह नहीं कि यह .....वालियों का भय है और खाली दिमाग वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ....और कविता मे कहें तो यह सोच कुछ ऐसी है कि ---

हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद है ,
सूरत बदले न बदले
ब्लॉग हिट होना ही चाहिये
...
व्यक्तिगत हमले बाज़ी न माना जाए इसलिए अपन ने लिंक नहीं दिये हैं ,ब्लॉगजगत मे बेशक दो चार मूढ होंगे ही पर बाकी बहुत समझ दार भी हैं सो वे लिंक स्वयम खोज लेंगे ।जिन खोजाँ तिन .....
और जब आप भी लुत्फ ही उठा रहे थे "....वालियों" को उकसा कर ,नाम ले लेके आमंत्रित कर कर के तो अपना उद्देश्य भी कोई फर्क नही अलबत्ता वाले अन्दाज़ मे मज़े लेने का हो आया है जी :-) सो यह पोस्ट नमूदार हुई है आपकी जानिब ।
आप सब सुधीजन मज़े लें क्योंकि हिन्दी ब्लॉगजगत हो या हिन्दी पत्रकार या बाकी हिन्दी वाले सब अबही तक टुच्चेपन मे ब्रह्मानन्द खोज रहे हैं ।सो ये हमरी ओर से टुच्चेपन के महायज्ञ मे एक छोटी सी अतार्किक आहुति !