Wednesday, September 3, 2008
आओ बहनो , पहनो बुर्खा
स्त्री जाति हृदयहीन नही है। माँ , बहन ,बेटी,पत्नी,सखी ,साथिन - सभी रूपों में उसने अपने साथी पुरुष को हमेशा सम्बल दिया ,उसके हितों को सर्वोपरि रखा। लेकिन आज के युग मे वह पुरुष पर अत्याचार करने लगी,बलात्कार करने लगी ,कलहकारिणी हो गयी, अर्द्धनग्न हो गयी ,कामिनी बन बन जवान पुरुषों को कामोन्मत्त करने लगीं ऐसा कि वे प्रताड़ित ,शोषित महसूस करने लगे।इतनी अर्द्धनग्न बालाएँ देख आज का जवान {प्रौढ और बूढा भी}अपने मन को कैसे काबू में रखे।खूंटे से बान्धे रहे ?आज तक बन्धा है कभी ? बान्ध लेंगे तो जैसे ही किसी दिन रस्से खुली या टूटी सब्र ढह जाएगा और अनर्थ हो जाएगा। सब इन नारीवादी ,आधुनिकाओं ,नये ज़माने की औरतों के कारण जो अपना तन ठीक से ढंकती नही।
बहनो,
ऐसा अत्याचार देख मेरा मन द्रवित हो रहा है। साड़ी में नाभि दिख जाती है , कमर दिखती है ,पीठ भी दिख जाती है ,ऑफिस में पुरुष कैसे काम करेगा ? बस में बिना चिपके कैसे खड़ा रह सकेगा?
जींस में फिगर दिखती है । कामिनी की कल्पना कर कर साथी पुरुष कैसे काम -पीड़ित हो रह पाएगा?बताइये भला ?क्या आप उन्हें बलात्कार या छेड़खानी की मानसिक ग्लानि से आज़ादी नही दिलवाना चाहतीं ?
ब्लाउस में भी क्लीवेज दिख जाती है ।सलवार-कमीज़ पर दुपट्टा न डालो तो उभरे उरोज़ देख बेचारा पुरुष पटखनियाँ खा खाकर बेहाल हो जाता है।
क्या आप वाकई पुरुष समाज को इतना दुख देना चाहती हैं ?अधिकांश अच्छी बहनें "नहीं" में उत्तर देंगी। और उपाय खोजना चाहेंगी ।
मेरे पास एक बढिया उपाय है । क्यों न हम सभी आज से बुर्खा पहनने का प्रण लें और बढते बलात्कारों और बदतमीज़ियों को होने से रोकें। साथ ही हमारे पुरुष साथियों का भी भला होगा। न नाभि ,पीठ,कमर ,यहँ तक कि चेहरा{कटीले नैन ,रसीले होंठ}दिखेंगे न ही वे मानसिक रूप से बलत्कृत होंगे।
और यूँ भी पुरुषों से अधिक स्त्रियां बलात्कार करती हैं, लेकिन वे मानसिक सतह पर करती हैं इस कारण बच जाती हैं. समाज में जहां भी देखें आज अधनंगी स्त्रियां दिखती हैं. पुरुष की वासना को भडका कर स्त्रियां जिस तरह से उनका मानसिक शोषण करती हैं वह पुरुषों का सामूहिक बलात्कार ही है. किसी जवान पुरुष से पूछ कर देखें. पुरुष को सजा हो जाती है, लेकिन किसी स्त्री को कभी इस मामले में सजा होते आपने देखा है क्या.
हमें अपनी नैतिक ज़िम्मेदारियों को समझना चाहिये। समाज पतन की ओर जा रहा है ।हम उसे बचा सकते हैं।आइये अपने भाइयों , मित्रों , ब्लॉगर बन्धुओं ,पिताओं , दूसरों के पतियों , अपने बेटों को बचायें ।
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25 comments:
thats amazing story.
very awsome.
हरि ॐ हरि ॐ !
amazing.....
a lady s doing like that.
but what we r disscusing...
her bold dress sence or BHURKHA
किस बेबाकी से लिखा है मैं यही देखता रह गया। बढिया।
excellent post and i appreciate your effort . its pathetic that even in this era we woman have to put up with all such nonsense that is in the post which you have linked and int he comments on that post .
links mainey dekhey nahi..lekin post bahut badhiyaa likhi hai ....zaruurat hai..is tarah kii dhaardar post kii...
शानदार! कच्ची ईंट का जवाब पक्की ईंट से।
और एक शानदार व्यंग्य रचना भी। यही है व्यंग्य की सही धार।
५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
बुला-बुला के रेवड़ियाँ बाँटने और हि्न्दी के उत्थान की क़सम खा लेने से ही कोई प्रगतिशील तो नहीं हो जाता..धर्म की चक्की पहनकर चलने वाले लोग मनुष्यता की राह पर पिछड़ जायँ तो आश्चर्य कैसा!
SUJATA
http://sarathi.info/archives/1124
http://sarathi.info/archives/1126
http://sarathi.info/archives/1131
http://sarathi.info/archives/1132
kyuki mae is vishy par niranter asmati prakat kartee rahee hun LINKED blog par so puneh usii baat ko usii blog par kehna ??
PAR MAERII GHOR ASHEMATI HAEN
बहुत सटीक लिखा है ।
Well said.
See-
http://streevimarsh.blogspot.com/2008/09/blog-post.html
बेबाक ,बिंदास .....ओर एक दम सटीक....
सटीक!!
बहुत अच्छा कटाक्ष है...एकदम सटीक! स्त्री के वस्त्रों को दोष देने वाले लोग केवल अपनी अपराधी मानसिकता को जस्टिफाय करते हैं!
देखिये हम किसी भी हालत मे शास्त्री जी से ना तो ऐसे विचारो के ज्ञानार्जन की उम्मीद करते थे .ना ही उनके इस प्रकार के बेहूदा विचारो से किसी भी प्रकार सहमत हो सकते. ये जानवरो से ज्यादा गये बीते तर्क या कुतर्क है. सारे जानवर नंगे रहते है पर बहुत कम आपको बलातकारी दिखाई देंगे. कुछ लोग जो मंदिर मे जाकर भी महिलाओ के अंगो को अपनी कपडा भेदी नजर से देखते है ( इस बारे मे महिलाओ की अनूभूती को आप नही समझ सकते) के लिये आप क्या कहे? शास्त्री जी ? खुशंवंत सिंह जैसे लेखक गुरुद्वारे मे जाकर आपनी इस आदत को लिख तक डालते है आप भी ठीक कुछ वैसा ही कर रहे है. ये आपकी नजरे है कि आप अपनी बिटिया को कम कपडो मे देख कर उसे ढंग से रहने को कहे या महेश भट्ट की तरह शादी कर लेता जैसी सोच से नवाजे .
अब बात महिलाओ के शोषण की - इस मामले मे हम पूरे सहमत है जी , महिलाये महिलाओ का ही नही पुरुषो का भी शोषण करती है ,लेकिन हम इस पर कोई टिप्पनी नही करेगे . हमे भी शाम को घर जाना होता है जी :)
isme shastri ji koi dosh nahi hai ise bhi ek kism ki beemari kahte hai .unse kahiye kisi achhe "psycologist" ko dikhaaye.
फिर वही चरमपन्थ? राम-राम...
चलता हूँ शास्त्री जी ‘सारथी’ की खबर लेने, सॉरी हाल-चाल लेने...। दर असल ये आग मैने ही लगायी है http://sarathi.info/archives/1367 पर अपनी टिप्पणी से।
मानसिक रूप से कमज़ोर पुरुष ही ऐसा सोच सकता है... सालों बुरका पहना..बुरके और हिजाब से ढकी औरत को देखकर भी पुरुष को बेकाबू होते देखा है...
बहुत अच्छा आह्वान किया है आपने। काश! इस पर अमल भी हो पाता...
bahut khob...keep posting!
bahoot khoob.
iet ka jawab patter say diya .
aapko hamara naman .
बहुत अच्छे. पुरुषों के द्वारा नारी के बलात्कार के लिए नारी को ही जिम्मेदार ठहराकर उसे ही बलात्कारी सिद्ध कर दिया. शाबाश. क्या जिन देशों में महिलायें बुर्के में रहती हैं वहां बलात्कार नहीं होते. उनके लिए क्या कहोगे. विश्वास न हो तो egypt sexual harrament सर्च करके देख लो. यहो विचार वहां के उन लोगों के भी हैं जो महिलायों से बदतमीजी करते हैं.
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