Thursday, March 8, 2007

कस्तूरी क्या करे महिला दिवस पर...?

मै आज हुमक हुमक उठती थी
महिला दिवस पर, सुबह सुबह देखे अखबार
महिला दिवस कैसे मनाया जा रहा है
दिल्ली हाट मे, फ़िक्की मे ,नेशनल स्टेडियम मे ,
राष्ट्र सन्घ मे , तय कर लिया
मै तो जाउन्गी दिल्ली हाट
क्योकि प्रीति ज़िन्टा आएगी वहा आज
पर कस्तूरी आज
उदास सी लग रही है, सूजा हुआ कि "कस्तूरी ! तुझे क्या हुआ है?
आज नारी सम्मान उत्सव पर तू
हताश क्यो है?" क्योकि मै जानती हू कि कल उसकी बस्ती मे
उसने फ़ासी पर लटकती देखी थी
पडोसन की लाश और बिलख्ते बच्चे उसके आसपास ।
वह आज खिन्न है, उसे छुट्टी चाहिये थी मुह है
चुपचाप धो रही है कपडे, मान्ज रही है
बर्तन और बुहार रही है आन्गन मेरा
मै उससे पूछ नही पा रही
अस्पताल जाने के लिए अपनी
जली हुई ननद को देखने
मैने कर दिया था मना
क्योन्कि आज मुझे महिला दिवस पर
अटेन्ड करने थे कई कार्यक्रम जाना था
कई उत्सवो मे
कस्तूरी क्या करेगी छुट्टी लेकर कि
वह तो
इतना ही जानती है कि उसे निपटाने है अभी
मुझ सी महिलाओ के कई घर और!

6 comments:

Sanjeet Tripathi said...

भारतीय परिप्रेक्ष्य में यथार्थ।
महिला दिवस की बधाई व शुभकामनाएं

dhurvirodhi said...

क्या हम कस्तूरी को तब भी याद रखेगें जब महिला दिवस नहीं होगा?

Divine India said...

अन्य महिलाओं से अलग एक
सार्थक कविता… अच्छा लिखा बधाई!!

सुजाता said...

धन्यवाद सन्जीत, divine india! ध्रुवविरोधि जी दर असल यही बात सोचते हुए यह कविता लिखी है। वाकई यह उत्सव क्या कस्तूरी कभी मना पाएगी। मेरी गूगल वालि पोस्टिन्ग आपने देखी हो तो, जान जाएगे कि यह उसी का विस्तार है.

ghughutibasuti said...

बहुत ही सही बात कही है आपने । वैसे एक दिन की खुशी लेकर कस्तूरी या कोई भी और क्या कर लेगी ?
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

महिला दिवस की बधाई व शुभकामनाएं!!