Thursday, March 8, 2007

कौन चाहता है प्रोग्रेसिव पत्नी........?

भई वुमेन्स डे पर पुरुष महिला सबही कलम चला रहे है.अच्छा है . महिलाए आज अपने महत्व और सन्सार को चलाने मे अपनी निर्विकल्पीय भूमिका के गान खुदेई गा रही है. पुरुष भी तरह तरह की ताकीद कर रहे है स्त्री के विकास और उत्थान को लेकर . पर इतना तो कोइ बतावे कि स्त्री की प्रोग्रेस चाह्ते भी है?. भुपेन जी की दर्शाई पत्निया ही तो चाह्ते है दर असल सब. प्रोग्रेसिव बीवी कौन चाहता है भई? बाहर देखती हू तो आलम यह है कि पत्नी प्रोग्रेसिव अच्छी तो लगती है पर "दूसरे" की अपनी नही।मर्द होना एक पोज़ीशन होना है{किसि ने कहा है, मैने नही} सो अपनी पोज़ीशन ,अथारिटी,आराम छोड्ने को जो तैयार होवे वही वास्तव मे यह कहने और चाहने का सच्चा अधिकारी है की स्त्री को विकास उत्थान कल्याण सशक्तीकरण की ज़रूरत है. और किरपिया करके स्त्री अपनी छवि को देवत्व से शोभित करना छोड दे। पुरातन छवि मे जडी रहेन्गी तो नवीन का निर्माण होगा कैसे भला । सो मानवियो से मेरा विनम्र अनुरोध है कि खुद को SUPER WOMAN सिद्ध कर के किसी से भी "आदर्श"" होने का प्रमाण पत्र न ले। उतना भर ईमान्दारी से करे जितना कर सकती है । बाकि पुरुष के लिये छोड दे । वह इसे सहर्ष अपना लेगा ,पहल करके तो देखिए.

14 comments:

yogesh said...
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yogesh said...

Bilkul thik kahaa tumane agar auraten mardo ke bharose rahegi to kabhi bhi tarakki nahi kar payegi. Agar tarakki karani hai to khud apne dum pr aage badna hoga. Mard chahe kitna bhi naari uddhhar ki baaten kre magar ander se rehta wahi mard hai.

मसिजीवी said...

पत्नी प्रोग्रेसिव अच्छी तो लगती है पर "दूसरे" की अपनी नही।मर्द होना एक पोज़ीशन होना है.....

हॉं सही ही है। वैसे पहले शायद स्‍त्री को अपनी एक परिभाषा गढ़नी है जो पुरुष के बरक्‍स तय न की गई हो।
और यह जितना जल्‍द हो उतना ही मुक्ति हो पुरुष की भी और स्‍त्री की भी।

Pramendra Pratap Singh said...

आज कलम चला रहे है कल को हाथ चालायेगें। इनका कया भरोसा, दोनो पर रहम करे।

आपके दोनों प्रश्‍नों के उत्‍तर मेरे ब्‍लाग पर है

सुजाता said...

महाशक्ती अबोध हो तुम .खैर निश्चिन्त रहो
जो कलम चलाना जानते है उन्हे हाथ चलाने की ज़रूरत नही पडती.यू भी ज़्यादा ताकतवर माध्यम है लेखनी दरना है तो उससे डरो.

Jitendra Chaudhary said...

स्त्री और पुरुष, दोनो एक दूसरे के बिना अधूरे है। लेकिन पुरुष प्रधान समाज मे पुरुष ने स्त्री शोषण करके धीरे धीरे स्त्री का विश्वास खोया।

लेकिन समाज बदल रहा है, धीरे धीरे ही सही। अभी तो बयार बही है, थोड़ा सब्र रखो। आने वाली पीढी को यह सवाल नही पूछना पड़ेगा, जो तुम पूछ रही हो।

मेरी समझ मे पति पत्नी दोनो बराबर होते है, हक और अधिकाम मे भी। रही बात प्रोग्रेसिव पत्नी की के जवाब की, कर के दिखाने वाले जवाब नही दिया करते।

Mohinder56 said...

SATYA BACHAN HAIN JI AAP KE....
GENERALLY WE ARE DERIVIED IN DIFFERENT DIRECTION ABOUT THE DEFINITION OF PROGRESS......
DANCING IN OVERNIGHT CLUBS, WEARING SHORT DRESSES AND DRINKING WINE AND HO HI IS NOT THE PROGRESS....WHETHER ITS RELATED TO MAN OR WOMAN

Bhupen said...

काश, इंसान को जाति, धर्म, क्षेत्र या लिंग के आधार पर कोई अपमान ना झेलना पड़ता! माफ़ कीजिए, किसी को किसी भी तरह का कोई अपमान ना झेलना पड़ता!

ghughutibasuti said...

कोई चाहे या न चाहे, अपनी उन्नति का ध्यान रखना हमारा अपना कर्तव्य है । हमें तो बस यह देखना है कि स्त्री पुरुष दोनों ही मिलकर एक सुखद जीवन की रचना करें । न अन्याय करें न सहें । न किसी को नीचा दिखाएँ न किसी को हमें नीचा दिखाने दें ।
घुघूती बासूती

Monika (Manya) said...

सो मानवियो से मेरा विनम्र अनुरोध है कि खुद को SUPER WOMAN सिद्ध कर के किसी से भी "आदर्श"" होने का प्रमाण पत्र न ले। उतना भर ईमान्दारी से करे जितना कर सकती है । बाकि पुरुष के लिये छोड दे । वह इसे सहर्ष अपना लेगा ,पहल करके तो देखिए.
माफ़ कीजियेगा मैं सहमत नहीं.. शायद आप स्वयम अपनी शक्ति से व्वाकिफ़ नहीं.. एक स्त्री हूं और कई कार्य एक साथ करती हूं.. और मानती हूं कि अपनी छवि खुद को तलाशनी है.. और एक नारी ही कई रोल एक साथ निभा सकती है.. ईमानदारी क पर्याय है नारी.. बाकी पुरूष के लिये छोङ दें ये शबद पुनः dependent होने का एह्सास दिलाते हैं.. और क्यों फ़िक्र है उसके द्वारा स्वीकार्य होने कि.. और है तो फ़िर नवीनीकरण भूल जाईयॆ क्यूंकि आपने स्वयं कहा मर्द होना एक पोजीशन है..

Anonymous said...

ऊपर की टिप्पणी पोस्ट का सही विश्लेषण करती है।

सुजाता said...

मान्या किसी के द्वारा स्वीकार्य होने की फ़िक्र मे ही तो की जाति है कई भूमिकाए के साथ निभाने की कोशिशे वर्ना क्यो रोती है स्त्रिया किसी के द्वारा की गई उपेक्शा पर. जाओ भाई सम्भालो तो फिर super woman का रोल. बात सिर्फ़ इतनी है कि दुनिया साझेदारी की है.जितना आप मा होने को महत्वपूर्ण मान्ते हो पिता होना भी उतना ही महत्वपूण है. बराबरी रहने दीजिए. जब खुद ही खुद ज़ोर देती रहेन्गी की मै करून्गी बस मै ही कर सकती हू तो बाद मे शिकायत तो आनी ही नही चाहिये ""दम्भ"" भी नही आना चाहिए. मुझे खेद है कि आप मेरी पोस्टिन्ग का निहितार्थ नही समझ पाई. दोबारा पड कर देखिएगा. शायद द्रिष्टि मे परिवर्तन आ जए. वैसे मुझ से आप सहमत ही हो बिल्कुल ज़रूरी नहि. ज़रूरी है कि आप पहले खुद का स्वरूप ठीक से समझ ले.मेरी शुभ्कामनाए !!!

Punit Pandey said...

कम से कम मैं तो चाहता हूं, कोई मिले तो बताना ;-)

संकेत मणि said...

आप को आने वाले दिवाली की हार्दिक सुभ कमाना देते हुए मै कहना चाहूँगा की आप की ज़िन्दगी सदा फूलो जैसे खिलती रहे