Wednesday, June 27, 2007

यहाँ हिन्दी बोलने पर जुर्माना है जी !

तो हम सब ब्लौगिये यह सोचते रहे है कि हम नेट पर हिन्दी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। अंतर्जाल पर हिन्दी युवा हो रही है और इधर हिन्दी के देश में युवा होती पीढी को हिन्दी बोलने पर चुकाना पड रहा है फाइन !! जी हाँ ! हमारे देश के अधिकांश पब्लिक स्कूल यह सज़ा अपने छात्रों को देते हैं ताकि वे अंग्रेज़ी में ही बोलने को विवश हो जाएँ और माता-पिता अपने नन्हों को विदेशी में गिटिर-पिटिर करते देख आह्लादित हों और स्कूल के स्टैंडर्ड को देख कर प्रभावित हों ।तथ्य मेरे लिये नया नही है । देख चुकी हूँ कि छात्रो को हिन्दी के पीरियड के अलावा विद्यालय में कहीं हिन्दी बोलने पर झाडा जाता रहा है ।हो सकता है हम में से अधिकांश के बच्चे ऐसे ही विद्यालयों में पढते हों ।अभी एक परिचित ,जो रोहतक के एक रिप्यूटिड पब्लिक स्कूल में पढाती हैं , से पता लगा कि उनके विद्यालय में हिन्दी का एक शब्द बोलने पर 50 पैसा जुर्माना है । बेचारे बुनियादी शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे हिन्दी के एक वाक्य को दस अंग्रेज़ी के टूटे -फूटे वाक्यों में बताते हैं और फिर भी हिन्दी बोलते अक्सर पकडे जाते हैं और जुर्माना देते है । वे अबोध नही जानते कि हिन्दी बोलना जुर्म क्यो है , न वे किन्ही औपनिवेशिक इरादों से परिचित हैं।लेकिन धीरे धीरे यह बाल –मन अंग्रेज़ी के “”सुपीरियर ट्रेडीशन’’ से प्रभावित होकर अपनी भाषाई धरोहर पर शर्मसार होना सीख जाएगा । यह निहायत शर्मनाक तो है ही एक देश के लिये जहाँ मातृभाषा बोलना भी जुर्म है पर मेरे लिए यह जानना और भी दिलचस्प है कि ऐसे विद्यालय में प्रतिदिन कितना जुर्माना इकट्ठा होता है ;क्योंकि वह साफ तौर पर बताएगा कि इन नन्हों के लिए मातृभाषा के मायने क्या हैं ,उनके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी भाषा की आज़ादी है ।हिन्दी उनके लिए उतनी ही सहज है जितनी यह अभिव्यक्ति कि ‘मुझे भूख लगी है ‘या एक दूसरे पर चिल्ला पडना ‘पागल’ कह कर ,तू-तडाक करना,रोना या हँसना । असमय इन्हें एक ऐसी असहजता में बान्ध दिया जाता है जहाँ से मुक्त होकर वे राहत महसूस करते हैं ।
सो अगर हिन्दी बोलने पर उस स्कूल में फाइन दिया जाता रहे और बढता रहे तो मेरे लिये यह संकेत अच्छा ही है पर क्या हिन्दी और हिन्द के लिए यह अच्छा है कि भाषा पर गर्व करना सिखाने कि बजाय हम अपनी संतानों को अपनी भाषाई अस्मिता पर हीनता -बोध दें ।

14 comments:

मसिजीवी said...

हिंदी, गर्व, भाषिक अस्मिता, अभिव्यक्ति की आज़ादी, भाषा की आज़ादी
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अरे अरे ये तुम कर क्‍या रही हो...अव्‍वल तो ऐसे शब्‍दों का उच्‍चारण उस घर मं होने ही नहीं देना चाहिए जहॉं छोटे बच्‍चे हों (देखो बेटा कंप्‍यूटर से आजभर दूर रहे)। आस पड़ोस के बच्‍चों को भी बचाना ऐसे विचारों से।

दीज डैम हिंदी वालीज़ विल नेवर लर्न...हुम्‍म

Anonymous said...

अच्छे प्रश्न... जवाब कौन देगा?

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मैं दे रहा हूँ न गिरिराज जी. अरे भाई जब देसवा आजाद होने के तुरंते बाद दोकैसन सियार खर्बुज्जा के मलिक हो गए, अन्गरेजवन के बाले बच्चा सब हाकिम हो गए त आप हिंदी के बढने के उमेद काहें करते हैं. है जो आप हिंदिया के तरक्किया देख रहे हैं, अरे हमारे आपके जैसे सौ करोड़ जहिलन के नाते है. उन्ही से समान बनवाना है और उन्ही को बेचना है, उन्ही के जेब पर सारा खेल करना है तो बोलना ही तो पड़ेगा न भाई! आगे चल के न बोलना पडे इसीलिए ई सब इंतजाम हो रहा है. एक बचावा के साथे साथे ऊ पैरेंटो लोग को सिखा रहे हैं. अरे बचवा को सकूल में अंग्रेजी बोलनी है तो घरहूँ में बोलना पड़ेगा न आ घरवा में ऊ केसे बोलेगा? माइये-बाप से न. त ए बहाने त आप भी सीख रहे हैं. एहसान मानना चाहिऐ. आ जून नईं मानता ऊ उहाँ भेजिए नईं paaega अपने bachchan को.

Shastri JC Philip said...
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Arun Arora said...

सुजाता जी इस मामले मे अपन तो मसीजीवी जी से बिलकुल पक्की तरह से रागे ए सहमती आलापते है.
जरा अपने आसपास देखिये गलत ही सही पर किसी भी दुकान का बोर्ड अग्रेजी मे ही (हिंदी मे नही )मिलेगा

Shastri JC Philip said...

दुनियां के 170+ देशों मे सिर्फ हिन्दुस्तानी ही ऐसे है जो घरजमीन बेच कर वह पैसा विद्यालयों को इसलिये देते हैं कि वे उनके बच्चों को राजभाषा के प्रति हीनता की भावना से भरें. इस स्थिति से परिवर्तन के लिये हम में से हरेक को कुछ करना होगा.

सुजाता said...

मै जानना चाह्ती हूं कि इस सम्बन्ध मे‍ संविधान ,सरकार ,एन.जी.ओज़ क्या कहते है‍ और कर सकते है‍।सम्विधान विशेषग्य ब्लागर बता सके तो बताए ।

राज भाटिय़ा said...

सुजाता जी आप ने सच लिखा हे,
Shastri J C Philip जी,आप ने तो हम सब को आईना दिखा दिया, आप सभी ने अक्सर देखा होगा, किसी भी देश का नेता ( विदेश मे )अपने देश की भाषा मे भाषाण देता हे, दुभाशिये उस का अर्थ इन्ग्ल्स मे या उस देश कि भाषा मे करते हे,जेसे रुस,जर्मनी,फ़्रन्स,होलेन्ड... ओर बहुत से देश,ओर हम?? हमे शर्म आती हे हिन्दी मे बोल्ने मे,इस लिये इन्ग्लिस मे बोल्ना हामारी शान हे,कयो की हम नमकहालाल हे आपने आकाओ के

Udan Tashtari said...

पिछली भारत यात्रा के दौरान ऐसे बहुत वाकये देखे. हम हिन्दी में बात करें और दोस्तों के बच्चे अंग्रेजी में जवाब दें. बड़ा अजीब सा लगा मगर हर तरफ यही दिखता रहा. एक स्टेटस सिंबल सा बना लिया है लोगों ने अंग्रेजी बोलना.

Unknown said...

हमे तो एसा लगता है कि असली मुदा अग्रेजी या फिर हिन्दी बोलने का नही है । मुदा तो है एक भाषा को ऊँचा ओर दुसरी को निचा दिखाना । ओर अपने ही कलचर को नीची नजर से देखना। शायद एडवर्ड सईद ने अपनी किताब ओरिंटलिजम मे भी इसी ही बात पर जोर दिया है ।

Pratik Pandey said...

और क्या कहा जा सकता है सिवाय इसके - "विनाशकाले विपरीत बुद्धि"
मूर्खता का चरम इसी को कहते हैं शायद।

Unknown said...

लेख पढा और सभी मित्रों के विचार पढे । सबसे पहली बात तो उअह है कि यदी हम यह मानते हैं कि अंग्रेजी दा हम लोगो के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र रच तो हमे अंग्रेजी स्कूलो मे अपने बच्चे नही भेजने चाहियें । पर क्या यह सम्भव है ? कम से कम आज की परिस्थिती मे तो नही।

आज हमारे पास हिंदी मे कोलेज स्तर पर विज्ञान जैसे क्षेत्र मे हिन्दी मे पर्याप्त जानकारी भी उपलब्ध नही है । यह नही कि यह सम्भव नही है। हकीकत यह है कि एक वर्ग हिन्दी को क्लिष्ट बनाये जा रहा है तो दूसरा उसे हंग्रेजी बनाने पर तुला है।

यदि हम हिन्दी, हमारी मातृभाषा के प्रति ईमानदार होते तो आज यह हालत नही होती । टी ई पर परकटी बहने जो हिन्दी कि खाट खडी करती है वह शर्मजनक है। डिस्कवरी पर और अन्य अंग्रेजी चैनल पर हिन्दी देख यह बात सही सिद्ध होती है कि अगर हम ईमानदार रहे तो हम अच्छी हिन्दी विकसित कर सकते हैं। अंग्रेजी मे फ़्रेंच, जर्मन आदि कई भषाओ के शब्द है, हमे हमारी हिन्दी मे यह विविधता लाने मे शर्म क्यों
चिठ्ठाकारो की हिन्दी देख लगता है कि अब हिन्दी के दिन आ गये. मेरा तो यह मानना है कि इंट्र्नेट ही हिन्दी को घर घर तक पहुचायेगा ।

ePandit said...

योगेश शर्मा कहते हैं:
चिठ्ठाकारो की हिन्दी देख लगता है कि अब हिन्दी के दिन आ गये. मेरा तो यह मानना है कि इंटरनैट ही हिन्दी को घर घर तक पहुचायेगा।"

इसी उम्मीद में हम भी कीबोर्ड पीटे जा रहे हैं जी।

संजय बेंगाणी said...

सब अपने अपने स्तर पर काम करें. इमानदारी से करें. भविष्य में हालात जरूर बदलेंगे.