कितनी तल्खियाँ ,बेचैनियाँ हैं ...अतृप्त आत्माओं का संलाप- विलाप है ...व्यंग्य के माने समझने मे भी दिमाग में दर्द होने लगा .....दर्द अनरगल होने लगा....झरने लगा ....फेनिल दर्द !! बेदर्दी । हर्ट होने लगा । यू नो व्हेयर ? जस्ट हेयर !! दिल में ।प्लेन वनीला आइसक्रीम नही । झागदार आइसक्रीम ! ऐसे में हडबडिया पोस्ट ही आयेगी न !बूढे भंगड समझते क्यो नही ![या सब समझ जाते हैं...होपलेसली पतनशील बूढाज़ !!] जलेबी सी बात करते हैं । व्यंग्य का बडा शौक है ? पतन नज़दीक है , देख रखना ।आखिर क्या ज़रूरत थी ? कहना नही आता तो चुप क्यो नही रहते । व्यक्ति और विचार में फर्क नही कर सकते ?गॉन आर द डेयज़ ...जब तुमहारा ज़िक्र था ...पर ...
पर हमसे मतलब ? हमें क्यूँ बहस में कूद फान्द करने की पडी है । अब्बी , बस अब्बी कोई गरिया जाएगा ।आखिर क्या ज़रूरत थी ? कहना नही आता तो चुप क्यो नही रहते । डैम्म.....!! आये मेरी बला से । पर फेनिल दर्द रिस क्यूँ रहा है ? बेतरह !! कब तक ?
खैर छोडो । अपनी पोस्ट ठेलो । शांति से खेलो , खेल जो खेलना है । उबलो नही वर्ना गिर पडोगे ।
अपना तो राजनीति में विश्वास नही । सीधे सीधे लिखे जायेंगे ।आप्को लगती हो राजनीति तो लगा करे । हमसे मतलब ?
ऐसा नही कि नाम लेते डरते हैं हम । पर ये अपना इश्टाइल है । और नाम भी कितने लें । एक हो तो लें भी ।
कुछ सवाल अब भी मुँह बाए खडे हैं लाजवाब हैं । लाइलाज हैं । संगत कुसंगत हो गयी । । पर सवाल अब भी लाइलाज़ !! ।हम नही देखेंगे उन्हें ।कौन क्या है ? हमे क्या ? हमारी बला से। पर अतृप्त आत्माएँ अब भी रुदाली बनी हैं ...और उस पर फेनिल झरझराता , झबराया ,गदराया,फुँफकारता दर्द !!
नोट-- इस पोस्ट का कोई अर्थ नही है । यदि किसी को लगता हो तो लगे , हमारी बला से !!!
Saturday, February 16, 2008
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12 comments:
सुजाता, आप भी पतनशील रास्ते की ओर प्रवृत्त। वैसे अच्छा ही है, प्रगतिशीलता की नौटंकियों से ये पतनशील रास्ता कहीं बेहतर है.... बधाई हो... मैं भी आती हूं पीछे-पीछे..
बहस चलाकर क्या मिलना है?...यू सेड इट?..आफ्टर आल डू वी नीड इट?..जलेबी की तरह बात क्यों न करें?..हमें करनी है..हम तो करेंगे...ह्वाई वुड समबडी हैव आब्जेक्शन ओवर इट? दर्द है तो है...इट्स देयर प्रॉब्लम डैम इट...आई कांट लिव विदाऊट इट...दर्द नहीं तो लाइफ नहीं.
हड़बडिया पोस्ट लिखेंगे... बिकॉज़ पीपुल डोंट हैव टाइम....मेरे पास है... मैं नहीं लिखूंगा..वैनीला आइसक्रीम खाऊंगा...सो दैट आई गेट इनर्जी टू राइट लॉन्ग पोस्ट्स...पतनशील पोस्ट ही सही..यू डोंट नो, बट दिस इस राइट टाइम टू स्ट्राइक न्यू लोज..सो पतनशीलता के बारे में क्यों सोचो..शांति से क्यों खेलना?..आई कांट अक्सेप्त दैट..आई डोंट लाईक पीस..डोंट वांट टू लूज माय वे...जिन्हें जो कहना है, कहें...आई डोंट केयर..
मनीषा
आ जाओ
साथ साथ पतित हों ...
अनाम जी
पतित तो हैं पर अनाम क्यो हैं ..
What a fast learning patansheel student!! Wow!!
:)
hamein la ga tha ek gaon mangogi, ek shehar mangogi... bahut hua to poori duniya mangogi par ye to hadd hai... areh bhai kam-aj-kam patansheelta to hamereliye chhod do.
tevar pasand aaya.
मसिजीवी जी, नहीं.... नहीं.... नहीं.... प्रगतिशीलता आपको मुबारक हो.... हमें तो पतित ही होना है... नष्ट लड़की.... फिर नष्ट लड़कियां नष्ट गद्य लिखेंगी... ये व्यंग्य नहीं है... मैं सीरियली सब लड़कियों-स्त्रियों से पतित होने का आग्रह कर रही हूं...
सही है, नौटंकी कोई भी हो, ऐसा ही गुस्सा, खफ्त और कहने की ईमानदारी तक घसीट ले जाती है। गागर में सागर है।
sheel aur patansheel aapas mae badaa gehraa rishta haen . pelae padosii they ab ek hii ghar mae rehtaeyn haen . bas kamare badal gaye haen yaa shyaad sardi khatam ho rahee haen garmi aa rahee hae is liyae sheel ab patan sheel hotee jaa rahee haen
saath hun
अरे क्या मनीषा...
ऑंखें भी आदतन पढ़ने लगीं हैं, नहीं। :) वरना देखो पतनशीलता ही तो लिखा है।
अरे भई, आपने पतनशीलता को आपके लिए छोड़ देने का आग्रह किया। सो उसी का जवाब है। क्यूं छोड़ दें, पतनशील होने की आड़ में आनंद मनाएं आप और प्रगतिशीलता का टोकरा ढोएं हम। नहीं, हम तो पतित ही होंगे, कोई रोक सके तो रोक ले....
:0)
notepad jee,]
shubh sneh. kya bhigaa kar maraa hai khud ko bhee aur hamein bhee. mazaa aa gaya bheegne mein bhee aur pitne mein bhee.
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