Friday, March 16, 2007

ANONYMOUS कौन है?? मोना डार्लिन्ग ...!!

मसिजीवी जी ने मुखौटो की दुनिया की खूब कहानी सुनाई कि एक बहस ही चल पडी. सन्जय जी बोले
""यह एक ऐसी दुनिया थी जहाँ कोई मुखोटा नहीं पहनता था, किसी को इसकी आवश्यकता भी नहीं थी.फिर कुछ नए लोग आए. उनके पास न हिम्मत थी न तर्क मगर प्रलाप करना था. तब उन्होने मुखोटे पहन कर अपना काम शुरू किया.आगे की कहानी आप घड़ लें."
धुरविरोधी जी ने कहा
"संजयजी, मेरे प्रलाप में तर्क भी हैं और हिम्मत भी. क्या हम असहमति एवं सहमति दोनों के बीच में नहीं जी सकते?मुझे तो अब नकली और पाखंड दूर यह दुनियां ही पसंद है."
नही ?मै सोचती हू कही धुरविरोधी ही तो मसिजीवि न्ही है?खैर छोडिये अपन को क्या? पर इस बीच किसी ने भोलेपन मे नीलिमा जी के comment को कोट करके यह लिख डाला"Anonymous said...
मुखौटों के पीछे के कुछ चिट्ठाकारों को मैं जानती हूं उनके बाहर की दुनिया के लिखे को भी जानती हूं --"""मोना डाललिंग, चिट्टो की दुनिया मे तुम अभि बच्ची हो, अकल की कच्ची हो। तोल मोल कर बोलो, अकल के दरवाजे खोलो। इतना याराना है सब से तो कहाँ पड़ी हुई थी अब तक? शोध करने के पैसे न मिलते तो ये ठिकाना याद आता?"""
अब बताईए यह जनाब कौन है जो कायरो के सरदार लगते है। क्या यह मानने मे हमे अब शक है कि दर असल अभद्रता तो यह है ,प्रलाप तो यह है,कायरपन तो यह है। यह भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है। और शायद यह मुखौटा मसिजीवी और आलोचक के मुखौटे से ज़्यादा खतरनाक है. आलोचक और मसिजीवि तो फिर भी सामने है यह अविवेकी तो कही दिख ही नही रहा .
इसके लिए आचार.सहिता कैसे बनाएगे?? इस अबोध[? या शाणे ?] की सहमति किसी बात पर नही बनेगी .यह ब्लाग जगत का गुलशन ग्रोवर,शक्ती कपूर न जाने क्या क्या है ,यह सारी की सारी आचार सहिता का "अचार" डाल रहा है और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के हमारे विमर्श की ऐसी तैसी कर रहा है।
वैसे अब उसने हमारे लिए भी यह आसान बना दिया है कि हम उसे जी भर कर गाली दे .मुखौटा हो या न हो, अनोनीमस रह कर वो मानहानि का दावा तो कर नही सकता.तो आप सब आमन्त्रित है एक साझा मन्च बना कर उसे जी भर गाली दीजिए ,अपनी कुठाओ से मुक्त होइए. क्योकि आलोचक का सहमति के खिलाफ़ बोलना "गाली" देना लग सकता है तो यह तो ........।

मोना डार्लिन्ग वाले anonymous.......! तू है कौन????

12 comments:

Ashish Shrivastava said...

नोटपैड जी,

चिठठाकारी या ब्लागीगं की दूनिया ही ऐसी है कि आपको इन सब बातो के लिये तैयार रहना पड़ेगा !

वह बन्दा तो खैर ANONYMOUS के नाम से टिप्पणी कर रहा है लेकिन इस दूनिया मे तो लोग दूसरे के नाम से टिप्पणी करते मील जायेंगे। क्या कर सकेंगे आप उसका ?
आपके पास टिप्पणी माडरेशन का हथियार है उसका प्रयोग किजीये !
मुझे तो इससे बेहतर हल दिखायी नही देता !
रहा सवाल छद्म नामो से चिठ्ठा लेखन का मुझे उसमे कोई बुराई नजर नही आती !

http://ashish.net.in/khalipili
http://antariksh.wordpress.com
http://hindigram.org

note pad said...

सही कहा आशीष जी ! यही हम भी दोहरा रहे है. सिर्फ़ ब्लागिन्ग ही नही भौतिक जगत मे भी यही सच है.पर किसी की पहचान को कुरेदना {वह न चाहे तो} ब्लागिन्ग मे ज़रूरी क्यो हो .

सुजाता said...

bakalam मै ही हू.

योगेश समदर्शी said...

बात बात पर विवाद
हर बात पर विवाद
कोई बोला इसपर विवाद
कोई नहीं बोलता इस पर विवाद्
विवाद का स्वाद सब बडे मजे से उडा रहे है,
विवाद की भट्टी मे रोटी सेंक कर खा रहे हैं
अरे यदि बचना है विवाद से, तो प्यार पर बात करो
आदमी हो तो आदमियत के खुमार पर बात करो.
जो विवाद छेडते है ललकारता हूं मैं उन्हें,
यदि दम रखते हो तो बदलते हालात पर बात करो.
योगेश समदर्शी

संजय बेंगाणी said...

मेरा आपसे निवेदन है की हमारे बारे में पूर्व धारणाएं न बनाएं.

मैने छद्म नामो से लिखने वालो पर कब उँगलि उठाई समझ नहीं पा रहा हूँ.

अनाम टिप्पणीयों से हम सब त्रस्त है, इसलिए मैने निर्णय लिया है की अनाम टिप्पणी करता वास्तव में कायर है इसलिए नाम छुपा कर प्रलाप कर रहा है, उसकि टिप्पणी को प्रकाशित नहीं करूँगा.

एक बार गाँधीजी पर मुझे अनाम टिप्पणी मिली थी. अनाप-सनाप बका गया था. मैने उसकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया था.

ePandit said...

अरे नोटपैड जी यह तो कुछ भी नहीं एक टाइम जीतू भाई के नाम से किसी ने नकली कमेंट ही करना शुरु कर दिया। बात इतनी बढ़ गई कि हम लोगों ने उसका नाम ही डुप्लीकेट जीतू रख दिया। खैर बाद में सब लोगों ने उसको नोटिस करना बंद किया तो अपने आप चुप हो गया और ये काम छोड़ दिया।

अतः मैं संजय जी से सहमत हूँ कि अनोनिमसों की टिप्पणियों को दिखते ही डिलीट कर देना चाहिए, और लोग पढ़ ही न पाएं। इससे अनोनिमस महोदय खुद ही खिसिया कर ऐसा करना छोड़ देंगे।

बाकी आपकी बात मान लेते हैं:

मोना डार्लिन्ग वाले anonymous... #@@&&%%~~**##!!!!!

सुजाता said...

योगेश सही कहते हो. विवादो का सिलसिला सा चल निकला है.
चार बर्तन होगे तो खडकेन्गे ही.क्या करे, ये बात ऐसी है कि निकली है तो दूर तलक जाएगी.
@ सन्जय जी,कोई पूर्वधारणा नही है. आप से कोई शिकायत भी नही .पूर्वग्रह से मुक्त रहने की ही बात तो है यह भी कि छद्म नाम से .ब्लागिन्ग को कायरता न माने.

मसिजीवी said...

अरे अपने मोना डार्लिंग वाला कमेंट पढ़ लिया था ? मैंने तो उसकी अभिव्‍यक्ति का गला दिखते ही घोंट डाला था। :)

पर उसके तक गुमनाम रहने के अधिकार के अपन समर्थक हैं। ये अलग बात है कि उनकी गंदगी मैं अपने चिट्ठे पर स्‍वीकारूं या नहीं ये मेरे विवेक का मामला है।

dhurvirodhi said...

आशीषजी,बकलम(नोटपैड)जी एवं संजय जी, आप छद्म नामों का विरोध नहीं कर रहे, इससे मुझे राहत पहुंची है.वरना लगता था कि धुरविरोधी को मरना पडे़गा. नोटपैड जी, मैं मसिजीवी नहीं हूं और वह भी नहीं हूं जो लोग मुझे समझते हैं. शायद अगली मींटिंग में मैं भी आऊं,(यदि आप लोग कैमरे से मुझे दूर रखने का वायदा करें)

अनूप शुक्ल said...

अब ऐसे कायर लोगों का क्या कहा /किया जाये।
लेखन तो चलो मजबूरी हो सकती किसी की कि बिना अपनी पहचान बताये लिखना चाहता है कोई। लेकिन इस तरह के मोना... छुपकर किये गये कमेंट इनके कायरता और मानसिक दीवालिये पन को जाहिर करते हैं। एक बात यह भी है कि इस तरह का कमेंट करने वाला निश्चित तौर पर अपने बात-व्यवहार से अपना भेद खोल ही देता है कभी म कभी। यह जो भी है हम लोगों से ही जुड़ा है। फिलहाल से तो कयास ही लगाया जा सकता है। लेकिन इसको रोकने का तात्कालिक उपाय तो यही है कि अब सब लोग अपने ब्लाग में टिप्पणी माडरेशन लगायें।

राकेश खंडेलवाल said...

नाम तुमने कभी मुझसे पूछा नहीं
कौन हूँ मैं, ये मैं भी नहीं जानता
आईने का कोई अक्स बतलायेगा
असलियत क्या मेरी मैं नहीं मानता
मेरे चेहरेपे अनगिन् मुखौटे चढ़े
वक्त के साथ जिनको बदलता रहा
मैने भ्रम को हकीकत है माना सद्द
मैं स्वयं अपने को ही हूँ छलता रहा

Udan Tashtari said...

मोना और @###@@@!!@@....यह बात गलत है और इसे कायरता ही माना जा सकता है और कुछ नहीं. बाकि तो नाम में क्या रखा है!! :)