बिलाग के बाबा लोग और बडका लोग चोखेर बाली को समझ नही पा रहे । यू नो वाय ? अबे ,तिरिया चलित्तर को जब भगवान नही समझ सका तो तू तो आदमी है ; गलतियों का पिटारा , बेचारा । औरत को समझने में पूरी ज़िन्दगी इहाँ उँहा झक मारता रह जाता है ।कमबख्त ! समझ नही आता आखिर चाहती क्या है । पाँयचा दो गिरेबाँ पकडती है । देखो शर्त मानी शांतनु ने और उल्लू बना । बाबा लोग को उनसे बडा हमदर्दी है । क्या है कि एक उत्पीडित मेने सेल बानाय का है अबी , इसी टाइम । बहुत हुआ !पत्नी खाना नही बनाती ? ब्लॉगिंग करती है ? फेमिनिस्म का डर दिखाती है ? एकजुट होकर झण्डा उठाती है ? सम्वाद चाहती है ?? मिस्ट्री बनती जा रही है ? तो उत्पीडित पति मिलें ---- अध्यक्ष ,मेन सेल । ब्लॉग पर आ रही हैं ,चलो आने दिया । जाने इनके पति क्या खाकर जीते होंगे [ब्लॉगिंग से फुर्सत हो तो खाना बनाएँ ! उँह! ] कविता लिखी , लिखने दी ।हमने वाह वाह ही की । विमर्श करने लगी , हमने कहा लगे रहो अच्छा लिख लेती हो । विवाद में पडना चाहा , सो हमने रोका । माने नही , बुरी-भली सुन के मानीं । पाब्लो फाब्लो पढने लगीं । चलो वह भी कर लेने दिया । अब ई का बला है ?? ओह मैन ! विमेन विल बी विमेन आल्वेज़ ! सैड्ड्ड !इतनी आवाज़ उठाकर भी कहती है आवाज़ बुलन्द् करो !
देखो , सीधी बात है ।इतना टाइम नही , सम्वाद फम्वाद , मवाद ,विवाद करने को । शुरु से यही सिखाया गया है - औरत एक मिस्ट्री है , कोई समझ न पाया , ऐसी ही इसकी हिस्ट्री है । इसलिए चाह कर भी इसके पास नही गये कभी डर से । हनुमान जी को याद किया । जब पास आये तो मुकाबला कर लेंगे इस मर्दानगी के अहसास से आये । वह कभी नही बोली ।खुल के बोलती ही नही हमारी तरह ;कैसे समझें । बोलने का कल्चर ही नही मिला ! तो टाइम बर्बाद करने का नही ।
वैसे भी इन्हें कभी संतोष नही होने का ।ये नया शगल कर देखने दो । स्त्रियाँ ही पढें , वे ही लिखें । उनकी दुनिया उन्हें मुबारक।तुम वहाँ मत जाना । जाने क्या चक्रव्यूह रचा है । एक बार कह दिया , हम साथ हैं सार्थक सम्वाद चाहते हैं तो गला पकड लेंगी । करना रोज़ सम्वाद । हम ताली बजाएँगे, तुम गाल बजाना । ओके ।
कबीर ने भी कह दिया है वही जो हम कह रहे हैं
"नारी की झाँई परत अन्धा होत भुजंग " साँप तक अन्धा हो जाता है हम तो....
वह महाठगिनी है । हमसे पूछो ।आस्क मेन ।जाना ही है पास तो सचेत जाओ । एजेन्डा साफ हो ।
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8 comments:
stri ko samejhna itan jarurii kyon haen notepad behana
ये बाबा लोग तो समझ आया ये बड़का लोग कौन हैं जी...
रचना ,यह इमेज जानबूझ कर बनाई गयी है स्त्री की ।ताकि उसके मामले मे बाकी भी और वह खुद भी कनफ्यूज़्ड रहे । वह बिल्कुल स्पष्ट है । उसे अस्प्ष्ट तो पुरणो मिथकों इतिहास लेखकों और समाज के ठेकेदारों ने ही बनाया है ।
ककेश , बडका लोग कि टिप्प्नी मायना रखती है । वे जहाँ टिपिया दें वहाँ माखी भिनभिनाने लगती है ।जोक्स अपार्ट , कुछ तो होते ही है हर जगह स्वनाम् ध्न्य ।
@kakesh
काहे बड़का लोग नाही समझते हो ? अब नाम लेईका पड़ी का ? काभऊँ हमरे ब्लोग पर अपनी नैनन के तीर डालो वहाँ नाम के साथ ही साफ लिखा है की कौन चिकोटी काट ता है और कहता है हम चिकोटी भरे हैं
बाबा ,बडका , बेबी , बेबा ..सब समझते हैं कौन क्या है लेकिन अफरा तफरी में ऐसा न हो अपने ही पोस्ट पर गोल कर डालें ? बड़ी भीड़ है भाई , इस मेले का क्या करें ?
इतना रिएक्शन किस लिए? क्या मिस्ट्री होना हमेशा अपमानजनक ही होता है? स्त्रीजाति के संबंध में सीमोन द बोउआ ने ऐसा कह दिया इसलिए? बोउआ खुद के लिए नहीं रही होंगी मिस्ट्री। मुझे लगता था मेरे लिए भी नहीं हैं। लेकिन हाल में प्रकाशित 'मुग्धा नायिका नुमा' उनकी चिट्ठियां क्या इस बात की तस्दीक करती हैं? क्या दुनिया में किसी के लिए (यहां तक कि खुद के लिए भी) किसी का मिस्ट्री होना या न होना उसके वश में है?
भूमिका-पोस्ट-श्रंखला थोड़ी लम्बी हो रही है और मेलोड्रामाई भी . चोखेर बाली जब शुरु हुआ है तो जाहिर है विशिष्ट मुद्दों पर गम्भीर बहस की उम्मीद है . फिलहाल तो सांचोपांजा की तरह पनचक्कियों से तलवारबाजी होती दिखती है . जिसको कहते हैं हवा में लट्ठ घुमाना .
ठोस बहस और सही विमर्श संभव होगा मुद्दों पर केन्द्रित तार्किक बहस से,साफ-सुथरे,संयत और सहजप्रवाही गद्य से,अभिव्यंजनावाद के विस्तार और गद्य-काव्य से नहीं . उसके लिए तो व्यक्तिगत ब्लॉग हैं ही .
आशा करता हूं इसे सही परिप्रेक्ष्य में लिया जाएगा .
Agar Anyatha na len to hum bhi Priyankar ki baat se sehmat hain.
Aur reha sawal barka logo ka, to umar ke saath saath baaten samajhne me vaqt lagne lagta hai isme kisi ka koi dosh nahi.
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