Friday, September 7, 2007

मोहल्ले का स्त्री-विमर्श और कुछ छूटे हुए मुद्दे

मोहल्ले पर आजकल स्त्री-विमर्श चल रहा है ।अच्छा है । पर पीडा इस बात की है कि विमर्श एकांगी दृष्टिकोण को लिए चल रहा है । सारी बात चीत के बाद लगता है कि मुद्दा मात्र यह रह गया है कि ‘स्त्रियाँ हर क्षेत्र में प्रगति कर रही है और भारत की किस्मत लिख रही हैं ‘जैसा कि पूजा के लेख से ध्वनित होता है या फिर ठीक उलट कि ‘स्त्रियाँ आगे तो बढ रही हैं लेकिन प्रतिभा के बलबूते नही किन्ही और ही मानदनडों पर ‘।माने लडाई बहस एक सरफेस के ऊपर काई सी जम रही है जिसके नीचे की गहराई अभेद्य और अगम्य हो जाएगी अगर यह विमर्श कुछ पल और यूँही चलता रहा। इसलिए सोचा कि कुछ वास्तविक मुद्दे उठ जाने चाहिये इससे पहले कि बात में बात सा कुछ न बचे और शब्द रीत जाएँ और अर्थ चुक जाएँ ।
मेरी समझ से स्त्री के आगे बढने या न बढने से कहीं ज़रूरी बातें और हैं । इसलिए पहले तो उन मिथों से निबटना ज़रूरी है जो हर इस बहस में शामिल व्यक्ति की पूर्वधारणा के रूप में काम कर रहा है । ये मिथ है‍ -
पहला, स्त्री की लडाई या प्रतिद्वन्द्विता पुरुष से है । स्त्री को मुक्ति पुरुष से चाहिये । दूसरा, स्त्री-विमर्श किसी भी अन्य हाशियाई –विमर्श की ही तरह सत्ता-विमर्श है।यानी यह सत्ता पाने की जंग है । तीसरा,सभी क्षेत्रों में स्त्री के आगे बढने से स्त्री की सशक्तीकरण हो रहा है । चौथा, लडकियाँ बोर्ड के नतीजों में हमेशा आगे रहती है इसलिए वे ज़्यादा होशियार और प्रतिभावान हैं और इसलिए कहना चाहिए कि वे शिक्षित हो रही हैं ।

अब इन मिथों का निराकरण -
स्त्री की लडाई ,दर असल , पुरुष से नही पितृसत्ता से है जिसका समान रूप से शिकार पुरुष भी है ;इसलिए स्त्री की मुक्ति या लडाई पुरुष की भी मुक्ति और लडाई है ।लेकिन अफसोस यह है कि इस् मुद्दे पर स्त्री व पुरुष एक दूसरे को प्रतिद्वन्द्वी मानते हैं और सारी ऊर्जा अवास्तविक शत्रु से जूझने में निबट जाती है ।मायने यूँ समझिए कि, जब एक स्त्री अपनी पारम्परिक भूमिकाओं से निकल कर मनचीता करना चाहती है तो उसका रास्ता रोकने वालों में पितृसत्ता के चौकीदार पुरुष ही बाधा नही बनते बल्कि इसी व्यवस्था में रची-पगी स्त्रियाँ भी उतनी ही बाधक बनती हैं ।पुरुषो को समझना होगा कि वे एक कितने ही शिक्षित हो जाएँ वे एक बन्धी बन्धाई परिपाटी के अनुरूप ही व्यवहार कर रहे हैं । यह भी समझना होगा कि पुरुष का साथ ही गंतव्य है और मंतव्य है न कि पुरुष से मुक्ति । पुरुषों को धरती से मिटाकर स्त्रियाँ कहाँ जाएँगी ?
इसलिए कामना साथ की ही है चाहे वह इच्छित साथ लड कर लेना पडे ।
“चक दे इंडिया” इस मायने में एक अच्छा उदाहरण सामने लाती है ।लडकियों की टीम वर्ल्ड कप में जाने लायक है यह सिद्ध करने के लिए उसे लडकों की टीम के साथ खेलना पडता है । वास्तव में भी जब जब स्त्री की क्षमताओं पर विचार हुआ है तो उसका पैमाना पुरुष ही रहा है ।स्त्री अपने आप में कुछ नही अगर उसकी प्रतिभा पुरुष की प्रतिभा से टक्कर लेने लाबिल नही है ।यहाँ ये कायनात के दो अलग ,पूरक प्राणी ,साथी न होकर दो लडाके हो जाते हैं। जिसमें एक अपनी भिन्न शारीरिक और मानसिक शक्तियों व क्षमताओं के कारण हीन साबित होता है।इसलिए शारीरिक क्षमता को सिद्ध करने के लिए प्रजनन और पोषण से ही बात नही बनती स्त्री को पहलवानी भी करनी पडती है ;और वह करती है;खुद को साबित करने के लिए ये वे अग्नि-परीक्षाएँ हैं जिनसे वह आज भी गुज़रती है ,और सफल भी होती है । शारीरिक क्षमताएँ और काबिलियत सिद्ध करने के लिए अभी तक पुरुष से नही कहा गया है कि-“चलो जी, तुम्हे तब मानेंगे जब बच्चा पैदा करके दिखाओ “
तो लडाई दो विपरीत लिंगियों की नही है । उनके सामाजी करण की प्रक्रिया और उसके पीछे के संसकारों या मानसिकता से है ।
समानता के मायने क्या है ? इस पर भी सोचने की ज़रूरत है । बाकी मिथों का जवाब अगली पोस्ट में ।यूँ भी पिछली पोस्ट विचारों के प्रवाह में बहुत दीर्घ हो गयी थी ।इसलिए अभी इतना ही । बहस आमंत्रित है .........

27 comments:

Arun Arora said...

स्त्रियाँ आगे तो बढ रही हैं लेकिन प्रतिभा के बलबूते नही ये हम भी मानते है जी कि महिलाये आगे बढ रही है पर प्रतिभा के बलबूते नही..? अब आप ही बतादे ये कौन है प्रतिभा..? और सारे देश की महिलाओ को ये अकेली कैसे आगॆ बढा रही है..? हम नही मानते जी ,हमारा मानना है महिलाये अपने बूते आगे बढ रही है..ये उनका अपना संघर्ष है..अपनी क्षमता का दोहन..इसमे किसी प्रतिभा नाम की हस्ती का कोई हाथ नही है..:)

Anonymous said...

यह भी समझना होगा कि पुरुष का साथ ही गंतव्य है और मंतव्य है न कि पुरुष से मुक्ति । पुरुषों को धरती से मिटाकर स्त्रियाँ कहाँ जाएँगी ?

या कदाचित्‌ वे पुरुष यह सोच टेन्शनियाते हैं कि स्त्रियाँ अमेज़ॉन(amazon) की स्थापना चाहती हैं!! ;)

Anonymous said...

http://myoenspacemyfreedomhindi.blogspot.com/2007/09/blog-post_6224.html

अभय तिवारी said...

बहस नहीं.. सहमति व्यक्त कर रहा हूँ..

अजित वडनेरकर said...

सत्य वचन

Reyaz-ul-haque said...

सहमत.

ghughutibasuti said...

अच्छा लेख है ।
घुघूती बासूती

संजय शर्मा said...

Aaj ki jaroorat es lekh se saharsh sahmati hai.Bahut hi Shandaar tarike ka upyog kiya hai aapne. kaash ye pahale aata to "Dilip aur avinash" apane "Mouhalle" ka Maahaul shayed na kharab karte.

Aapaka ye andaaj bahut hi sundar laga.bagair takraar ke badlaav jaari hai aur jaari rahega.

Bloger Bhai log kaafi kuchh sikhenge ess lekh se khaas kar Mudda kaise uthaaya jaata hai,Low tone kaise Damaka kiya jata hai.
Bahut Bahut dhanyavad ke sath Aabhar !

Amit Anand said...

लडाई दो विपरीत लिंगियों की नही है । उनके सामाजी करण की प्रक्रिया और उसके पीछे के संसकारों या मानसिकता से है ।

इन संस्कारों या समाज से कैसे लड़ेंगे ? इस प्रश्न पर भी सोचिए। एक तरीका तो ये हो सकता है कि औरतें अपनी भाषा, अपने संस्कार खुद गढ़ें । इस पर जरा सोच कर देखिए कि हमारे इस देश की औरतें वो ही भाषा, वो ही संस्कार, वो ही तौर-तरीके अपनाती हैं, जो पितृसत्ता ने गढ़े हैं।

और जिन-जिन ने अपनी-अपनी भाषा गढ़ी, उनका समाज ने विरोध किया क्योंकि प्रचलित पंरपराओं को चोट पहुंचती थी।

लेकिन अपनी भाषा, अपने तेवर लेकर ही औरतें भी आगे बढ़ सकती हैं। बहुत कुछ ' चक दे इंडिया 'की लड़कियों की तरह ही, जो लड़कों को लड़का नहीं बोलतीं, लौडा बोलती हैं और उसे दिखाती हैं कि लड़कियां क्या कर सकती हैं।

Pooja Prasad said...

Sujata ji, apke lekh se bahut had tak sehmat hoon. sbse badi sahmati is baat par hai ki stri-purush apas me rival nahi hain, or ladai puroshon se nahi us vyvastha se hai jo pitrsattatmak hai. mein is ladai me mahilayon ke hisse me AATI JA RAHI JEET se UTSAAHIT hoon, SANTOOST nahi. aap mera ashaye samjh rahi hongin..
Pooja Prasad

सुजाता said...

अभय जी ,अरुण जी , रियाज़ व अन्य की सहमति प्राप्त हुई धन्यवाद ! सन्जय जी और बात बोलेगी का भी शुक्रिया ! पूजा जी आपकी बात मै समझ कर ही यह सब लिख रही हूं। दर असल आपकी बात और दिलीप जी के लेख के बाद की प्रतिक्रियाएं देख कर मै विचलित और विवश हो गयी लिखने को सो रोक न पायी ।क्योन्कि स्त्री-विमर्श के साथ हमेश यह हुआ है कि असल मुद्दे तक पहुंचने से पहले ही बात सतह की काई पर अटक कर रह जाती है । बात जब तक गहरे नही पैठेगी तब तक यह विमर्श फ़ैशन स्टेटमेन्ट बन कर रह जाएंन्गे ।

Kumar Mukul said...

आपने सही कहा है कि पितृसत्‍ता का शिकार पुरूष भी हैं और केवल बात के लिए बात नहीं होनी चाहिए

prasun latant said...

aap gajab kee likhtee hain. idhar mahilaon ke bich aap ubhar kar aa rahin hain, apnee pratibha ke bal par. main aapke aur bhi likhe ko parne ka intjar kar raha hun.

Anonymous said...

EruRgM Your blog is great. Articles is interesting!

Anonymous said...

EF53de Wonderful blog.

Anonymous said...

oHAG8g Good job!

Anonymous said...

Magnific!

Anonymous said...

Hello all!

Anonymous said...

Please write anything else!

Anonymous said...

Nice Article.

Anonymous said...

Nice Article.

Anonymous said...

Please write anything else!

Anonymous said...

Nice Article.

Anonymous said...

Please write anything else!

Anonymous said...

CQBQXu Thanks to author.

Anonymous said...

bakalamkhud.blogspot.com is very informative. The article is very professionally written. I enjoy reading bakalamkhud.blogspot.com every day.
fast cash loans
pay day loans

generic propecia said...

Hello people want to express my satisfaction with this blog very creative and I really like the views of the focus very good indeed Thank you for the helpful information. I hope you keep up the good work on making your blog a success!