Tuesday, January 1, 2008

तस्लीमा के नाम एक पाती यह भी ....

अभी जनवरी का हंस देख रही हूँ .. अभिषेक-ऐश्वर्य के विवाह पर मीडिया द्वारा प्रचारित बातों को लेकर राजेन्द्र यादव और अमिताभ बच्चन के बीच का पत्र व्यवहार राजेन्द्र जी ने छापा है । पर एक खत खासा आकर्षित कर रहा है । उसे दो तीन बार पढ चुकी हूँ ।कुछ निष्कर्ष भी निकालने की कोशिश में हूँ ।यह पत्र है आचार्य रजनीकांत का , रायबरेली से ,तस्लीमा नसरीन के नाम । आप खुद पढें और कुछ कहते बने तो कहें -

तस्लीमा जी,
नमस्कार !
मैं बंगाली भाषा नही जानता.इसलिए मैं हिन्दी में पत्र लिख रहा हूँ. इस विवशता को क्षमा करने की कृपा करें.
मैं हिन्दी का कवि,उपन्यासकार,नाटककार हूँ,रायबरेली का मूलनिवासी .रायबरेली में कहीं भी आजतक एक भी,अपवाद के रूप में भी,साम्प्रदायिक दंगे फसाद नही हुए हैं न कभी हों.1984 में एक भी सिख नही मारा गया.हिन्दू-मुस्लिम-सिख यहां सभी एक होकर रहते हैं.
मेरा घर काफी बडा बना हुआ है,एक कोठी बंगले की तरह.मैं आपको अपने घर में स्थायी सदस्य के रूप में आने का निमंत्रण देता हूँ. मेरे घर में आप आजीवन रहें.जैसे मैं घर का मालिक, वैसे आप भी मेरे घर की मालिक.
इस्लाम में कोई भी दूसरे की सज़ा अपने ऊपर ले सकता है.जो सज़ा अपको कठमुल्लों ने दी है वह मुझे दे दें.आपको माफ कर दें. मैं आपके लिए मौत का फतवा झेलने को तैयार हूँ.कठमुल्ले मेरी जान ले लें और आपको क्षमा कर दें. मैं आपको अपना मित्र मानता हूँ. कृपया मेरे घर शीघ्र पधारें. सद्भावना सहित ...
आचार्य रजनीकांत ,रायबरेली
यह पत्र मैने जस का तस छाप दिया है । जहाँ शब्दों को बोल्ड किया गया है वहाँ ध्यान दें ।घर छोटा भी हो तो क्या ? मित्र मानते हैं तो अपनी गरीबी में भी उसका साथ दे सकते हैं । माफ करें और क्षमा करेंजैसी बाते ये सिद्ध कर रहीं हैं कि महाशय शायद तस्लीमा को समझे ही नही । कठमुल्लों से क्षमा की अपील ? क्या कहना चाह्ते हैं ये ? ये प्रेम-निमंत्रण है क्या ? महाशय खुद को हिन्दी के कवि लेखक वगैरह कह रहे हैं ,क्या यही है उनकी समझ ।

3 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अरे नहीं भाई! लगता है आप भी आचार्य जी को समझीं नहीं. असल में ये हंस छाप कवि-लेखक-नाटककार हैं न!

अविनाश वाचस्पति said...

इष्ट देव जी तो क्या ये बगुले हैं हंस नहीं।
हंस भी नहीं सकते, तो रोने रूलाने में रमे रहते हैं।
इन बगुलों से हंस को बचाएं।
पर क्या हंस बचना चाहेगा इन बगुलों से।
ये बगुले ही तो हंस के स्वामी हैं शायद।

rakeshtripathi said...

dikkat yahi hai acharyon ke sath.acharya yamraj pandey bhi motilal nehru vishwavidyalaya jo ki dilli me hai,yehi karte the.jamuna university mein hindi ke manad adyaksha pakauri pyaj ki bhi yahi manobhav rakhte hain.acharyon ko taslima ke dard mein nahin balki taslima ke saath mein ruchi hai.isi bahane unke aube chhhaube unhe publicity dilane ki muhim par nikal chalenge.